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कांग्रेस में रहकर इंदिरा गांधी को दे डाली थी चुनौती, चार बार रहे सांसद
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के आजमगढ़ से चार बार सांसद चुने गए चंद्रजीत यादव का व्यक्तित्व कई मायनों में दूसरे नेताओं से बिल्कुल अलग था. उनका जन्म सरूपहा के एक किसान परिवार में 1 जनवरी 1930 को हुआ. प्रारंभिक शिक्षा गांव से ही प्राप्त करने के बाद उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बीए किया और फिर लखनऊ विश्वविद्यालय से उन्होंने एमए और कानून की पढ़ाई की. चंद्रजीत यादव की राजनीति में शुरू से ही दिलचस्पी थी. लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ने के दौरान ही 1953 में उन्होंने छात्र आंदोलन के दौरान 10 दिनों तक भूख हड़ताल भी की, जिसके चलते उन्हें निष्कासित कर दिया गया था. हालांकि बाद में देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के हस्तक्षेप के बाद आंदोलन भी समाप्त हुआ और उनका निष्कासन भी वापस हुआ.
यहीं से चंद्रजीत यादव की राजनीति में एंट्री हुई और उन्होंने कांग्रेस में सक्रिय होकर काम करना शुरू किया. चंद्रजीत यादव अपने सिद्धांत के पक्के थे. वह किसी के दबाव के आगे झुकते नहीं थे. कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इंदिरा गांधी को खुली चुनौती दे डाली. कांग्रेस के जब दो फाड़ हुए तो उन्होंने समाजवादी खेमे को चुना और 1978 में हुए आजमगढ़ लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार मोहसिना किदवई के सामने खड़े हो गए. हालांकि चुनाव में जीत तो नहीं मिली लेकिन उन्होंने कांग्रेस को मजबूत टक्कर दी.
चंद्रजीत यादव का राजनीतिक सफर
चंद्रजीत यादव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर सबसे पहले 1967 में आजमगढ़ लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. आजमगढ़ के वे दूसरे यादव सांसद थे. उनसे पहले 1962 में राम हरख यादव सांसद चुने गए थे. 1962 में आजमगढ़ की जमीनी हकीकत को समझते हुए कांग्रेस ने यादव प्रत्याशी को पहली बार उतारा था.कांग्रेस ये जान चुकी थी आजगमगढ़ में जीत के लिए इस जाति का साथ होना जरूरी है. चंद्रजीत यादव राजनीति में मजे हुए खिलाड़ी थे. इसके साथ ही उनकी बुनियादी चीजों पर गहरी समझ भी थी. 1971 में वह आजमगढ़ से ही दूसरी बार सांसद चुने गए. फिर 1977 में कांग्रेस के टिकट पर जनता पार्टी के राम नरेश यादव से चुनाव हार गए. इसी बीच कांग्रेस के समाजवादी खेमे में वे चले गए जिसके चलते वे इंदिरा की नीतियों का खुलकर विरोध करने लगे.
इंदिरा गांधी ने 1978 में मोहसिना किदवई को आजमगढ़ से प्रत्याशी उतारा तो चंद्रजीत यादव भी उनके खिलाफ खड़े हो गए थे. हालांकि उपचुनाव में वे तीसरे स्थान पर रहे. बाद में उन्होंने कांग्रेस को छोड़ दिया और 1980 में जनता पार्टी सेक्युलर के उम्मीदवार के रूप में आजमगढ़ की धरती से तीसरी बार जीत हासिल की. इसके बाद फिर उनकी कांग्रेस में वापसी होती है और 1989 में फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा. चंद्रजीत यादव ने 1991 में राम मंदिर लहर के दौरान भी आजमगढ़ की धरती से जनता दल के प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की. 1991 में पूरे देश में राम मंदिर की लहर थी. ऐसे में इस लहर में भी उन्होंने जनता पार्टी का परचम लहराया.
चंद्रजीत यादव ने उठाई थी जाति आधारित जनगणना की आवाज
आजमगढ़ से चार बार सांसद चुने गए चंद्रजीत यादव ने उस दौर में प्रिवी पर्स को आर्थिक सामाजिक रूप से पिछड़ी जनता के श्रम से उत्पादित संपत्ति की लूट करार दिया था और फिर संसद में इसका प्रस्ताव भी रखा. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के ना चाहते हुए भी इस प्रस्ताव को सदन से पास भी करा दिया. यही नहीं बैंकों का राष्ट्रीयकरण कराने के लिए भी उन्होंने खूब प्रयास किए. इसके अलावा मिल कारखानों में काम करने वाले कर्मकारों को मालिकान में शामिल करके और मुनाफे में हिस्सेदारी की वकालत भी की थी. उन्होंने ही देश में सबसे पहले जाति आधारित जनगणना की आवाज उठाई थी.