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आधा दर्जन से अधिक खदानों में बेखौफ नियमों के इतर जारी हैं खनन
बांदा: बुन्देलखण्ड में आने वाले क्षेत्र में खनिज सम्पदा के रूप में मोरम, गिट्टी व बालू से जहां प्रदेश सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए का राजस्व मिलता है। वहीं प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से खनन कारोबारी प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए अबैध खनन कर आगामी वर्षों के राजस्व को लूट कर अपनी काली कमाई तिजोरियों में रख लेते हैं। जिससे एकाएक ये कारोबारी, नेता व प्रशासनिक अधिकारी धनकुबेर हो जातें हैं। यदि गहनता से ईमानदारी के साथ इनकी बेनामी संपत्ति की जांच की जाएं तो इस लूट खसोट के राज पर्त दर पर्त खुल जाएं। काली कमाई कर ये माफिया सफेद खादीधारी बनकर किसी न किसी दल से माननीय बनकर जनता के सेवक होने का राग अलापने लगते है। बाकी सब जांच का विषय है कब इसकी आंच इस काले ब्यापार तक पहुंचती है और कार्यवाही होगी वह भविष्य के गर्त में छिपा है। आपको बता दें कि मामला जनपद में संचालित दो दर्जन बालू खनन पट्टों से जुड़ा हुआ है।
जिसमें बड़ी हाय तौबा हो हल्ला मचाने पर खनिज विभाग, राजस्व,व पुलिस अधिकारी प्रयोजित तरीके से जांच करते हुए करोड़ों रुपए की चोरी के दाग को जुर्माने की वशिंग मशीन से धुलकर साफ-सफाई कर देते हैं। जैसा बीते शुक्रवार बबेरू तहसील के अन्तर्गत ग्राम दादौंखादर के गाटा संख्या 38,40,41,व 42 का खंड 7 में 12 हेक्टेयर क्षेत्रफल बालू पट्टे का आवंटन में. फाल्गुन गिरीं माइन्स पार्टनर आलोक कुमार शुक्ला के पक्ष में हुआ। लेकिन खदान की शुरुआत के कुछ दिनों बाद ही अबैध खनन व ओवरलोडिंग की खबरें सुर्खियों में बनी रही और बड़ी धमाचौकड़ी के बाद कुम्भकरणी नींद से जागे खनिज विभाग ने मन मसोसकर जांच कर 2698 घन मीटर अवैध खनन को मानकर 24 लाख 28 हजार रुपए का जुर्माना कर सब कुछ आल इज वेल कर उच्चाधिकारियों के समक्ष अपनी ईमानदारी का सबूत पेश कर दिया। जबकि लगातार एक माह से नरैनी तहसील के अन्तर्गत बरियारी गांव में संचालित बालू खदान से आये दिन नियमों के विपरित खनन के शोशल मीडिया में बीडीओ, फोटो, लिखित शिकायत व ग्रामीणों के विरोध प्रदर्शन की धूमिल मंद ध्वनि जिम्मेदार अधिकारियों को अभी कुम्भकरणी नींद से जगाने में कारगर साबित नहीं हो रहा है।
लेकिन एक दिन उच्चाधिकारियों की डांट-फटकार के बाद शायद मुंहदिखाई की रस्म अदायगी होगी करोड़ों कि लूट खसोट पर दस बीस लाख जुर्माना लगाकर दुबारा लूट खसोट के लिए छोड़ दिया जायेगा। सीमांकन, हाई-फाई कैमरे, धर्मकांटा,व अन्य नियमावली का कागाजी प्रभाव धरातल पर शून्य हो जाएं तो कोई ताज्जुब नहीं। तभी तो आधा दर्जन से अधिक खनन माफिया केन,बागे, यमुना आदि नदियों की कोख को उजाड़ कर उनमें ज़ीने वाले जलीय जीवों को मारकर बालू ट्रकों में तय मानक से चार गुना अधिक लोड कर शहर के मध्य से सरपट दौड़ लगाकर महानगरों में मंडियों तक बिक्री के लिए पहुंच जाती है। और जिले के जिम्मेदार अधिकारियों को भनक नहीं लगती लेकिन कहीं न कहीं मीडिया व आमजन दबी जुबान सबकुछ देख कर बरियारी खदान के संचालक शैलेन्द्र की दबंगई को देख कर चुपचाप रहने में ही अपना हित समझते हैं।
जिसकी बानगी बीते पन्द्रह दिन पूर्व चार पत्रकारों पर कबरेज के दौरान खदान माफिया शैलेन्द्र ने मारपीट कर बेइज्जत किया और प्रशासनिक अफसरों ने कोई संज्ञान ना लेकर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई की। वहीं कुछ बहरूपिया जो अभी कुछ समय से पत्रकारिता का चोला ओढ़कर खदानों में मीडिया के ठेकेदार बने हुए हैं। जो पूरे जनपद के मीडिया की असमत को इन माफियाओं को गिरवी रख दिए। कुछ यही हाल मरौली खंड 5, बेंदा, खेरई, साड़ी, खप्टीहा 100/2 , खप्टीहा 356/1 में भी है जहां किसान, ग्रामीण और क्षेत्रीय जन इन माफियाओं से आजिज आकर ख़ून का घूंट पी रहे है। और अपने भविष्य में आने वाली पीढ़ी को भयंकर जल संकट के भय से भयभीत हैं। क्योंकि नदियों की बेतहाशा खनन से नदियों का अस्तित्व समाप्त होने के साथ ही जल श्रौत भी विलुप्त होने की राह पर है। भुखमरी और बेरोज़गारी का भी अंदेशा है।
खनिज विभाग द्वारा इस काली कमाई के साधन को बचाने के लिए हमेशा राजस्व की क्षति का राग अलाप कर जनपदीय उच्चाधिकारियों से लखनऊ तक एक आडम्बर रचाया गया है। यदि नियमों के आधारित खनन हो तो इससे यह एक बहुत अच्छा रोजगार उपलब्ध कराने का साधन के साथ प्रदेश सरकार के राजकोषीय स्थिति मजबूत बनाने का साधन है। लेकिन उससे इन अधिकारियों को अपनी तनख्वाह को खर्च कर अपने परिवार का पालन पोषण करना पड़ेगा जो संभव नहीं है। और एक एक खनिज लूट से खनन कारोबारी बड़े धनकुबेर नहीं बन सकते।