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जानें क्यों हैं खास, 600 साल पुराने झारखंडी महादेव के दर्शन किए आपने
गोरखपुर. सावन के महीने में भगवान भोले शंकर को जलाभिषेक करने से विशेष लाभ होता है. शिवलिंग अगर स्वंयभू हो और पीपल के पेड़ के नीचे हो तो पूजा पाठ का लाभ कई गुना बढ़ जाता है. ऐसा ही एक शिवालय गोरखपुर में भी मौजूद है. जिसे लोग झारखंडी महादेव मंदिर के नाम से जानते हैं. पुजारियों का दावा है कि ये मंदिर करीब 600 साल पुराना है. ऐसी मान्यता है कि जिस स्थान पर आज मंदिर है, पहले यहां पर घना जंगल हुआ करता था.
खास है मंदिर के पीछे की कहानी
इस मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन कथा भी है. इसके अनुसार, एक लकड़हारा यहां पर पेड़ काट रहा था कि तभी कुल्हाड़ी से एक पत्थर टकराया और उससे खून की धारा निकलने लगी. जिसके बाद लकड़हारे ने इसकी जानकारी अन्य लोगों को दी. इसी बीच यहां के जमींदार को रात में भगवान भोले का सपना आया. जिसके बाद से स्थानीय लोग के साथ जमींदार ने शिवलिंग पर दूध का अभिषेक किया और पूजा पाठ शुरू हुआ. इसके बाद शिवलिंग ऊपर की तरफ आया और तभी से यहां पर पूजा पाठ शुरू हुआ.
मंदिर के पास पीपल का पेड़ भी खास
बता दें कि शिवलिंग पर आज भी कुल्हाड़ी के निशान देखे जा सकते हैं. शिवलिंग के बगल में एक विशालकाय पीपल का पेड़ है. ये पेड़ पांच पौधों से मिलकर बना है. पीपल की जड़ों ने इस तरह रूप ले लिया है कि वह एक बारगी देखने पर पंच नाग जैसी लगती हैं. यहां के पुजारी के मुताबिक, पीपल करीब 250 साल पुराना है. यहां पर भगवान शंकर के साथ साथ वासुदेव का भी वास है. यही कारण है कि ये मंदिर विशेष है.
शिवलिंग पर नहीं बना पाते छत…
झारखंडी महादेव मंदिर में शिवलिंग खुले आसमान के नीचे है. कई बार मंदिर प्रशासन और भक्तों ने मिलकर यहां छत डालने की कोशिश की लेकिन हमेशा किसी ना किसी कारण से ऐसा संभव नहीं हो सका. उसके बाद शिवलिंग को खुले में ही छोड़ दिया गया. अब उसके ऊपर पीपल के पेड़ की छाया रहती है. पुजारियों का कहना है कि शास्त्रों में लिखा है कि अगर हम किसी मंत्र का जप करते हैं तो उसका लाभ मिलता है, अगर उसी मंत्र का जप नदी के किनारे करते हैं तो दस गुना लाभ मिलता है, यही काम पीपल के पेड़ के नीचे करते हैं तो 100 गुना लाभ मिलता है. यहां पर भगवान शिव पीपल के पेड़ के नीचे विराजमान हैं इसलिए यहां पर पूजा करने से अनंत फल मिलता है.