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उत्तर प्रदेश
झांसी का सुकुवां-ढुकुवां बांध वर्ल्ड हेरिटेज में हुआ शामिल, पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद
Renuka Sahu
13 Jan 2022 5:47 AM GMT
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फाइल फोटो
सुकुवां-ढुकुवां बांध को देश की सबसे पुरानी एवं बेहतरीन इंजीनियरिंग वाली सिंचाई परियोजना के तौर पर चयनित किया गया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सुकुवां-ढुकुवां बांध को देश की सबसे पुरानी एवं बेहतरीन इंजीनियरिंग वाली सिंचाई परियोजना के तौर पर चयनित किया गया है। इसका चयन वर्ल्ड हेरिटेज इरीगेशन श्रेणी में विश्वस्तरीय संगठन इंटरनेशनल कमीशन ऑन इरीगेशन एंड ड्रेनेज (आईसीआईडी) ने किया है। उसने पिछले वर्ष उन जलाशयों का चिन्हिकरण किया था, जो 100 साल के बाद भी काम कर रही हैं।
पिछले वर्ष अगस्त माह में केंद्रीय जल आयोग ने इसके नाम की संस्तुति की थी। बुधवार को सिंचाई विभाग के विभागाध्यक्ष विनोद कुमार निरंजन ने इसको चुन लिए जाने की सूचना दी। पुरातन सिंचाई स्थल में शामिल होने से झांसी में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
करीब 112 वर्ष पुराना सुकुवां-ढुकुवां बांध आज भी अपनी खूबसूरती और बेहतरीन इंजीनियरिंग के चलते देश के चुनिंदा जलाशयों में शुमार है। पिछले वर्ष इंटरनेशनल कमीशन ऑन इरीगेशन एंड ड्रेनेज (आईसीआईडी) ने पूरे दुनिया के सबसे पुरानी बेहतरीन सिंचाई परियोजनाओं को चिन्हित करने की कवायद शुरू की थी। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने उप्र से सुकुवां ढुकुवां का नाम भेजा। अधिशासी अभियंता उमेश कुमार के मुताबिक बेतवा नदी पर स्थित यह बांध 1909 में बनाया गया। इसकी संरचना में आज तक कोई बदलाव नहीं हुआ। इसी आधार पर इसे सबसे बेहतरीन संरचना के तौर पर चुना गया।
सिंचाई विभाग के विभागाध्यक्ष विनोद कुमार निरंजन का कहना है कि पुरातन सूची में शामिल होने से इसकी संरचना में अब कोई भी बदलाव न करके इसे भविष्य में भी संरक्षित रखा जाएगा। सुकुवां-ढुकुवां बांध झांसी के बबीना ब्लॉक में है। अभियंताओं का कहना है कि संरक्षित करने के बाद यहां पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। सूची में शामिल होने के बाद यहां तक का पहुंच मार्ग चौड़ा होगा। उसकी कनेक्टिवटी बेहतरीन की जाएगी। सुरक्षा के लिए अलग से गार्ड तैनात होंगे। देश-विदेश के पर्यटकों की आवाजाही भी बढ़ेगी।
यह महत्वपूर्ण उपलब्धि है। प्रदेश की यह इकलौती सिंचाई संरचना है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अद्भुत इंजीनियरिंग के लिए मान्यता मिली। अब आगे भी इसे इसी रुप में संरक्षित रखा जाएगा। आसपास की जगह को विकसित किया जाएगा।
नहीं बदली बांध की सूरत
सुकुवां-ढुकुवां बांध का निर्माण हुए 112 साल गुजर चुके हैं, लेकिन इसकी सूरत में आज तक कोई बदलाव नहीं हुआ है। हर साल इसे देखने हजारों लोग यहां पहुंचते हैं। मानसून के दौरान जब यहां से तीन लाख क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ा जाता है, तब इसका नजारा देखने लायक होता है। उस दौरान रोजाना हजारों लोग यहां पहुंचते हैं। इसके अंदर बनी सुरंग से करीब पचास फीट ऊंचाई से गिरता पानी अलग ही रोमांच पैदा करता है। इतनी पुरानी संरचना होने के बावजूद यह जलाशय जस का तस है। यहां अभी भी अंग्रेजों के जमाने में लगे फाटक एवं अन्य उपकरण काम कर रहे हैं।
अधिशासी अभियंता उमेश कुमार के मुताबिक पारीछा बांध से पानी कम मिलने पर सबसे पहले 1881-82 में तत्कालीन अधिशासी अभियंता थार्नहिल ने पारीछा से करीब 112 मील ऊपर बेतवा नदी का सर्वे किया। इस रिपोर्ट के आधार पर अधिशासी अभियंता एटकिंसन ने वर्ष 1901 में बेतवा नदी के कमांड एरिया में सुकुवां-ढुकुवां बांध का प्रस्ताव बनाया। इसकी मदद से रबी की फसल को भी पानी देना तय हुआ। इसके बाद वर्ष 1905 में इसका निर्माण आरंभ हुआ। चार साल बाद 1909 में इसका निर्माण पूरा हुआ।
इसकी कुल लागत 23.98 लाख रुपये आई। अभियंताओं का कहना है कि उस वक्त के लिहाज से यह रकम अधिक थी, लेकिन सिंचाई की जरुरत को देखते हुए सरकार ने बजट में कटौती नहीं की। निर्माण के दौरान इसका कैचमेंट करीब 82440 मील था। निर्माण यहां पानी संग्रहित होता है। अभी इसे 273.71 मीटर तक भरा जाता है। पूरा भरा होने पर यहां अभी भी 57.77 मीट्रिक घन मीटर पानी स्टोर किया जाता है।
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