- Home
- /
- राज्य
- /
- उत्तर प्रदेश
- /
- जुटे देश भर के जादूगर,...

newscredit; amarujala
ताज मैजिक सोसाइटी की ओर से शनिवार को ताज मैजिक फेस्टिवल का आयोजन हुआ। जादूगरों ने अपने साथियों का खुद हौसला बढ़ाया। देशभर से आए करीब 200 जादूगरों के माथे पर अपनी कला बचाने की चिंता साफ दिखी।
खुल जा सिमसिम, आबरा का डाबरा...गिली गिली छू...जैसी जादुई भाषाएं अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही हैं। दर्शकों की कम होती संख्या निराशा ला रही है। आगरा में शनिवार को माथुर वैश्य महासभा भवन में जादूगरों का जमावड़ा हुआ तो उनकी यह पीड़ा भी उभरी। कला के अस्तित्व पर चिंता जताई, जादू के कुछ नए-पुराने कला का प्रदर्शन किया।
इसी बीच हॉल में अचानक उमड़ आए दर्शकों को देख उनकी आंखें चमम उठीं। चेहरों पर मुस्कान आ गई। ऐसे माहौल में यह तय किया कि जमावड़े का लाभ उठाते हुए एक बार फिर जादू के वजूद को जिंदा करने निकला जाए। यही नहीं जादू को ललित कला के दायरे में लाने की भी आवाज उठी।
ताज मैजिक सोसाइटी की ओर से शनिवार को ताज मैजिक फेस्टिवल का आयोजन हुआ। जादूगरों ने अपने साथियों का खुद हौसला बढ़ाया। देशभर से आए करीब 200 जादूगरों के माथे पर अपनी कला बचाने की चिंता साफ दिखी। अमर उजाला से बातचीत में ग्वालियर से आए जादूगर जितेंद्र कुमार यह कहते हुए मायूस हो गए कि न जाने जादू को किस की नजर लग गई। जादूगर अखिलेश जैसवाल और जादूगर जेपी सम्राट ने कहा कि अगर सरकार से इस विधा को सहायता नहीं मिलती है, तो सिर्फ जादूगरों के प्रयास से इसे बचाना काफी मुश्किल होगा।
कोरोना काल में हुआ कर्ज
कोरोना काल में कर्जे में आ चुके जादूगर एस कुमार कहते हैं कि पहले एक साल में देशभर में 50 शो कर लेते थे। अब एक साल में पांच शो मुश्किल से हो पाते हैं। इन मुश्किलों में कर्जे की मुश्किल रुला देती है। जादू का जादू कहीं नहीं चल रहा है।
ललित कला के दायरे में आए
जादूगर संजय कश्यप का कहना है कि जादू को बचाने के लिए इस विधा को ललित कला के दायरे में लाया जाए। सरकार को जादूगरों के लिए ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे भारतीय जादू का अस्तित्व जिंदा रह सके।
जादू का हत्यारा सोशल मीडिया
जादूगर दीवान सिंह राजौरिया सोशल मीडिया को जादू का हत्यारा बताते हैं। सोशल मीडिया पर 90 प्रतिशत जादू नकली चल रहा है। बदलती तकनीक के दौर में कई जादूगर तकनीक का उपयोग कर इसे लोगों तक पहुंचा रहे हैं।
जादू विधा पर मंडरा रहा खतरा
पीपल मंडी की रहने वाली 70 साल की सविता छाबड़िया जादू देखने के लिए अपने मम्मी-पापा के साथ पांच किलोमीटर दूर पैदल जादूगरों का शो देखने जाती थीं। सविता बताती हैं कि उस दौर में शो देखने का जादू सिर चढ़कर बोलता था। अब सब कुछ मोबाइल में सिमट गया है। इससे जादू विधा पर खतरा मंडराने लगा है।