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आईवीआरआई के वैज्ञानिक का कहना है कि गाय-भैंसों में 77 प्रकार के बैक्टीरिया फैलाते हैं थनैला
बस्ती: गाय-भैंसों में जानलेवा बीमारी थनैला का कारक दो-चार नहीं, बल्कि 77 प्रजाति के 3 बैक्टीरिया हैं. आईवीआरआई के वैज्ञानिक का कहना है कि इनमें से ज्यादातर बैक्टीरिया ऐसे हैं, जिनपर कई दवाएं बेअसर हैं. इसलिए पशु चिकित्सकों को सलाह दी गई है कि बगैर टेस्ट कराए किसी पशुओं को थनैला बीमारी की दवा न दें.
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के वैज्ञानिक डॉ. भोजराज सिंह का कहना है कि गाय-भैंसों में अक्सर थनैला बीमारी होने पर पशु चिकित्सक उसे कुछ प्रचलित दवाइयां दे देते हैं. इनसे कुछ पशुओं की बीमारी तो दूर हो जाती है, लेकिन कइयों में इसका असर नहीं होता है. दवा बेअसर होने पर कई मामलों में गाय-भैंसों की मौत हो जाती है. पिछले कुछ महीनों में वैज्ञानिकों के संज्ञान में जब ऐसे मामले आए तो डॉ. भोजराज के निर्देशन में पांच सदस्यीय टीम ने विभिन्न जगहों से आए थनैला बीमारी के 122 सैंपल का टेस्ट किया. टेस्ट के दौरान टीम ने यह देखा कि थनैला बीमारी के कारक दो-चार बैक्टीरिया नहीं बल्कि 77 प्रजाति के 3 बैक्टीरिया हैं. इनमें से 60 फीसदी बैक्टीरिया ऐसे हैं, जिन्होंने खुद में प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है, जिन पर दवाइयों का कोई असर नहीं है. शोध के बाद वैज्ञानिक डॉ. भोजराज सिंह ने सभी पशु चिकित्सकों को सलाह दी है कि बिना टेस्ट कराए किसी भी थनैला ग्रसित गाय-भैंसों को कोई दवा न दी जाए. ऐसा हो सकता है कि जिस बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए दवा दे रहे हों, हो सकता है कि उस पशु में किसी दूसरे बैक्टीरिया के कारण बीमारी हुई हो. ऐसे में पशु का टेस्ट कराना जरूरी है.
क्या है थनैला बीमारी: दुधारू पशुओं के थन में सूजन, कड़ापन और दर्द थनैला रोग के लक्षण होते हैं. बहुत तेज, तेज और धीमे दीर्घकालीन थनैला रोग में थन सूजे हुए, गर्म, सख्त और दर्ददायी हो जाते हैं. थनों से फटा हुआ, थक्के युक्त या दही की तरह जमा हुआ दूध निकलता है. यह समान्यत गाय, भैंस, बकरी एवं सूअर समेत लगभग सभी वैसे पशुओं में पायी जाती है, जो अपने बच्चों को दूध पिलातीं हैं. थनैला बीमारी पशुओं में कई प्रकार के जीवाणु, विषाणु, फफूँद एवं यीस्ट तथा मोल्ड के संक्रमण से होता हैं.