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आयकर विभाग की फेसलेस असेस्मेंट से मुश्किल में फंसे आयकर दाता
आगरा: आयकर विभाग की फेसलेस असेस्मेंट प्रक्रिया को लेकर करदाताओं के अनुभव अच्छे नहीं हैं. कर सलाहकारों का कहना है कि इस व्यवस्था ने उनके अनेकों क्लाइंट को टेंशन में ला दिया है. आय तो दूर की बात, उनकी हैसियत इतनी नहीं कि वे विभागीय अधिकारी द्वारा गणना किए गए टैक्स को चुका सकें. कुछ अरसा पहले इस प्रक्रिया को शुरू किया गया था. पारदर्शिता को लेकर इसे प्रत्यक्ष टैक्स व्यवस्था का बड़ा बदलाव कहा गया था.
विशेषज्ञों के अनुसार सबसे बड़ा नुकसान विभागीय नोटिस को लेकर हो रहा है. विभाग द्वारा नोटिस को पोर्टल पर ही अपडेट किया जा रहा है. इसकी जानकारी संदेश या ईमेल से भी होती है. लेकिन, तकनीकी दिक्कतों के कारण कई मामलों में यह जानकारी हो ही नहीं पाती. करदाता को पता नहीं चल पाता है कि पोर्टल पर नोटिस आ गया है. नोटिस का जवाब न देने की स्थिति में आयकर द्वारा इसे गैर अनुपालन मान लिया जाता है. और अपने सिस्टम द्वारा त्रित की गई सूचनाओं को आधार बनाते हुए पक्षीय आर्डर कर दिया जाता है. जिस करदाता का असेस्मेंट होता है, कई बार उसकी हैसियत से भी अधिक राशि में टैक्स की मांग बना दी जाती है. इस तरह के मामले ग्रामीण परिवेश के लोगों के साथ अधिक संख्या में हो रहे हैं.
आयकर सलाहकार के अनुसार फेसलेस असेस्मेंट को अंजाम देने के लिए धारा 144 बी के तहत पूरी प्रक्रिया है. मसलन कारण बताओ नोटिस, करदाता द्वारा दिए गए जवाब को संज्ञान लेना. ड्राफ्ट ऑर्डर बनाया जाना. इसका जवाब देकर करदाता व्यक्तिगत सुनवाई की मांग कर सकता है. उसको अवसर देते हुए अंतिम असेस्मेंट ऑर्डर बनाया जाना चाहिए. उनके अनुसार यह प्रक्रिया पूरी ही नहीं की जा रही. इसके बगैर ही असेस्मेंट ऑर्डर बना दिए जाते हैं. लाचार हैं करदाता शहर के व्यापारी अत्यधिक घाटे को लेकर परेशान थे. लगभग पांच साल पहले नागपुर चले गए. उनके नाम से नोटिस जारी हुए होंगे, लेकिन उनको पता तब चला जब उनकी बैंक से खबर आई कि आयकर विभाग ने उनके बैंक खाते को अटैच करने के लिए पत्र दिया है. खाते में जो रकम है, उसे आयकर विभाग द्वारा अपने अधीन ले लिया गया है. कई और भी मामले सामने आए हैं.