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चिंता में इंडस्ट्री, चार साल से नहीं बढ़ी खपत कई साल से उत्पादन भी हो रहा है कम

न्यूज़क्रेडिट: अमरउजाला
यूपी की 120 चीनी मिलें हर साल लगभग 100 लाख टन चीनी का उत्पादन करती हैं। इस साल इससे थोड़ा ज्यादा का उत्पादन हुआ है। वहीं, प्रदेश में चीनी की घरेलू खपत बढ़ नहीं रही है।
हर शुभ अवसर पर मुंह मीठा कराने की परंपरा वाले देश में लोग मीठे से दूरी बना रहे हैं। यूपी का हाल भी कुछ ऐसा ही है। पिछले चार साल से चीनी की घरेलू खपत स्थिर है और उत्पादन भी कम होता जा रहा है। इससे चीनी उद्योग में चिंता है। वहीं, सरकार इस उद्योग की चिंता दूर करने के लिए चीनी निर्यात का कोटा बढ़ा रही है।
यूपी की 120 चीनी मिलें हर साल लगभग 100 लाख टन चीनी का उत्पादन करती हैं। इस साल इससे थोड़ा ज्यादा का उत्पादन हुआ है। वहीं, प्रदेश में चीनी की घरेलू खपत बढ़ नहीं रही है। उप्र. शुगर मिल्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों के अनुसार प्रदेश में चीनी की कुल बिक्री में 35 प्रतिशत ही घरेलू खपत होती है। बाकी 65 फीसदी संस्थागत बिक्री है। इनमें कोल्ड ड्रिंक, बेकरी, मिठाई, आइसक्रीम जैसे उत्पाद शामिल हैं।
अहम बात यह है कि जनसंख्या बढ़ने के बावजूद चीनी की खपत प्रदेश में नहीं बढ़ रही। एसोसिएशन के आंकडे़ बताते हैं कि पिछले चार वर्षों में यूपी में खपत 60 लाख टन से गिरकर 55 लाख तक टन प्रति वर्ष हो गई है। ऐसे में चीनी उद्योग को आगे बढ़ाने में चीनी मिलों को खतरा महसूस हो रहा है और आने वाले दिनों में यह किसानों के लिए भी संकट का सबब हो सकता है।
विश्वव्यापी खपत घटी
ब्राजील में सबसे ज्यादा चीनी की खपत है, लेकिन वहां भी लगातार यह ग्राफ गिर रहा है। 2014 में वहां चीनी की खपत 54.5 किग्रा प्रति व्यक्ति प्रति साल थी जो अब 49.8 किग्रा हो गई है। वहीं भारत में यह 19.8 किग्रा से गिरकर 18.4 किग्रा पर आ गई है। यही हाल विश्व के अन्य देशों का भी है।
कोरोना के चलते चीनी हुई कम
कोरोना महामारी के दौरान डायबिटिक लोगों को ज्यादा दिक्कत हुई। बताया जाता है कि इसके बाद लोगों ने चीनी खाना कम किया है। कोल्डड्रिंक आदि की खपत भी कम हुई है। चूंकि सबसे ज्यादा चीनी का इस्तेमाल इसी में होता है तो इसके घरेलू खपत का ग्राफ गिर गया है।
यूपी में 4-5 पांच किलो प्रति परिवार हो रही खपत
अपर आयुक्त चीनी उद्योग संजय आर भूसरेड्डी बताते हैं कि यूपी में चीनी की खपत कम हो गई है। यहां प्रति परिवार पहले लगभग 7 किलो तक हुआ करती थी। अब चार से पांच किलो प्रतिमाह पर आ गई।
45 लाख टन खप रहा गुड़
एक कारण यह भी है कि उप्र में गुड़ का उत्पादन भी खूब हो रहा है। यहां 45 से 50 लाख गुड़ का उत्पादन हो रहा है और अधिकतर की खपत यहीं होती है। फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स के चेयरमैन अरुण खंडेलवाल कहते हैं कि गुड़ तो सही मायने में औषधि है। इसका तो इस्तेमाल और बढ़ना चाहिए। पहले कोल्हू ज्यादा थे पर अब कम हो गए हैं।
यह बात तो सही है कि लोग अब चीनी कम खा रहे हैं। चाय भी फीकी ही पीने लगे हैं। हालांकि हमारे यहां इस साल चीनी का उत्पादन इसलिए कम हुआ क्योंकि बीच में मौसम खराब होने से गन्ने की फसल प्रभावित हुई। हालांकि हम चीनी निर्यात पर ज्यादा जोर दे रहे हैं
- लक्ष्मीनारायण चौधरी, गन्ना एवं चीनी मंत्री
पहले घरों में मिठाई आते ही बच्चे चट कर जाते थे। अब ऐसी स्थिति नहीं है। कोरोना के बाद तो लोग स्वास्थ्य को लेकर ज्यादा सचेत हो गए हैं। प्रति परिवार चीनी की खपत कम हो गई है। हालांकि सरकार ने चीनी निर्यात का कोटा बढ़ाया है और यह अच्छा है। हमारा यह उद्योग इससे बेहतर होगा
प्रदेश में लगातार गिर रहा है उत्पादन
वर्ष उत्पादन लाख टन
2018-2019 107.20
2019-2020 126.38
2020-2021 110.59
2021-2022 101.98
देश से चीनी का निर्यात (लाख टन)
2018-2019 38
2019-2020 57
2020-2021 75
2021-2022 112