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मेरठ: एंटी करप्शन कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के 16 वर्ष पुराने मुकदमे में आरोपी उप निरीक्षक को दोषी करार दिया है. कोर्ट ने उप निरीक्षक को गिरफ्तार करा सलाखों के पीछे भेजा है. सजा के प्रश्न पर सुनवाई होगी. अभियोजन की मानें तो ऐसे मामलों में अधिकतम सात वर्ष की सजा का प्रावधान है.
वर्ष 2005 में भ्रष्टाचार से जुड़ी एक शिकायत शासन को मिली. शिकायत में गाजियाबाद के इंदिरापुरम थाने में तैनात यूपी पुलिस के उप निरीक्षक जितेंद्र त्यागी पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगे थे. जांच में उप निरीक्षक पर आरोप सही पाए गए, जिसके बाद 2005 में शासन के निर्देश पर एंटी करप्शन में तैनात तत्कालीन इंस्पेक्टर वीपीएस मलिक की ओर से इंदिरापुरम थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया.
प्रभारी निरीक्षक एंटी करप्शन दुर्गेश कुमार की मानें तो मामले की विवेचना उनके विभाग द्वारा ही की गई. पांच वर्ष यह विवेचना चली. वर्ष 2010 में एंटी करप्शन ने चार्जशीट दाखिल कर दी और कोर्ट में मुकदमे पर ट्रायल शुरू हो गया. करीब 16 वर्ष न्यायालय में ट्रायल चला, जिसमें एंटी करप्शन की ओर से विशेष लोक अभियोजक डा. संजीव कुमार गुप्ता ने मजबूत पैरवी की. उनकी ओर से 13 गवाह पेश किए गए. विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम ने उप निरीक्षक जितेंद्र त्यागी को दोषी करार दिया व कोर्ट से ही गिरफ्तार कराते हुए न्यायिक हिरासत में भेज दिया.
कोर्ट को नहीं कर पाए आश्वस्त: विशेष लोक अभियोजक डा. संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि भ्रष्टाचार के आरोपी जितेंद्र त्यागी की 15 जनवरी, 1999 से 30 जून, 2004 तक वेतन से आय 9.8 लाख रुपये बैठती थी लेकिन इस अवधि में उन्होंने 12.25 लाख रुपये का दिल्ली में फ्लैट खरीदा. इसके अलावा उनकी पत्नी के खाते में 29 लाख से अधिक रुपया मिला, जिसको लेकर किए गए सवालों के वह जवाब नहीं दे पाए.
जमानत पर उप निरीक्षक: भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे उप निरीक्षक जितेंद्र त्यागी जमानत पर चल रहे थे. मुकदमे का असर उनकी नौकरी पर भी पड़ा और प्रमोशन समेत सभी अन्य लाभ से वह वंचित हो गए. करीब चार वर्ष पूर्व वह सेवानिवृत्त हो गए. इसके बाद उन्हें लगातार तारीख पर कोर्ट आना पड़ रहा था. उनके अधिवक्ता की ओर से भी कई गवाह प्रस्तुत किए गए लेकिन राहत नहीं मिली.