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न्यूज़ क्रेडिट: अमरउजाला
पढ़े पूरी खबर
प्रदेश में मरीजों को कम समय में अस्पताल पहुंचाने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है। प्रदेश में अभी 108 एंबुलेंस का रिस्पॉस टाइम 15 मिनट और 102 के शहरी इलाके में 20 मिनट और ग्रामीण इलाके में 30 मिनट है। लेकिन विभिन्न चौराहों पर लगने वाले जाम से दोगुने से अधिक समय लग जाता है। जबकि शासन की ओर से पहले से निर्धारित रिस्पॉस टाइम को कम करने का निर्देश दिया गया है। ऐसे में रिस्पॉस टाइम कम करने की रणनीति बनाई गई। इसमें ग्रीन कॉरिडोर के समय को नजीर के तौर पर पेश किया गया।
जब भी ग्रीन कॉरिडोर बनता है तो घटनास्थल से अस्पताल पहुंचने का समय आधे से भी कम हो जाता है। ऐसे में ट्रैफिक सिग्नल को एंबुलेंस से जोड़कर संचालन करने की रणनीति बनाई गई है। पहले चरण में यह व्यवस्था गोरखपुर, लखनऊ, वाराणसी, कानपुर, आगरा, प्रयागराज, बरेली, मेरठ, मुरादाबाद, मथुरा, मेरठ, झांसी में लागू की जाएगी। इसकेबाद अन्य शहरों को इसमें शामिल किया जाएगा।
दूर से ही सिग्नल के संपर्क में आ जाएगी एंबुलेंस
चौराहे पर एंबुलेंस के पहुंचने पर ट्रैफिक पुलिस रास्ता देने का प्रयास करती है। वह दूसरी तरफ के ट्रैफिक के रोक कर एंबुलेंस को पास करते हैं। लेकिन भीड़ अधिक होने की वजह से कई बार चौराहे पर दूर-दूर तक लाइन लग जाती है। ऐसे में एंबुलेंस दूर से नहीं दिखाई पड़ती है, जिसमें वक्त अधिक लग जाता है। नई व्यवस्था पूरी तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के तहत कार्य करेगी। इसमें एंबुलेंस में लगे जीपीएस को ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम पहले से ही खुद से जोड़़ लेगा।
यह सिस्टम स्वत: संज्ञान लेते हुए ग्रीन कॉरिडोर बना देगा। ऐसे में एंबुलेंस के चौराहे पर पहुंचने ही संबंधित दिशा का सिग्नल ग्रीन हो जाएगा। वह अगले चौराहे पर कितनी देर में पहुंचेगी, यह भी ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम को दिखता रहेगा। उसी हिसाब से अगला सिग्नल भी ग्रीन हो जाएगा। यदि एक चौराहे पर दो दिशा से एंबुलेंस पहुंचती हैं तो जिधर की एंबुलेंस पहले आएगी, उसे ग्रीन सिग्नल मिलेगा और फिर दूसरे दिशा वाले को ग्रीन सिग्नल मिलेगा। इसके बाद फिर अन्य दिशा को ग्रीन किया जाएगा।
सरकार निशुल्क देती है सेवा
राज्य सरकार की ओर से एंबुलेंस सेवा निशुल्क दी जाती है। प्रदेश में 108 एंबुलेंस 2200 और 102 एंबुलेंस 2270 चल रही हैं। दुर्घटना होने, सर्पदंश सहित किसी भी तरह की आकस्मिक चिकित्सा के लिए 108 एंबुलेंस निशुल्क अस्पताल पहुंचाती है। जबकि गर्भवती महिलाओं एवं दो साल तक के बच्चे के लिए 102 एंबुलेंस अस्पताल पहुंचाती है और घर तक छोड़ती है। यह सुविधा भी निशुल्क है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
एंबुलेंस में जीपीएस लगा होता है। इससे वह कहां पर है और कितनी देर में दूसरे स्थान पर पहुंचेगी, इसे ट्रैक किया जा सकता है। ऐसे में ट्रैफिक सिस्टम से जोड़ना आसान है। इस सिस्टम से एबुलेंस के जुड़ने से मरीज को कम समय में अस्पताल पहुंचाया जा सकेगा। ट्रैफिक के अफसरों के साथ बात हुई है। जल्द ही इस व्यवस्था को लागू करने की तैयारी है।
-टीवीएसके रेड्डी, सीनियर वाइस प्रेसिडेंट जीवीके ईएमआरआई
मरीजों को बेहतर सेवा देने का प्रयास
दुर्घटनाग्रस्त को कम से कम समय में अस्पताल पहुंचाने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है। एंबुलेंस की व्यवस्था सुधारने के साथ आम लोगों को भी जागरूक किया जा रहा है। लोगों से अपील हैकि एंबुलेंस दिखते ही उसे रास्ता दे दें। ताकि मरीज तत्काल अस्पताल पहुंच सके।
-डॉ. लिली सिंह, महानिदेशक स्वास्थ्य
क्यों जरूरी है जल्दी अस्पताल पहुंचना
दुर्घटना के केस में मरीज के लिए एक घंटे का समय बेहद कीमती होता है। घुटना के बाद जितने कम समय में मरीज अस्पताल पहुंचता है, उसके ठीक होने की संभावना उतना ही बढ़ जाती है। टूटी हड्डियों को जोड़ने अथवा अन्य क्षतिग्रस्त हिस्से की सर्जरी में आसानी रहती है। क्योंकि ऊतक जिंदा रहते हैं। तब तक रक्तस्त्राव भी कम हुआ रहता है।
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