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Lucknow: रेप पीड़िता का अबॉर्शन कराने की अनुमति के लिए याचिका दायर
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में एक 17 वर्षीय बलात्कार पीड़िता के गर्भपात की अनुमति मांगने के लिए याचिका दायर की गई। जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ ने कहा कि गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम की धारा 3(2) यौन उत्पीड़न की शिकार महिला को गर्भपात का अधिकार देती है। उसे बच्चा पैदा करने के लिए मजबूर करने से समस्या और बढ़ेगी। जानिए इस मामले में हाईकोर्ट ने और क्या कहा?
पीड़ित को 'हां' या 'नहीं' कहने का अधिकार है: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि बलात्कार पीड़िता को गर्भपात का कानूनी अधिकार है। पीड़िता को बच्चा पैदा करने के लिए मजबूर करने से उसकी पीड़ा और बढ़ेगी। न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने कहा कि एक महिला को मातृत्व के लिए 'हां' या 'नहीं' कहने का पूरा अधिकार है। आपको बता दें कि यह अधिकार गर्भपात अधिनियम की धारा 3(2) के तहत दिया गया है।
पीड़ित मानसिक समस्याओं से ग्रस्त: अदालत ने इस मामले में 10 फरवरी को अपना फैसला सुनाया था। जिसमें कोर्ट ने आगे कहा कि पीड़िता को बच्चे की जिम्मेदारी से बांधना उसे सम्मान के साथ जीवन जीने के अधिकार से वंचित करने के समान है। यह याचिका एक नाबालिग लड़की द्वारा दायर की गई थी, जिसे कथित तौर पर आरोपी ने बहला-फुसलाकर उसके साथ बलात्कार किया था। जब उसके पिता को इस बारे में पता चला तो उन्होंने शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद उसकी मेडिकल जांच की गई, जिसमें पता चला कि वह तीन महीने और 15 दिन की गर्भवती है।
लड़की के वकील ने तर्क दिया कि गर्भावस्था जारी रखने से उसे मानसिक परेशानी हो रही है। इसके अलावा, वह नाबालिग है, जिस कारण वह बच्चे के पालन-पोषण का बोझ नहीं उठाना चाहती। पूरे मामले की सुनवाई के बाद अदालत ने कई उदाहरण देते हुए कहा कि पीड़ितों को अपने शरीर के बारे में निर्णय लेने का पूरा अधिकार है।