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जानिये अनसुनी कहानी, देश की पहली लेडी डाॅन जिसे कहते थे किडनैपिंग क्वीन
लखनऊ : लेडी डॉन एक ऐसा शब्द जिसे सुनकर जहन में खौफ व मासूमियत दोनों आती है. आज हम आपको कहानी सुनाते हैं एक ऐसी लड़की की जो कम समय में तमाम ख्वाहिशें पूरी करने का सपना लेकर मुम्बई आई थी. इसी महत्वाकांक्षा ने उसे अपराध की दुनिया के सबसे बड़े चेहरे ओम प्रकाश उर्फ बबलू श्रीवास्तव तक पहुंचाया. वो लड़की अर्चना बालमुकुंद शर्मा से लेडी डॉन बन गयी.
ये शताब्दी का आखिरी दौर का था. लखनऊ में जरायम की दुनिया में एक नया अध्याय बहुत मजबूत हो रहा था. कहने को तो गैंग बबलू श्रीवास्तव का था, लेकिन चर्चा हो रही थी अर्चना बालमुकुंद शर्मा के नाम की. अर्चना की कहानी में रहस्य ही रहस्य है. देखते ही देखते बचपन में रामलीला में सीता का रोल निभाने वाली सीधी सादी लड़की हिंदुस्तान की पहली लेडी डॉन बन गई. कहते हैं कि अर्चना शर्मा ने अपने कई नाम रख रखे थे, जिसमें पप्पी शर्मा, महक शर्मा, मनीषा, मीनाक्षी व सलमा मशहूर थे. अर्चना की असल कहानी महाकाल के धाम उज्जैन से शुरू होती है. उज्जैन के पाइप फैक्ट्री माधव नगर में रहने वाले एमपी पुलिस के हेड कांस्टेबल बालमुकुंद शर्मा की चार बेटियों में तीसरे नम्बर बेटी थी अर्चना शर्मा. बालमुकुंद अपनी बेटी अर्चना को पढ़ा लिखाकर वकील बनाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने अपने एक रिश्तेदार से कहकर लखनऊ यूनिवर्सिटी में अर्चना का दाखिला करा दिया था. पिता भले ही बेटी को वकील बनाना चाहते थे, लेकिन अर्चना के मन में कुछ और ही चल रहा था.
अर्चना को फिल्मों में अपनी किस्मत अजमानी थी. पढ़ाई का आखिरी साल छोड़कर वो बॉलीवुड में हीरोइन बनने का सपना लेकर पहुंच गई, लेकिन एक फ़िल्म में छोटा सा रोल मिलने के बाद उसे काम मिलना बंद हो गया. ऐसे में उसके सपने औंधे मुंह गिर गए. कहा तो ये भी जाता है कि अर्चना को मुम्बई में हीरोइन बनने का सपना दिखाने वाला उसके साथ पढ़ने वाले गाजीपुर जिले के ओम प्रकाश उर्फ बबलू श्रीवास्तव था. उस दौर में क्राइम रिपोर्टिंग करने वाले मनीष मिश्रा बताते हैं कि अर्चना व बबलू बस एक दूसरे को उतना ही जानते थे, जितना कॉलेज की किसी क्लास में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं एक दूसरे को जानते हैं. मनीष कहते हैं कि बबलू ने अर्चना को अपना सपना पूरा करने की हिम्मत दी थी, जिस कारण वो मुंबई चली गयी. हालांकि उसके बाद बबलू श्रीवास्तव की एंट्री जरायम की दुनिया में हो गई, जिससे शायद अर्चना उसके दिमाग से ओझल हो गयी. वहीं दूसरी तरफ अर्चना मुम्बई में संघर्ष कर रही थी.
