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युवाओं को पार्टी से जोड़ बसपा को मुख्यधारा में लौटाएंगी मायावती
लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी लोकसभा चुनाव को लेकर अपने को नए कलेवर में प्रस्तुत करना चाह रही है। वह इस चुनाव से उभरने के प्रयास में लगी है। बसपा अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। विधानसभा चुनाव में महज एक सीट मिलने पर पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग पर सवाल उठने लगे हैं। सियासी जानकारों की मानें तो बसपा ने विधानसभा चुनाव के बाद से ही अपनी रणनीति में बदलाव शुरू कर दिया था। दलित, मुस्लिम और ब्राह्मणों के जरिए सोशल इंजीनियरिंग का फॉमूर्ला तैयार किया था। लेकिन सफलता नहीं मिली महज एक सीट पर ही बसपा सिमट गई। उसके बाद से बसपा ने रणनीति बदली और मुस्लिमों को तरजीह देना शुरू किया। इसीलिए मायावती ने विधानसभा हार के बाद पश्चिमी यूपी की अल्पसंख्यक नेता के रूप में कांग्रेस का चेहरा रहे इमरान मसूद को शामिल किया।
बसपा के लोगों की मानें तो इमरान एक दशक से अधिक समय तक पश्चिम यूपी में कांग्रेस के प्रमुख अल्पसंख्यक चेहरा थे। अब, इमरान मसूद के पार्टी में वही भूमिका निभाने की जिम्मेदारी मिली है जो उन्हें कांग्रेस और सपा में थी। इमरान के जरिए बसपा को लगता है कि वह पश्चिमी यूपी के साथ उत्तराखंड में भी मुस्लिमों को बसपा के साथ जोड़कर लोकसभा में लाभ ले सके। हालंकि इसमें कितनी सफलता मिलेगी यह तो आने वाला वक्त बताएगा। इसके अलावा हाल में ही माफिया जेल में बंद अतीक अहमद की पत्नी को अपनी पार्टी में शामिल कर इस समाज को संदेश देने का प्रयास किया है।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो प्रदेश में 18 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम वोटर माने जाते हैं। विशेष तौर पर 11 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम निर्णायक हैं। इनमें भी 70 प्रतिशत से ज्यादा संख्या पसमांदा मुस्लिमों (पिछड़ों) की है। चूंकि यह पहले भी पार्टी के साथ रहे हैं। अब भाजपा की तरफ इनका रुझान होने से बसपा में खलबली है। पार्टी का तर्क है कि विधानसभा चुनाव में इस वर्ग ने सपा के साथ जाकर देख लिया। अब बसपा के साथ आएं तो सत्ता परिवर्तन हो सकता है। बसपा के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि इस बार पार्टी नए कलेवर में दिखने के लिए दलित, मुस्लिम और पिछड़े पर फोकस कर रही है। इसी कारण उन्होंने अति पिछड़े समाज से प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल को अध्यक्ष बनाया है। इसके साथ ही पार्टी इस बार युवाओं को महत्व देगी। अपने भतीजे आकाश भी सोशल मीडिया के माध्यम से कह चुके हैं। पार्टी में अब नौजवानों को और महत्व दिया जाएगा। उनकी मजबूत भूमिका भी होगी।
उन्होंने बताया कि पार्टी को गांवों में मजबूत करने के लिए काफी महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। नई कार्ययोजना को लागू करने के लिए बसपा हर मोर्च पर अलग अलग कोऑर्डिनेटर तैनात करने की तैयारी में है। यह कोआर्डिनेटर इन समाज के लोगों के बीच जाकर नए लोगों को जोड़ेंगे। खास तौर से युवाओं पर फोकस करेंगे। पार्टी सुप्रीमो खुद यह रिपोर्ट लेंगी कि किस समाज में कितना काम किया गया। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय ने कहा कि बसपा अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। वह तमाम प्रयोग कर रही है। वर्तमान परिस्थितियों में वह मुस्लिम, पिछड़े और दलित का कॉम्बिनेशन बनाकर एक नया कलेवर पेश कर सकती है। पांडेय कहते हैं कि बसपा कई प्रकार के सोशल इंजीनियरिंग फॉमूर्ला का इस्तेमाल कर चुकी है। उसे लगता है कि नौजवानों और ग्रामीण क्षेत्रों को फोकस कर बाजी मारी जा सकती है। इसीलिए लोकसभा चुनाव से पहले लखनऊ में उन्होंने कई प्रकार की बैठकें कर अपने को मजबूत करने में लगी हैं। इसका चुनाव में कितना असर पड़ेगा यह तो आने वाला वक्त बताएगा।