- Home
- /
- राज्य
- /
- उत्तर प्रदेश
- /
- सेवा में कमी के लिए...
इलाहाबाद: सुप्रीम कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि ‘वकील न तो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में आते हैं और न ही सेवा में कमी के लिए उनपर उपभोक्ता अदालतों के समक्ष मुकदमा चलाया जा सकता है.’ शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘एक अधिवक्ता अपने पेशे के दौरान जिस तरह की सेवाएं मुहैया कराता है, उस पर मुवक्किल का काफी हद तक सीधा नियंत्रण होता है.
सेवा की परिभाषा के दायरे से बाहर होंगी वकीलों की सेवा जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि ‘मुवक्किल द्वारा ली गई वकील की सेवाएं ‘व्यक्तिगत सेवा’ के अनुबंध के तहत होंगी, इसलिए इसे ‘सेवा’ की परिभाषा के दायरे से बाहर रखी जाएंगी.’ वकालत का पेशा अद्वितीय है और वकीलों के काम की प्रकृति को विशिष्ट बताते हुए पीठ ने कहा कि इसकी तुलना अन्य पेशे या व्यवसायों से नहीं की जा सकती. सुप्रीम कोर्ट ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 86, (जिसे 20 में संशोधित किया गया था) का उद्देश्य उपभोक्ताओं को अनुचित एवं अनैतिक व्यापार प्रथाओं से सुरक्षा प्रदान करना था और विधायिका का इरादा कभी भी व्यवसायों या सेवाओं को शामिल करने का नहीं था. शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘ऐसे में यदि सभी पेशेवरों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं को भी उपभोक्ता संरक्षण कानून के दायरे में लाया जाता है, तो आयोगों और मंचों में मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी.
यह था एनसीडीआरसी का फैसला एनसीडीआरसी ने 2007 में पारित अपने फैसले में कहा था कि वकील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में आते हैं और सेवा में किसी भी कमी के लिए उनके मुवक्किलों द्वारा उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दायर किया जा सकता है. अधिनियम की धारा 2(1)(ओ) ‘सेवा’ शब्द को ‘किसी भी विवरण की सेवा’ के रूप में परिभाषित करती है.