मुम्बई में अर्चना संघर्ष कर रही थी, उसके बावजूद उसे काम नहीं मिल रहा था. अब वो परेशान रहने लगी थी. उसे लगा कि अब उसका जीवन रुक चुका है. ऐसे में उसके सामने उम्मीद की रोशनी जली और एक नामचीन ओर्केस्टा बावला म्यूजिक कम्पनी में उसे सिंगर व स्टेज आर्टिस्ट का काम मिला. आईजी के पद से रिटायर हुए तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी राजेश पांडेय बताते हैं कि दिसम्बर 1993 में अर्चना बावला म्यूजिक पार्टी के साथ दुबई गयी. जहां उसकी मुलाकात बड़े व्यापारी पीतांबरा मिगलानी से हुई. दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा और मिगलानी अर्चना को लेकर मुंबई वापस आ गया. 10 फरवरी 1994 में दोनों ने सगाई कर ली और मई 1995 को शादी. अब दोनों ही लोग दुबई में रहने लगे. इसी दौरान अर्चना को पीताम्बरा की दूसरी पत्नी के बारे में पता चला तो पीताम्बरा के बोरीवली स्थित आलिशान मकान की पावर ऑफ अटॉर्नी अपने नाम कराकर मुम्बई आ गई.पीताम्बरा भी उसके पीछे-पीछे मुम्बई आया और अर्चना का पासपोर्ट छीनकर उसे जला दिया. अब अर्चना का पासपोर्ट जल चुका था. पति पीताम्बरा भी उससे अलग हो चुका था. ऐसे में उसने दुबई वापस जाने के लिए अपने करीबी सुरजीत सिंह बाला से संपर्क किया और रेफरेन्स वीजा बनवाकर साल 1995 में दुबई पहुंच गई. अर्चना ने दुबई के एक क्लब में नौकरी की, जहां उसकी मुलाकात दाऊद इब्राहिम के गुर्गे इरफान गोगा से हुई. इरफान का दुबई में सिक्का चलता था. इरफान ने अर्चना के लुक्स, उसके बोलने के तरीकों को देखकर अपने गैंग में शामिल होने के लिए कहा. अर्चना ने पहले तो मना किया, लेकिन दूसरी मुलाकात में हां कर दी. अर्चना दुबई के फालूदा होटल में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी करने लगी थी. इसी दौरान इरफान ने इंदौर के बड़े व्यापारी जगदीश मोतीरमवानी की किडनैपिंग का काम अर्चना को दिया. उसने ये काम बखूबी किया, अब लोग अर्चना को किडनैपिंग क्वीन कहने लगे थे.
वैसे तो कहा जाता है कि अर्चना की बबलू श्रीवास्तव से मुलाकात लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही हुई थी. तब से ही वो बबलू के साथ रहती थी. इस बात की तस्दीक क्राइम फील्ड की रिपोर्टिंग करने वाले मनीष मिश्रा भी करते हैं. वह बताते हैं कि बबलू श्रीवास्तव अर्चना को अपने साथ सिर्फ इसलिए रखता था क्योंकि जब भी वो हवाला का पैसा या फिर किडनैपिंग की रैनसम मनी गाड़ी से ले जाता था तो अर्चना के साथ होने पर पुलिस उन्हें अनदेखा कर देती थी, लेकिन पुलिस अधिकारी इस बात को नहीं मानते हैं. उनका मानना है कि अर्चना की बबलू से पहचान साल 1997 में हुई थी.
रिटायर्ड पुलिस अधिकारी के मुताबिक, साल 1997 में पहली बार अर्चना ने बबलू श्रीवास्तव की सिर्फ आवाज सुनी थी. हुआ ये था कि 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के बाद अंडरवर्ल्ड दो समुदायों में बंट गया था. बबलू श्रीवास्तव ने ब्लास्ट की घटना का विरोध करते हुए दाऊद इब्राहिम से नाता तोड़ लिया व दुबई से नेपाल आ गया. इरफान गोगा ने दाऊद की जगह बबलू को चुना और वो भी उसी के साथ हो चला. इसी दौरान 1997 को बबलू को सिंगापुर में गिरफ्तार कर लिया गया और भारत ले आया गया. अब इरफान अर्चना के साथ मिलकर गैंग को आगे बढ़ा रहा था. अर्चना इरफान गोगा के इशारों पर एक के बाद एक भारत के अलग अलग हिस्सों में किडनैपिंग कर रही थी. इसी दौरान उसने अर्चना शर्मा को एक बड़े बिल्डर एल डी व्यास की किडनैपिंग का जिम्मा दिया.