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Uttar Pradesh News : प्राचीन और आधुनिक कला का अनोखा मिश्रण है काशिराज काली मंदिर

Kavita2
24 Jun 2024 5:41 AM GMT
Uttar Pradesh News :  प्राचीन और आधुनिक कला का अनोखा मिश्रण है काशिराज काली मंदिर
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Uttar Pradesh News : उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित काशीराज काली मंदिर 200 साल पुराना है। तत्कालीन काशी नरेश के परिवार ने इसका निर्माण करवाया था। बता दें, वास्तुकला के हिसाब से इस मंदिर को श्रद्धालु और कलाप्रेमी काफी पसंद करते हैं। मंदिर की वास्तुकला और कारीगरों द्वारा की गई शिल्पकारी वाकई यहां आने वालों को आश्चर्य से भर देती हैं। भारत की विकसित पाषाण कला के सबूत
इस मंदिर का निर्माण पूरी तरह
से पत्थर की मदद से किया गया है, जो रथ के आकार में बना है। मंदिर की दीवारों और खंभों पर तराशी गई पत्थर की पंखुड़ियां, घंटियां और अंगूठियां उस समय भी भारत की अत्यधिक विकसित पत्थर की कला के ठोस सबूत हैं। यहां बने डिजाइन से लेकर नक्काशी की बारीकी तक, सब कुछ इतना सटीक है कि यह कल्पना करना मुश्किल है कि उन्होंने उस समय जब तकनीक इतनी विकसित नहीं थी तब बिना किसी आधुनिक उपकरण के इसे कैसे तराशा होगा। मंदिर के खंभे हैं बेहद खास
मंदिर को राजा की निजी संपत्ति कहा जाता है। काशी राज काली मंदिर नाम के साथ ही साथ इसे वाराणसी के गुप्त मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। मंदिर परिसर का भारी नक्काशीदार द्वार उस युग की वास्तुकला कौशल की मिसाल है। द्वारों और मंदिर के खंभों पर शेर, हाथी, नर्तकों, देवी-देवताओं को इतनी सुंदरता से उकेरा गया है कि यह कला देखते ही बनती है। प्राचीन और आधुनिक कला का मिश्रण
मंदिर पर की गई कलाकारी को छिपा हुआ खजाना भी कहा जाता है। खास बात यह है कि इस कलाकृति को देखने पर ऐसा लगेगा कि ये कृतियां लकड़ी पर उकेरी गई हैं मंदिर के निर्माण के लेकिन जब इन्हें छूकर देखा जाए तो पता चलता है कि यह कलाकारी लकड़ी पर नहीं पत्थर पर की गई है। मंदिर का वास्तु प्राचीन और आधुनिक कला का मिश्रण है।
गर्भगृह में मौजूद है शिवलिंग Shivlinga is present in the sanctum sanctorum
18वीं सदी के इस मां काली को समर्पित मंदिर के गर्भगृह में गौतमेश्वर शिवलिंग भी है। यह भी कहा जाता है कि उस समय यहां गौतम ऋषि का आश्रम था और उन्होंने यहां शिवलिंग की स्थापना करके उसकी पूजा अर्चना की। इस वजह से इस शिवलिंग को गौतमेश्वर शिवलिंग कहते हैं। मंदिर के निर्माण के पीछे मान्यता है कि तत्कालीन नरेश को इस जगह एक अलौकिक शक्ति का आभास हुआ था और उनके परिवार ने शक्ति के सम्मान में इस मंदिर का निर्माण यहां करवाया। नवरात्रि में नौ दिनों तक यहां बड़ी धूम-धाम से उत्सव का आयोजन किया जाता है।
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