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कल्याण सिंह ने राम के लिए कुर्बान कर दी CM की कुर्सी, 'बाबूजी' को बहुत पसंद थी उड़द की दाल
राममंदिर आंदोलन से सेनापति के रूप में पहचान बनाने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की आज प्रथम पुण्य तिथि है. कल्याण सिंह की पहली पुण्य तिथि भारतीय जनता पार्टी (BJP) बड़े स्तर पर मना रही है. लखनऊ के कल्याण सिंह कैंसर इंस्टीट्यूट में उनकी बड़ी प्रतिमा का सीएम योगी आदित्यनाथ अनावरण करेंगे.
दो बार बने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
साल 1991 में यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कल्याण सिंह को पिछड़ों का चेहरा बनाकर राजनीति की प्रयोगशाला में उतार दिया. कल्याण सिंह की छवि पिछड़ों के नेता के साथ-साथ एक फायर ब्रांड हिंदू नेता के तौर पर मजबूत हुई. कल्याण सिंह 2 बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे. वह बीजेपी के यूपी में पहले सीएम भी थे. पहले कार्यकाल में 24 जून 1991 से 6 दिसम्बर 1992 तक और दूसरी बार 21 सितंबर 1997 से 12 नवंबर 1999 तक मुख्यमंत्री रहे.
नहीं चलने दी थीं कारसेवकों पर गोलियां
ऐसा कहा जाता है कि कल्याण सिंह एक स्पष्ट नेता थे और स्पष्टता से अपनी बात रखते थे. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भी उन्होंने साफ कह दिया था कि सुरक्षा के सारे इंतजामा किए गए थे, लेकिन बतौर सीएम उन्होंने ही आदेश दिया था कि कारसेवकों पर गोली न चलाई जाए. 6 सितंबर 1992 को जो हुआ, उसकी पूरी जिम्मेदारी कल्याण सिंह खुद ली थी और सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था.
अतरौली में हुआ था जन्म
कल्याण सिंह का जन्म यूपी के अलीगढ़ जिले में अतरौली तहसील के मढ़ोली गांव में 5 जनवरी, 1932 में हुआ था. वहीं से राजनीति की शुरुआत कर लखनऊ, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश तक राजनीति में एक से बढ़कर एक ऊंचा कद हासिल किया. 21 अगस्त 2021 में कल्याण सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया. राम जन्मभूमि को आज जो रूप मिला है, उसके लिए संघर्ष करने वालों में से एक कल्याण सिंह भी थे.
बहुत ही सरल स्वभाव के थे कल्याण सिंह
बीजेपी के कद्दावर नेता रहे दिवंगत कल्याण सिंह की यादें संभल जिले के देवापुर गांव से जुड़ी हुई हैं. संभल में उनका ससुराल है. उनकी सादगी और सरल स्वभाव की चर्चा कर कल्याण सिंह को यहां लोग हमेशा याद करते हैं.
प्यार से बुलाते थे 'बाबूजी'
सभी लोग कल्याण सिंह को 'बाबूजी' कहकर बुलाते थे. उनकी सादगी और ईमानदारी के सभी लोग कायल थे. उड़द की धुली दाल उन्हें बेहद पसंद थी. जब भी वह ससुराल देवापुर आते थे, तो उड़द की दाल खास तौर से बनवाई जाती थी.
सफलता के लिए धैर्य का होना बहुत जरूरी
जब भी लोग उनसे मुलाकात करते और कोई राय लेते तो वह उनका मार्गदर्शन करते थे. हमेशा उनसे कहते थे कि सफलता के लिए धैर्य का होना बहुत जरूरी है.