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बुंदेलखंड की तरह कम पानी में भी पंजाब जैसी गेहूं की पैदावार होगी
लखनऊ: बुंदेलखंड की तरह कम पानी में भी पंजाब जैसी गेहूं की पैदावार होगी. जी हां, कानपुर में विकसित गेहूं की प्रजाति के-17 में सिर्फ दो पानी लगता है और पंजाब के बराबर 5.5 से 6 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है. जबकि पंजाब में इतने उत्पादन के लिए बार पानी लगाना पड़ता है. इस प्रजाति को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है. वर्तमान में गेहूं की इस प्रजाति की मांग उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, उड़ीसा के साथ उन इलाकों में अधिक है, जहां पानी की कमी है.
गेहूं की पैदावार में उत्तर प्रदेश देश में प्रमुख राज्य है. मगर अत्याधुनिक तकनीक और उन्नत बीज के साथ पानी के पर्याप्त खर्च के कारण पंजाब में सबसे अधिक उत्पादन होता है.
पंजाब में गेहूं की औसतन पैदावार 5.5 टन प्रति हेक्टेयर है. जबकि उप्र में औसतन पैदावार 3.5 टन प्रति हेक्टेयर है.
कम पैदावार और पानी की दुर्लभता को देखते हुए सीएसए विवि के वैज्ञानिकों ने गेहूं की नई प्रजाति के-17 विकसित की है. जिसमें सिर्फ दो पानी बार की आवश्यकता होती है. इसका उत्पादन 6 टन प्रति हेक्टेयर तक है. साथ ही, बहुत अधिक तापमान बढ़ने पर भी फसल को नुकसान नहीं होता है.
चार फीसदी अधिक है प्रोटीनगेहूं की प्रजाति के-17 में सामान्य से चार फीसदी प्रोटीन की मात्रा अधिक है. इस प्रजाति में फीसदी प्रोटीन है. जबकि गेहूं की अन्य सामान्य प्रजातियों में फीसदी तक प्रोटीन की मात्रा होती है.
तीन गुना बढ़ाया जाएगा बीज उत्पादन के-17 की मांग लगातार बढ़ रही है. विवि प्रशासन की मुताबिक मांग के अनुसार बीज उत्पादन नहीं हो रहा है. कुलपति के निर्देश के बाद इस साल बीज का उत्पादन तीन गुना बढ़ाया जाएगा. जिससे सभी प्रदेशों के किसानों को बीज मिल सके.