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Lucknow: पहला फिटल ब्लड ट्रांसफ़्यूशन केजीएमयू में हुआ
लखनऊ: केजीएमयू की फिट्ल मेडिसिन यूनिट ने पहली बार गर्भास्थ शिशु को मां के पेट से खून चढ़ाकर स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। हालांकि यह दिक्कत हजार से बारह सौ प्रसूताओं में किसी एक को गंभीर खतरा होता। लेकिन यहां के लिए पहला केस है। किंग जॉज चिकित्सा विश्वविद्यायल की स्त्री एवम प्रसूति रोग की विभागाध्यक्ष डॉ अंजु अग्रवाल ने बताया कि क्वीन मैरी हास्पिटल केजीएमयू भ्रूण चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवा रहा है और अब उन्होंने आरएच-आइसोइम्युनाइजेशन गर्भावस्था के उपचार में सफलता प्राप्त की है।
उन्होंने बताया बच्चे का सफल जन्म कराने के लिए मेडिकल में इंट्रआयूटिराइन ट्रांसफ्यूजन कहलाने वाले इस विधि में अल्ट्रासाउंड की मदद से सुई के जरिये गर्भाश्य में ही भ्रूण को रक्त चढ़ाया जाता है। उन्होंने बताया केज़ीएमयू में पहलीं बार स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में डॉ सीमा महरोत्रा के नेतृत्व में डॉ नम्रता, डॉ मंजूलता वर्मा, रैडियोलॉजी विभाग के डॉ सौरभ, डॉ सिद्धार्थ,पैडिएट्रिक्स विभाग से डॉ हरकीरत कौर, डॉ श्रुति और डॉ ख्याति की टीम द्वारा चिकित्सा प्रक्रिया को पूरा किया गया। तो वहीं ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ तूलिका चंद्रा द्वारा ओ निगेटिव ब्लड उपलब्ध कराया गया।
डॉ सीमा मेहरोत्रा ने बताया की प्रसूता को सात माह के गर्भवती होने पर भ्रूण में खून की कमी पाये जाने पर कानपुर से रेफेर किया गया था। केस की पिछली जानकारी के अनुसार पता चला कि महिला पूर्व में दो बार गर्भवती हुई थी और इस बार लाल रक्त कोशिका एलोइम्युनाइज़ेशन की शिकार हुई। जिसके बाद गर्भाशय में भ्रूण को दो बार रक्त चढ़ा कर 35 हफ़्ते में सिजरियन द्वारा तीन किलो के बच्चे की डिलीवरी करायी गई। डॉ नम्रता ने बताया कि ऐसी स्थिति मां-बाप के ब्लड आरएच विपरीत होने पर बनती है। जोकि नवजात की मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पिता के ब्लड आरएच पॉजिटिव होने के कारण भी यह स्थिति बनती है।
डॉ नम्रता के अनुसार,इस विपरीत रक्त समूह के कारण,भ्रूण आरएच पॉजिटिव हो सकता है और मां में एंटीबॉडी विकसित होते हैं और ये एंटीबॉडी प्लेसेंटा को पार करते हैं और भ्रूण के आरबीसी को नष्ठ कर देते है। धीरे धीरे ये भ्रूण में एनीमिया का कारण बनते हैं। ऐसी स्थिति में पूरे भ्रूण में सूजन आ जाती है। ऐसे मामलों में गर्भाशय में ही भ्रूण की मृत्यु हो जाती है। डॉ मंजुलता वर्मा ने बताया कि अमूमन हजार से बारह सौ प्रसूताओं में किसी एक को इसक गंभीर खतरा होता है,लेकिन ट्रांसफ्युजन से इसको रोका जा सकता है।