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- 35 सौ से अधिक क्षय...
गाजियाबाद न्यूज़: जनपद में पुष्टाहार और भावनात्मक सहयोग के लिए 7150 क्षय रोगियों को गोद लिए गए थे, इनमें 3597 ठीक हो चुके हैं . स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि इनकी हालत में भी अच्छा खासा सुधार है. माता कॉलोनी में रहने वाली 50 वर्षीय रेखा भी इन्हीं में से ही एक हैं. रीढ़ की हड्डी में एमडीआर टीबी से पीड़ित होने पर कई माह तक बिस्तर पर रहने के बाद अब वह चहलकदमी करने की स्थिति में आ गई हैं.
साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र की कंपनी में मजदूरी का काम करने वाली 50 साल की महिला रेखा को रीढ़ की हड्डी में टीबी हो गया था. सेहतमंद खाना ना मिलने और निजी अस्पताल में महंगे इलाज की वजह से उसने टीबी का कोर्स बीच में ही छोड़ दिया. इसके बाद सरकारी डॉट सेंटर से फिर से इलाज शुरू हुआ. 13 महीने के इलाज के बाद एमडीआर मरीज को जीवन की नई उम्मीद मिली है. यह किस्सा अकेले रेखा का नहीं हैं, बल्कि मेहनत-मजदूरी करके अपना व परिवार का भरण भोषण कर रहे उस प्रत्येक टीबी मरीज का है, जो इलाज के दौरान समय पर पुष्टाहार और दवा ना मिलने की वजह से कॉल का ग्रास बन रहे हैं. रेखा ने बताया कि अक्तूबर, 2021 में रीढ़ की हड्डी में दर्द हुआ तो निजी हड्डी रोग विशेषज्ञ के पास पहुंच गईं. वहां पता चला कि रीढ़ की हड्डी में दो जगह टीबी है. महंगी दवा होने की वजह से वह जिला क्षय अस्पताल आ गईं. डॉक्टरों ने मुझे तीन दिन तक भर्ती रखा और फिर दवा इलाज शुरू किया. सरकारी अस्पताल से मिली दवा और पुष्टाहार खाने से शरीर में भी रोग से लड़ने की शक्ति पैदा हुई. अब रेखा को ठीक होने की उम्मीद जग गई है. नींव शक्ति फाउंडेशन की संस्थापक ऋचा बल्लभ खुल्बै बताती हैं कि जीने की आस छोड़ चुकी टीबी मरीजों को भावनात्मक सहयोग की बड़ी भूमिका रहती है. इसलिए मरीजों को सपोर्ट करने के लिए स्वयसेवी संस्थाओं को अग्रिम भूमिका निभानी चाहिए.
10 प्रतिशत टीबी मामले ऐसे ही रोगियों के हैं, जिन्हें पहली बार टीबी हुई और एमडीआर निकली. ऐसे में अच्छी खुराक न लेने से रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है औरसंक्रमण का खतरा बढ जाता है. एमडीआर की स्थिति में भी उपचार संभव है, इसमें उपचार थोड़ा लंबा चलाना पड़ता है, लेकिन रोगी पूरी तरह ठीक हो जाता है. - डा. डीएम सक्सेना, जिला क्षय रोग अधिकारी, गाजियाबाद