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गोरखपुर। पूर्वी उत्तर प्रदेश में चार दशक तक कहर बरपाने वाली इंसेफेलाइटिस के इलाज का सबसे बड़ा केंद्र बीआरडी मेडिकल कॉलेज ही रहा है। एक दौर वह भी था जब मेडिकल कॉलेज में एक बेड पर तीन इंसेफेलाइटिस पीड़ित मासूम पड़े रहते थे। योगी इंसेफेलाइटिस के कहर के खुद साक्षी रहे हैं। इसके दर्द को महसूस किया है। जब वे यूपी के सीएम बने और अधिकारों क साथ मजबूत हुए तब इंसेफेलाइटिस कमजोर होता गया। अब यह बेजान हो चुका है।
योगी आदित्यनाथ इस इंसेफेलाइटिस के मरीजों और उनके परिजनों की पीड़ा को खुद की सजल आंखों से देखा कि। हृदयतल ले उनकी पीड़ा को महसूस भी किया है। सड़क से सदन तक इस पीड़ा को दूर करने की लड़ाई लड़ी है। उनके ही प्रयासों से वर्ष 2005-06 में इंसेफेलाइटिस क लिए टीकाकरण शुरू हुआ था। प्रति वर्ष औसतन पंद्रह सौ मासूम जेई और एईएस से असमय काल कवलित होते जा रहे थे। योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही दिनों बाद जेई और एईएस पर नियंत्रण के लिए अंतर विभागीय समन्वय की फुलप्रूफ कार्य-योजना बनाई। इसे पूरी तरह नियंत्रित करने का प्रयास शुरु किया। अब यह नियंत्रण में है।
2017 के पहले बहुत ख़राब थी स्थिति
वर्ष 2017 के पहले बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जेई और एईएस से ग्रसित प्रतिवर्ष हजारों बच्चे अति गंभीर अवस्था में भर्ती होते थे। इनमें से 25 फीसद की मौत हो जाती थी। जो बच्चे बच भी जाते थे, उनमें मानसिक एवं शारीरिक दिव्यांगता आ जाती थी। मेडिकल कॉलेज में वर्ष 2017 में कुल 2247 मरीज भर्ती हुए थे। मृत्यु दर 25 से 30 प्रतिशत थी, जबकि वर्ष 2022 में अक्टूबर माह तक एईएस के कुल 125 मरीज भर्ती हुए हैं। 95 फीसद से अधिक को ठीक कर घर भेजा जा चुका है। जेई (जापानी इंसेफेलाइटिस) के मरीजों की संख्या बेहद कम रही है। किसी की मौत भी नहीं हुई है।
कहते हैं जानकार
डॉक्टर मनोज जैन कहते हैं कि मेडिकल कॉलेज में भर्ती मरीजों के नि:शुल्क उपचार एवं त्वरित इलाज की व्यवस्था है। इसके कारण आज बीआरडी में इंसेफेलाइटिस से मृत्य दर नगण्य है। अगले वर्षों तक इस बीमारी का संपूर्ण उन्मूलन निश्चित माना जा रहा है।
Admin4
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