उत्तर प्रदेश

दस गुनी रकम के सब्जबाग में फंस गंवाई जमा पूंजी

Admin Delhi 1
16 Aug 2023 4:31 AM GMT
दस गुनी रकम के सब्जबाग में फंस गंवाई जमा पूंजी
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सेबी और सीबीआई जांच को जुटाए जा रहे प्रपत्र

झाँसी: चिटफंड कंपनियों का कारोबार कागजों पर इस कदर लुभावना रहा कि भोलेभाले ग्रामीणों के साथ पढ़ेलिखे व्यक्ति बड़ी आसानी से इसमें अपने जीवनभर की पूंजी दांव पर लगाते चले गए. दस वर्षों में रकम दस गुना करने की स्कीम ने लोगों को सबसे अधिक आकर्षित किया और इसी स्कीम में फंसकर जनपद के हजारों लोग लुट पिट गए. बड़ी ही आसानी से यह सब होता रहा.

चिटफंड कंपनी संचालित करने वाले सरकार की कमजोर मानीटरिंग का भरपूर फायदा उठाते हैं. नियमों को ताक पर रखकर वह पूरा कारोबार करते हैं. जनपद में शातिर बंधुओं ने भी कुछ ऐसा ही किया. तुवन मंदिर से कलेक्ट्रेट जाने वाले मार्ग पर उन्होंने कंपनी का कार्यालय खोला. फिर बेहतर वेतन व कमीशन का वायदा करके उन्होंने नगरीय और ग्रामीण इलाकों में युवाओं की टीम उतार दी. इस टीम के सदस्यों ने आरडी और एफडी स्कीम के लाभ गिनाकर लोगों की जमा पूंजी कंपनी में जमा करानी शुरू कर दी. एफडी स्कीम के तहत 1,000 रुपये के 01 वर्ष में 1,115, 03 वर्ष में 1,423.8, 05 वर्ष में 1,842.5, 06 वर्ष में 2000, 7.5 वर्ष में 2,500, 09 वर्ष में 3,000 और 10 वर्ष में सीधे 10,000 रुपये देने का दावा किया गया. 1,000 रुपये लगाकर महज 10 वर्षों में दस गुना 10,000 रुपये वाली स्कीम अधिकतर लोगों को समझ में आती चली गयी. लोगों ने पांच हजार रुपये से लेकर दस-बीस लाख रुपये तक निवेश कर दिए. ठीक इसी तरह आरडी के तहत मासिक, तिमाही, छमाही व वार्षिक स्कीम में सात वर्ष तक रुपये जमा करने पर बेहतरीन ब्याज का लालच दिया गया. अधिक से अधिक वसूली के लिए ज्यादा समयावधि वाली स्कीमों को लांच किया गया. लुटेरे अपने उद्देश्य में कामयाब भी रहे. मुआवजा वाले क्षेत्रों में इनकी टीम ने डेरा जमाया और करोड़ों रुपये समेट लिए. निवेशकों का समय पूरा होने तक कंपनी गायब हो गयी.

सेबी और सीबीआई जांच को जुटाए जा रहे प्रपत्र

नियमानुसार चिटफंड कंपनी पैसे का लेनदेन अपने सदस्यों के बीच ही कर सकती है. खुली बैंकिंग करने की उनको छूट नहीं होती है. बावजूद इसके प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों की आंखों में धूल झोंककर यह लोग जनता के बीच 10 वर्ष में 10 गुना का झांसा देकर एफडी और आरडी के नाम पर वसूली कर लेते हैं. कुछ समाजसेवी संस्थाओं ने इनके शिकार व्यक्तियों का ब्यौरा तैयार करना शुरू कर दिया है. इसके साथ ही चिटफंड कंपनी के संचालकों की काली कमाई का भी लेखाजोखा जुटाया जा रहा है.

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