- Home
- /
- राज्य
- /
- उत्तर प्रदेश
- /
- एचबीटीयू के वैज्ञानिक...
एचबीटीयू के वैज्ञानिक ने विकसित किया मिट्टी का स्मोकलेस चूल्हा
कानपूर न्यूज़: अब एक बार फिर से गांवों में अंगीठी पर खाना पकाने की शुरुआत हो सकती है पर महिलाओं की आंखों को नुकसान नहीं पहुंचेगा. वायु प्रदूषण के कारण सेहत भी नहीं बिगड़ेगी क्योंकि इससे धुआं निकलेगा ही नहीं. बार-बार आग जलाने के लिए फूंकना भी नहीं पड़ेगा. एक घंटा अंगीठी जलाने पर खर्चा आएगा केवल 15 रुपये, जो वर्तमान में प्रयोग हो रहे आम ईंधन के खर्च से भी कम होगा.
दरअसल, एचबीटीयू के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जितेंद्र भास्कर व डॉ. एके राठौर की देखरेख में उनकी टीम ने विशेष अंगीठी विकसित की है. इसका नाम रखा है स्मोकलेस चूल्हा. इसमें आंच को कम-ज्यादा भी किया जा सकता है. लोहे की प्लेट से बने चूल्हे में लकड़ी या कंडे के बजाय कृषि अपशिष्ट से तैयार पैलेट्स को जलाया जाता है.
ऐसे करता है काम डॉ. जितेंद्र भास्कर ने बताया कि वास्तव में लोहे की बाल्टी को ही उल्टा करके यह अंगीठी बनाई गई है.
इसमें पैलेट्स के जलने से प्रोड्यूसर गैस बनती है. फिर छोटे से छिद्र से इसमें ऑक्सीजन दी जाती है, जिसके बर्नर के पास आने से गैस जलने लगती है. डॉ. भास्कर ने बताया कि सामान्य अंगीठी या घरेलू चूल्हे में लकड़ी या कोयला पूरी तरह नहीं जलता है. इससे ऊर्जा की बर्बादी होती है और धुआं अधिक निकलता है. इस विशेष अंगीठी में ईंधन पूरी तरह जलता है, जिससे धुआं नहीं निकलता है. इस स्मोकलेस चूल्हा को जल्द बाजार में लाने की तैयारी है.
महिलाओं की परेशानी देखकर शुरू की रिसर्च
डॉ. जितेंद्र ने बताया कि गांव में जिन घरों में गैस चूल्हा नहीं होता है, वहां अंगीठी जलाई जाती है. उससे निकलने वाला खतरनाक धुआं महिलाओं व छोटे-छोटे बच्चों को बीमार करता है. इस समस्या को देखते हुए विवि के डॉ. एके राठौर के साथ मिलकर एक रिसर्च शुरू की, जिसमें बीटेक के छात्रों ने भी मदद की. चार माह की रिसर्च के बाद स्मोकलेस चूल्हा बनाने में सफलता मिली है.
● ● कृषि अपशिष्ट से तैयार पैलेट्स फ्यूल से जलेगा कीमत भी होगी कम
● कंडे के बजाय कृषि अपशिष्ट से तैयार पैलेट्स को जलाया जाता
प्रदूषण की समस्या घटेगी
डॉ. भास्कर ने बताया कि इस स्मोकलेस चूल्हा को जलाने के लिए भूसा, पयाल, डंठल, गन्ने की खोई व शीरा आदि से तैयार पैलेट्स का प्रयोग किया जा रहा है. यह पहले से ही बाजार में उपलब्ध है. पैलेट्स की मांग बढ़ेगी तो खेतों में कृषि अपशिष्ट जलने से प्रदूषण फैलने की समस्या भी कम होगी