उत्तर प्रदेश

शहर की प्यास बुझाने में भूजल का कोश न हो जाए खाली

Admin Delhi 1
24 April 2023 8:30 AM GMT
शहर की प्यास बुझाने में भूजल का कोश न हो जाए खाली
x

वाराणसी न्यूज़: स्वतंत्रता के अमृतकाल में काशी भव्य और नव्य हो चली है मगर एक गंभीर चिंता उसकी विकास यात्रा के साथ दाग के रूप में चिपटी हुई है. वह है भूजल के बेलगाम दोहन की. शहर की जरूरतों का लगभग 50 पानी धरती से निकाला जा रहा है. आजादी के पहले से लगते गए नलकूप कई बार रिबोर हुए, पुराने की जगह नए लग गए लेकिन भूजल के कोश पर निर्भरता कम भी नहीं हुई, खत्म होने की बात दूर की है.

आजादी के 75 वर्षों के दौरान भूजल का विकल्प नहीं ढूंढ़ा जा सका. इधर लगभग डेढ़ दशक पहले जब नगर निगम जलापूर्ति के लिए सीधे जिम्मेदार व जवाबदेह बनाया गया, तब भी एक प्रस्ताव तक मिनी सदन में नहीं आया. शासन ने कुछ वर्ष पहले नलकूपों से जलापूर्ति बंद करने का आदेश जारी किया. चूंकि उन नलकूपों का कोई विकल्प था नहीं, इसलिए शासनादेश भी ठंडे बस्ते में चला गया. शहर में 170 एमएलडी जल गंगा से लिया जाता है, 100 एमएलडी पानी 111 नलकूपों से मिलता है. शहर की सामान्य जरूरत 423 एमएलडी की है.

योजना बन रही है

दो साल पहले वरुणापार के क्षेत्रों में ट्यूबवेलों से सप्लाई बंद करके सारनाथ डब्ल्यूटीपी से आपूर्ति शुरू हुई थी. केवल इमरजेंसी में ट्यूबवेलों के इस्तेमाल का निर्णय हुआ था. कुछ दिन बाद ही सभी नलकूप चालू करने पड़े क्योंकि तब बड़े इलाके में पाइप लाइन नहीं बिछी थी. अब सारनाथ से शिवपुर के बीच 150 किमी की लंबी पाइप लाइन बिछ चुकी है लेकिन नलकूप भी चलाने पड़ते हैं. जल निगम अभी भदैनी में 110 करोड़ से नया पंप लगा रहा है, जिससे दिसंबर 2023 तक 250 एमएलडी पेयजल आपूर्ति गंगाजल से करने का लक्ष्य है.

इन क्षेत्रों में जरूरत से कम पानी

घाट किनारे के 14 वार्डों में जरूरत से कम पानी मिलता है. प्रेशर कम होने से चौक, चौखंभा, कालभैवर, गायघाट, प्रह्लाद घाट, राजघाट, लालघाट, राजमंदिर, पाण्डेय घाट, त्रिलोचन घाट, शिवाला, भदैनी, अस्सी आदि इलाकों में पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पहुंच पाता.

वर्ष 2019 में 600 करोड़ का घोटाला:

2019 में जल निगम पेयजल प्रखंड में 600 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था. उसमें तीन आला अफसरों समेत 26 लोगों पर कार्रवाई हुई थी. जल निगम के अधिकारियों ने ठेकेदारों से मिलकर कागज पर पेयजल पाइप लाइन बिछाकर फंड की बंदरबांट कर ली.

नगर निगम जवाबदेह क्यों ?

● वर्ष 1892 में जलकल ने पुराने शहर में शुरू की थी जलापूर्ति

● सन्-1976 से 2009 तक जलसंस्थान का स्वतंत्र अस्तित्व रहा

● 2009 में जलकल का नगर निगम के एक विभाग के रूप में पुनर्गठन

● जलकल को नगर निगम सदन के प्रति बनाया गया जवाबदेह

● नगर निगम में भूजल दोहन रोकने को प्रस्ताव भी अब तक नहीं आया

यहां पेयजल पाइप नहीं: तरना, शिवपुर, दानियालपुर, सारनाथ, अकथा, नरिया, नगवा, लहरतारा वार्डों के बड़े हिस्से में पेयजल पाइप लाइन नहीं है.

Next Story