उत्तर प्रदेश

उत्तराखंड में नहीं बढ़ी बसपा की रफ्तार, तो पांच सीटों पर ठोकेगा ताल

Admindelhi1
15 March 2024 9:45 AM GMT
उत्तराखंड में नहीं बढ़ी बसपा की रफ्तार, तो पांच सीटों पर ठोकेगा ताल
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इस सप्ताह पांचों सीटों पर प्रत्याशी घोषित हो सकते हैं

हरिद्वार: पहाड़-मैदान के बीच पांच लोकसभा सीटों पर बसपा एक बार फिर चुनावी दंगल में दम दिखाने की तैयारी में है। इस सप्ताह पांचों सीटों पर प्रत्याशी घोषित हो सकते हैं। बसपा सुप्रीमो खुद हर प्रत्याशी की कुंडली देख रही है। उसमें जीत की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। खास बात ये है कि आज तक बसपा राज्य गठन के बाद किसी भी चुनाव में जीत दर्ज नहीं कर पाई है। राज्य गठन के बाद वर्ष 2004 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ, जिसमें बसपा ने तीन सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। तीनों पर बसपा हारी। एक प्रत्याशी ही जमानत बचाने में कामयाब रहा था। बसपा को इस चुनाव में कुल मतदान के 6.77 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बीच, विधानसभा चुनावों में बसपा ने दम दिखाया तो लोकसभा में भी इसका असर नजर आया।

2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने कुल मतों के मुकाबले 15.4 प्रतिशत मत हासिल किए। इसके बाद हाथी की चाल मंद हो गई। कदम डगमगाने लगे। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को प्रदेशभर में 4.78 प्रतिशत वोट मिले। 2019 के चुनाव में बसपा ने सपा से गठबंधन कर चार सीटों पर चुनाव लड़ा था। बावजूद इसके बसपा को 4.5 प्रतिशत मत ही प्राप्त हुए। अब आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी में बसपा ने ताकत झोंक दी है। बसपा प्रदेश अध्यक्ष चौधरी शीशपाल का कहना है कि उनकी पार्टी के प्रत्याशी इस बार जीत का नया इतिहास रचने जा रहे हैं। विधानसभा में भी लगातार नीचे गिर रहा ग्राफ 2002 के विस चुनाव में बसपा को प्रदेश में 10.93 प्रतिशत वोट मिले थे। 2007 के चुनाव में यह आंकड़ा 11.76 प्रतिशत पर पहुंच गया। 2012 के चुनाव में वोट प्रतिशत बढ़कर 12.99 प्रतिशत पर पहुंचा। 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा को काफी नुकसान हुआ और वोट प्रतिशत 6.98 प्रतिशत पर चला गया। 2022 के विस चुनाव में 4.83 प्रतिशत के आसपास पहुंच गया है।

दलित-मुस्लिम फार्मूला नहीं दे पा रहा जान

हाथी की चाल शुरू में भले बदली हो लेकिन अब चार से पांच प्रतिशत वोट शेयर से ये स्पष्ट हो रहा है कि बसपा का दलित-मुस्लिम फार्मूला अपेक्षाकृत मंजिल तक नहीं पहुंचा पाया है।

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