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चिकनगुनिया वायरस के संक्रमण में मृत्युदर 0.1 फीसदी से कम
गोरखपुर: एडीज मच्छर से होने वाले चिकनगुनिया वायरस के संक्रमण में मृत्युदर 0.1 फीसदी से कम है. चिकनगुनिया के मुकाबले डेंगू में मृत्युदर ज्यादा है हालांकि तब भी एक प्रतिशत से कम है. लेकिन चिकनगुनिया से एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) होने पर प्रतिशत मासूम दम तोड़ देते हैं. चिकनगुनिया और डेंगू दोनों एईएस की वजह हों तो खतरा और बढ़ जाता है. यह सामने आया है रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी) की रिसर्च में.
आरएमआरसी की टीम ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज में वर्ष 22 में भर्ती एईएस के 238 मरीजों पर रिसर्च की है. बाल रोग और मेडिसिन विभाग में भर्ती एईएस के मरीजों में 12 चिकनगुनिया से पीड़ित मिले थे, इनमें से तीन की मौत हो गई. दो मरीजों में एईएस की वजह चिकनगुनिया के साथ डेंगू भी पाया गया, इन दोनों मरीजों की मौत हो गई.
जानलेवा है चिकनगुनिया : डॉ. राजीव ने बताया कि चिकनगुनिया के साथ डेंगू जानलेवा हो जाता है. जिन दो मरीजों में दोनों मिले थे. उनकी मौत हो गई. इसके अलावा एईएस के नौ अन्य मरीजों में सिर्फ डेंगू हुआ था. वे सभी मरीज इलाज से स्वस्थ हो गए.
मिला चिकनगुनिया का नया वैरिएंट : डॉ. राजीव ने बताया कि तेज बुखार के साथ झटका आने पर मरीजों में जेई, डेंगू, स्क्रब टायफस, चिकनगुनिया, मलेरिया और लैप्टो स्पायरा की जांच की जाती है. रिसर्च में चिकनगुनिया की जीनोटाइपिंग की गई. इसमें चिकनगुनिया का ईसीएसए वैरिएंट मिला. यह नए प्रकार का वैरिएंट है. जो कि पुराने एशियन वैरिएंट से थोड़ा सा अलग है. इसकी मारक क्षमता अधिक है. यह शोध अंतरराष्ट्रीय जनरल पबमेड में प्रकाशित हुआ है.
78 से कहर बरपा रही इंसेफेलाइटिस, 17 से आई काबू में : पूर्वी यूपी में इंसेफेलाइटिस करीब पांच दशक से कहर बरपा रही है. वर्ष 02 से लेकर तक तो बीमारी का सबसे भयानक दौर रहा. बीमारी के कारण हर चौथे मासूम की मौत हो जाती थी. वर्ष 05 से 09 तक तो हर साल एक हजार से अधिक मासूमों की मौत हो जाती थी. वर्ष 17 से इस बीमारी पर नियंत्रण के प्रयास रंग दिखाने लगे. अब इस बीमारी के मरीजों की संख्या दहाई में सिमट गई है. मौतों की संख्या तो इकाई में आ गई हैं.