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Jhansi: घरों में किलकारियां गूंजने से पहले बिलख पड़ा आंगन
झाँसी: बच्चों के शव लेते वक्त कांपते हाथ, ..रोती आंखें, ..फट पड़ने को आतरू कलेजा और सीने में दफन पहाड़ सा दर्द. गुजरे को मेडिकल कॉलेज के स्पेशल न्यू बॉर्न केयर यूनिट में लगी आग तो बुझ गई. लेकिन, बच्चों की मौत का सिलसिला बरकरार है. तीन और बच्चों की मौतों के बाद घरों में किलकारियां गूंजने से पहले मांओं, नाते-रिश्तेदारे, दादा-दादी, नाना-नाली बिलख पड़े. उनकी चीख-पुकार से आंगन दर्द भरी आंखों से रो पड़ा.
गमगीन माहौल, रोती आंखें, चीखती मांओं की गोद और पुकारती दादा-दादी की नजरों के बीच बच्चों को अंतिम संस्कार किया. बीती रात लहचूरा के गांव चकारा, बबीना ब्लॉक के बाजाना और बचेरा के तीन बच्चों ने दम तोड़ा. अग्निकांड में रेक्स्यू कर बचाए गए तीन और बच्चों की मौत हो गई. जबकि 7 से 15 दिन के बच्चों के शव परिजनों को सौंपे गए तो सबकीं आंखें रो पड़ीं. इस मंजर अल्फाजो में बयां करने के शब्द नहीं थे. कल तक जिन घरों के आंगन में नाती-नातिन, बच्चों की किलकारियां गूंजने को आतुर थीं और पोस्टमार्टम के बाद जब परिजनों को शव सौंपे गए मंजर बेहद दर्दनाक था. फूल से नाजुक बच्चों के शव लेते वकत हथेलियां थर-थरा रही थीं. दादा-दादी नाती का शव नजरें घुमानें लगे. जब शव गांव में पहुंचे तो मंजर भी भयाभह हो गया. नाते-रिश्तेदार, नाना-नानी का कलेजा फटा जा रहा था. सूनी हो चुकी माएं फूट-फूटकर रो रहीं. तहसील मऊरानीपुर के थाना लहचूरा के गांच चकारा निवासी कृष्ण कांत की पत्नी पूजा को 6 नवंबर को प्रसव पीड़ा हुई थी. हालत गंभीर होने पर झांसी रेफर किया गया. 7 नवंबर को जब उसने बेटे को जन्म दिया तो दादा कल्लू खुशी से झूम उठे. गांव में जाकर लड्डू बांटे. लेकिन, बच्चे की हालत न होने पर उसे एसएनसीयू वार्ड में रखा गया था. 15 नवंबर की रात लगी आग में बच्चा किसी तरह बच गया तो भगवान का शुक्रिया अदा किया. लेकिन, जब उसकी मौत हो गई तो पूरा परिवार बिलख पड़ा. पूजा अपने बेटे गोद में लेने के लिी जिद करती और बेहोश हो जाती. हालांकि नम आंखों के बीच बच्चों का अंतिम संस्कार किया गया.
साहब, कभी न भूलने वाला दे गया गम
गांव चकारा के रहने वाले कृष्णकांत बेटे की मौत के बाद सुध-बुध खो बैठे. उनकी पत्नी पूजा को नाते-रिश्तेदार होश में लाते और स्वयं ही रोने लगते. दादा कल्लू की आंखें नाती के शव को देख नजरें नहीं उठा पा रही थीं. लोगों ने बताया कि इतना गम बड़ा कभी भूले नहीं भूल सकते.
नहीं खाया सही तरह से खाना
चकारा के कृष्णकांत व उनके पिता कल्लू ने बताया कि जिन दिन आग लगी थी तभी दिल दहल उठा था. छह को पूजा को परेशानी हुई. 7 को झांसी लेकर पहुंचे तो बेटे को जन्म दिया. 15 को वह एसएनसीयू वार्ड में भर्ती था. रात को 10.30 बजे आग लगी तो भयाभह स्थिति थी. जब पूछताछ कई तो उनका बेटा नहीं मिला. रात भर रोते-बिलखते रहे. दूसरे दिन को दिन में पूछताछ के बाद व लगी पर्ची से बेटे को पहनाना तो जान में जान आई. लेकिन, इसके अलावा जब तबियत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती तो दिन में लगातार एक दर्द था.
फूट-फूटकर रो पड़ा गांव
गांव चकरा में पूजा पत्नी कृष्ण कांत, बाजना में काजल पत्नी बॉबी और बेमर में महेंद्र पत्नी लक्ष्मी के बच्चों के शव जब गांव पहुंचे तो पूरा गांव रो पड़ा. परिजनों पर मानो गम का पहाड़ टूट पड़ा. लोग एक ही बात कहते दिखे. इतनी अल्प आयु क्यों दी. पूरी जिंदगी यह गम नहीं भुलाया जा सकता. गमगीन माहौल के बीच बच्चों का अंतिम संस्कार किया गया.