उत्तर प्रदेश

न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी: न्याय हमेशा पक्षकार पर नहीं, कारण पर केंद्रित होना चाहिए

Admin Delhi 1
25 July 2022 12:48 PM GMT
न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी: न्याय हमेशा पक्षकार पर नहीं, कारण पर केंद्रित होना चाहिए
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न्यूज़ लखनऊ: मानव के पांच वाह्य ज्ञानेन्द्रियां होती है, परन्तु इनसे अधिक महत्वपूर्ण मानव की आंतरिक इन्दियां होती हैं। वाह्य ज्ञानेन्द्रियों से मानव सूँघता, सुनता है, परन्तु आन्तरिक इन्द्रियों से उसे दूरदर्शिता, पूर्वाभाष, विश्वास इत्यादि का ज्ञान होता है। हमें अपने बाह्य इन्द्रियों की जगह आन्तरिक इन्द्रियों पर अधिक विश्वास करना चाहिए। ये बातें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने कही। वे न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान गोमतीनगर लखनऊ में आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम में बोल रहे थे। सेन्सिटाइजेशन ऑफ ड्रिास्ट्रिक्ट कोर्ट जजेज ऑन जेण्डर जस्टिस एण्ड डिफरेंटली एबल्ड विक्टिम्स व सरवाइवर्स ऑफ सेक्सुअल एब्यूज पर कार्यक्रम था। न्ययामूर्ति माहेश्वरी ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों को अपने दृष्टिकोण में संतुलन बनाना चाहिए अर्थात हमें न तो पक्षकारों पर अत्यधिक करुणा दर्शाना चाहिए और न ही बहुत कम करुणा दर्शाना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्याय हमेशा पक्षकार केन्द्रित नहीं होना चाहिए, बल्कि 'कारण केन्द्रित' होना चाहिए अर्थात हम न्याय किसी कारण के लिए कर रहे हैं न कि किसी पक्षकार के लिए। उन्होंने कहा कि हमें न्यायिक कार्यवाहियों के दौरान असंगत तत्वों, प्रश्नों तथा ऐसे किसी भी अवयव को, जो सुसंगत नहीं है, को न्यायिक कार्यवाही में बिल्कुल भी प्रवेश नहीं करने देना चाहिए।

इस अवसर पर न्यायमूर्ति राजेश बिन्दल ने कहा कि हाल ही में आये कक्षा-10 एवं 12 के नतीजों में हमारी बेटियों ने आज बेटों से ज्यादा अंक हासिल किए हैं एवं उनका उत्तीर्ण प्रतिशत भी बेटों से अधिक है। उन्होंने कहा कि हम ऐसे प्रदेश में रहते हैं जहाँ रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी गोद में एक बेटे के साथ स्वतंत्रता संग्राम में अभूतपूर्व योगदान दिया था, परन्तु हमारी बेटियां या महिलाएं तब तक सफल नहीं हो सकती, जब तक उन्हें परिवार तथा समाज का सकारात्मक सहयोग न प्राप्त हो। बेटियों को परिवार का सहयोग तो प्राप्त हो रहा है, परन्तु समाज का नहीं। अतः यह हमारी जिम्मेदारी है कि समाज के तौर पर हम प्रत्येक महिला को सहयोग प्रदान करें। न्यायमूर्ति बिन्दल ने कहा कि पीड़ित दिव्यांगों से संबंधित वादों का कोई निश्चित आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, परन्तु हमें ऐसे मामलों को अधिक संवेदना से देखने की आवश्यकता है, क्योंकि ऐसे मामलों में कभी-कभी दिव्यांग को पता ही नहीं होता है कि जो उसके साथ हो रहा है, वह अपराध की श्रेणी में आता है अथवा नहीं। इस अवसर में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा ने उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति यू.यू. ललित के एक वक्तव्य का उल्लेख करते हुए कहा कि 'ऐसी संगोष्ठियां जनमानस से ज्यादा स्वयं को शिक्षित करने के लिए आयोजित होती हैं'। इस अवसर पर न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय ने अतिथिगणों का स्वागत किया। संस्थान के निदेशक विनोद सिंह रावत ने अतिथिगणों को धन्यवाद ज्ञापित किया।

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