उत्तर प्रदेश

गोरखपुर जेल में गंभीर अपराध दर्ज किया गया

Sonam
4 July 2023 5:42 AM GMT
गोरखपुर जेल में गंभीर अपराध दर्ज किया गया
x

आपने फिल्मों में आपने सुना होगा कि कारागार का कानून अलग होता है लेकिन यह बात फिल्मी नहीं हकीकत है. हत्या, लूट, दुष्कर्म या फिर कोई और संगीन अपराध. पुलिस की गिरफ्तारी के बाद कारागार पहुंचते ही महज उम्र की वजह से यदि क्रिमिनल को राहत मिल जाए तो आपको जानकर हैरत होगी. उम्र भी ऐसी जिसे संविधान बालिग मानता है और राष्ट्र की गवर्नमेंट तक चुनने का अधिकार मिल जाता है. हालांकि सामान्य जानकारी के लिए यह हैरत की बात हो सकती है लेकिन उत्तर प्रदेश की जेलों का यही सच है.

गोरखपुर कारागार में 18 से 21 वर्ष की उम्र के 84 बंदी गंभीर क्राइम में बंद है लेकिन इन्हें बालिग नहीं माना जाता है. इन शातिर अपराधियों को अल्प वयस्क के तौर पर सहूलियतें भी मिलती हैं. दरअसल, 1988 में राजीव गांधी की गवर्नमेंट के समय 62वें संविधान संशोधन में पुरुष के बालिग होने की उम्र 21 से घटाकर 18 साल कर दी गई. इसके साथ ही ग्राम सभा से लेकर लोकसभा तक के चुनाव में मतदान की उम्र सीमा भी 21 साल से घटकर 18 साल हो गई. शादी समेत सरकारी भर्तियों और अनेक कामकाज में बालिग होने के लिए न्यूनतम आयुसीमा 18 साल मानी गई. लेकिन 35 वर्ष बीत जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश की जेलों के मैनुअल में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. जेलों में अभी भी 21 साल से कम उम्र के अपराधियों को नाबालिग ही माना जाता है. क्राइम कितना भी संगीन हो लेकिन यदि क्रिमिनल की उम्र 21 वर्ष से कम है तो कारागार पहुंचने के बाद उसे नाबालिग मानकर अलग बैरक में रखा जाता है. इसके साथ ही अनेक और छूट मिल जाती है और सुविधाएं बढ़ जाती है.

आसान हो जाती है जमानत, बनते हैं बड़े क्रिमिनल

यूपी की जेलों में पुराने मैनुअल का लाभ अपराधियों को केवल कारागार की सुविधाओं और छूट तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इससे उनकी जमानत की राह भी आसान हो जाती है. कारागार प्रशासन द्वारा इन्हें नाबालिग माने जाने से जमानत जल्द मिल जाती है. इस तरह की सहूलयित से शातिर अपराधियों के दुस्साहस बढ़ने के भी कई मुद्दे सामने आ चुके हैं. 21 वर्ष कम उम्र के नाबालिग माने जाने वाले अपराधियों को कारागार में बड़े अपराधियों से दूर अलग बैरक में रखा जाता है. इसके साथ ही इन्हें अन्य सहूलियतें भी मिलती है.

162 वर्ष पुराना कारागार मैनुअल आज भी लागू

गोरखपुर कारागार में इस समय 21 वर्ष से कम उम्र के 84 बंदी हैं. कारागार प्रशासन इन्हें नाबालिग मानकर अलग बैरक में रखे हुए है. 62वें संविधान संशोधन के अनुसार 1988 के बाद 18 वर्ष की उम्र सीमा को बालिग होने की मान्यता दी गई है और उसी के हिसाब से सजा और कारागार का भी प्रावधान तय किया गया है. संवैधानिक तौर पर 18 वर्ष की उम्र से नीचे के आरोपियों को बाल सुधार गृह भेज दिया जाता है. लेकिन ब्रिटिश हुकूमत के 1861 में तय किए गए कारागार मैनुअल में तक की गई बालिग होने की उम्र में कोई परिवर्तन नहीं हो पाया आजादी के 75 वर्ष बाद भी वही प्रबंध लागू है.

खेलने की सुविधा, काम भी नहीं करना पड़ता

जेल में बंदियों की गिनती पांच श्रेणी में होती है, पुरुष बंदी, स्त्री बंदी, अल्पवयस्क बंदी, बच्चे, आतंकवादी. कारागार मैनुअल के मुताबिक, 18 से 21 साल की उम्र के लोगों को अल्पवयस्क श्रेणी में रखा जाता है. ऐसे में गंभीर क्राइम में पकड़े जाने के बावजूद 21 वर्ष से कम उम्र के बंदियों को संवैधानिक तौर पर बालिग होने के बाद भी इस श्रेणी का लाभ मिल जाता है. जबकि कारागार भेजने के पीछे उद्देश्य ही यही होता है कि इन्हें सजा दी जाए ताकि सुधार हो सके. कारागार मैनुअल अलग होने की वजह से कारागार में इन्हें खेलने की सुविधा तक दी ही जाती है, साथ ही अन्य बंदियों से अलग रखकर कोई काम भी नहीं लिया जाता.

करीब 5 फीसदी बंदी उठा रहे सहूलियत

गोरखपुर मंडलीय जेल के वरिष्ठ कारागार अधीक्षक दिलीप पाण्डेय बताते हैं कि वर्तमान समय में मंडलीय जेल में कुल 2035 बंदी हैं. इनमें से 84 अल्पवयस्क हैं, जिनकी उम्र 18 से 21 साल के बीच है. इन्हें अन्य बंदियों से अलग बैरक में रखा गया है. कारागार मैनुअल जब बना था तब वयस्कता की उम्र 21 साल थी. तभी से यह चल रहा है. मैनुअल के हिसाब से उन्हें 21 की उम्र के बाद पूर्ण वयस्क माना जाता है.

Next Story