उत्तर प्रदेश

लोकरंग 2024 की विचार गोष्ठी 15 अप्रैल की सुबह 11 बजे से होगी शुरू

Gulabi Jagat
1 April 2024 12:54 PM GMT
लोकरंग 2024 की विचार गोष्ठी 15 अप्रैल की सुबह 11 बजे से होगी शुरू
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फाजिलनगर: "लोकरंग 2024" की विचार गोष्ठी 15 अप्रैल की सुबह 11 बजे शुरू होगी। विषय है: लोक संस्कृति के समावेशी तत्व। समावेश को इंग्लिश में Entrance या Include कहा जाता है। समावेशी के लिए, Inclusive, Entrance के कई अर्थ हैं, जैसे कि सम्मोहित करना, सम्मोहन, हर्ष एवम् आश्चर्य से अभिभूत कर देना। इन शब्दों पर गौर करते हुए जब हम लोक संस्कृति के वाहक, गरीबों, वंचितों को देखते हैं, स्त्रियों को देखते हैं, जिन्हें समाज में बराबरी हासिल नहीं रही, लेकिन समूह में सबसे ज्यादा बोलते, बैठते, गाते, जाते, रोते, हंसते, उत्साह मानते इन्हें ही देखते हैं, तो लगता है कि लोकसंस्कृति के मूल समावेशी तत्व हैं_ हर हाल में सबकी जिजीविषा को बचाये रखना। जब हम लोक नाट्यों में या रामलीलाओं या कीर्तन मंडलियों में मुसलमानों की सहभागिता का इतिहास देखते हैं, जब हम ताजिया में हिंदुओं की सहभागिता को देखते हैं। होली, दीवाली में सबके शामिल होने का उदाहरण देखते हैं, तब सिद्ध हो जाता है कि लोक संस्कृति में धार्मिक विभाजन को स्थान नहीं मिलता रहा है। जब हम यूरोप की धरती पर रह रहे गिरमिटिया वंशजों की नई पीढ़ी में जिंदा अहीरवा या धोबिया नाच देखते हैं या सात समंदर पार, भोजपुरी के गीत सुनते हैं तब स्वत: सिद्ध होता है कि लोक संस्कृति, विस्थापन के बावजूद, अंतरमन को मोहित करती है, मनुष्य को जिजीविषा से जोड़े रखती है। उसे हर्ष से अभिभूत कर देती है।
भिन्न धरती की संस्कृति भले ही प्रभावित करे, मन को ज्यादा भाने वाली संस्कृति, अपने मूल धरती की संस्कृति होती है। समूह में गाए जाने वाले लोक गीतों में समूह के साथ जीवन जीने की ऊर्जा मिलती है। लोक संस्कृति, समाज के विभाजन को, नफरत को, झूठ को और बिखराव को रोकती है। स्त्रियों की वेदना, दर्द, उपेक्षा, भेदभाव उनके लोक गीतों में अनायास उतार आते हैं। यानी लोक संस्कृति के समावेशी तत्वों में अभिव्यक्ति की आजादी के तत्व भी छिपे हुए हैं। इनके अलावा लोक गाथाएं, लोक इतिहास का निरूपण भी करती हैं तभी तो जनसामान्य, देवों और अत्याचारियों का अपने स्वर में वर्णन करता है। मुख्यधारा का इतिहास, जहां वंचितों की उपेक्षा करता है, लोक संस्कृति के तत्व, वहां मुखर हो जाते हैं। इसलिए लोक संस्कृति के समावेशी तत्वों में वंचितों के संघर्ष की ऊर्जा भी छिपी हुई है। । यहां स्व के बजाय, समूह का मान होता है। इसलिए तो शास्त्रीय संगीत के घराने होते हैं मगर लोक संगीत के समूह होते हैं। मुझे लगता है कि लोकरंग में शामिल हो रहे विद्वान, इस सभी बातों को रखेंगे ही, मैंने तो सिर्फ, इस विषय को चुनते समय, मन में उपजे त्वरित विचारों को यहां रख दिया है, जो शायद गोष्ठी को सारगर्भित बनाने में काम आएं।
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