उत्तर प्रदेश

मुक्ति पाने को भगवान राम ने इस संगम पर लगाई थी डुबकी

Manish Sahu
2 Sep 2023 5:38 PM GMT
मुक्ति पाने को भगवान राम ने इस संगम पर लगाई थी डुबकी
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उत्तरप्रदेश: ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने को प्रभु श्रीराम ने इस संगम पर स्नान किया था। यहां उद्यालक ऋषि के आश्रम में उन्होंने देवी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ रात्रि विश्राम किया था। चैत्र पूर्णिमा को ऋषि उद्यालक के सानिध्य में भगवान शिव की पूजा-आराधना करने के बाद लिट्टी-चोखा को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया और अयोध्या वापस लौट गए। आज भी चैत्र पूर्णिमा पर यहां बड़ा मेला लगता है। काफी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। संगम पर स्नान कर गोदान करते हैं और लिट्टी-चोखा खाकर पाप मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। पवित्र मनवर और कुआनो नदी का यह संगम बस्ती जिले के लालगंज में है।
ऋषि उद्यालक की दो तपस्थली
त्रेतायुगीन ऋषि उद्यालक की दो तपस्थली प्रसिद्ध है। इन दोनों तपस्थलियों में एक गोंडा जिले का इथियाटोक है। जिसे मनवर नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। दूसरा तपस्थली बस्ती का लालगंज है, जहां पर मनवर नदी का कुआनो नदी में संगम हो जाता है। यहीं पर भगवान शिव का मंदिर है, जिसे पाप से मुक्ति दिलाने के नाम पर मोक्षेश्वर नाथ के नाम से जाता है।
ऋषि की कुटिया में बिताई थी रात
मनवर-कुआनो नदी के संगम से सटे मोक्षेश्वरनाथ धाम मंदिर के पुजारी दयानंद गोस्वामी बताते हैं कि मान्यता के मुताबिक, लंकापति रावण का संहार करने के बाद भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने देश के विभिन्न हिस्सों में ब्रह्महत्या से मुक्ति पाने के लिए भ्रमण कर स्नान, दान व पूजा किया था। अंत में गुरु वशिष्ठ की सलाह पर भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ बस्ती के लालगंज स्थित मनवर-कुआनो के संगम पर आए। ऋषि उद्यालक की कुटिया में एक रात बिताई। चैत्र पूर्णिमा की भोर में संगम में स्नान कर भगवान भोलेनाथ की पूजा-आराधना की और संगम तट पर लिट्टी-चोखा बनाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। इसके बाद ही यहां के शिवमंदिर को मोक्षेश्वर नाथ शिव मंदिर के रूप में जाना जाने लगा।
आज भी श्रद्धालु प्रसाद के रूप में खाते हैं लिट्टी-चोखा
पुजारी दयानंद बताते हैं कि उसके बाद से चैत्र पूर्णिमा पर प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। संगम पर स्नान के बाद गोदान करते हैं। तट पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु लिट्टी-चोखा बनाते हैं और भगवान को अर्पित के बाद उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
चैत्र पूर्णिमा पर लगता है पांच दिन का ‘मनवर मेला’
कन्या पूर्व माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक ज्ञान प्रताप उपाध्याय बताते हैं कि लालगंज में पांच दिन का मेला लगता है। इसको ‘मनवर मेला’ के नाम से जाना जाता है। मेले में बस्ती के अलावा पूर्वांचल के व्यापारी आते हैं। देशी केला, लकड़ी का अलग से बाजार लगता है। घरेलू सामानों के बाजार का अपना अलग नजारा होता है। क्षेत्र ही नहीं दूर-दूर से लोग मेला देखने आते हैं। इस मेले में लोग पूरे वर्ष के ऐसे सामानों की खरीदारी करते हैं, जिसका समय-समय पर जरूरत लगती है। खेती के सामान हंसिया, कुदाल, फावड़ा, खुरपा, हल और अन्य देसी उपकरण बिकते हैं। शादी व अन्य मांगलिक कार्यक्रम से जुड़े सामानों की भी खरीदारी होती है।
लालगंज को नगर पंचायत बनाने की उठ रही मांग
सामाजिक कार्यकर्ता अमृत वर्मा ‘डब्लू’ ने बताया कि पौराणिक रूप से महत्वपूर्ण लालगंज संगम की अपनी पहचान है। स्कंद पुराण में उद्यालक ऋषि की तपोभूमि का वर्णन है। उल्लेख है कि उद्यालक ऋषि ने मोक्षेश्वरनाथ मन्दिर की स्थापना की थी। यह स्थल आयोध्या धाम और रामजानकी मार्ग से कुछ दूरी पर स्थित है। यहां की स्थिति का विस्तृत जानकारी देते हुए यूपी सरकार और मुख्यमंत्री को पत्र भेजा गया है। पत्र में मांग की गई है कि लालगंज को नगर पंचायत बनाया जाए।
उद्यालक ऋषि की तपोभूमि से राममंदिर को गया था अक्षत व माटी
पुजारी दयानंद गोस्वामी बताते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास में यहां का अक्षत और मिट्टी लगी है। शिलान्यास के समय संतों और भक्तों की टोली ने उद्यालक मुनि की तपोभूमि पहुंच कर कुआनो-मनवर संगम से पवित्र जल, परिसर की माटी और श्रीराम नाम से अक्षत अयोध्या ले गए थे। उस समय अयोध्या से आए संतों ने बताया था कि कुआनो-मनवर संगम का पवित्र जल समस्त बाधाओं को दूर करता है। यहां पर प्रभु श्रीराम, माता सीता व अनुज लक्ष्मण ने स्नान किया था।
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