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कानपूर न्यूज़: देर तक मोबाइल या लैपटॉप पर आंखें गड़ाए रखने के दुष्प्रभाव सामने आने लगे हैं. खासकर बच्चों की दृष्टि पर चोट होने लगी है. दो साल तक ऑनलाइन पढ़ने के बाद बच्चे स्कूल जाने लगे तो ब्लैक बोर्ड पर साफ न दिखने की शिकायत से इसका खुलासा हुआ है. ऐसे बच्चों की जांच में पता चल रहा है कि वे मायोपिया (निकट दृष्टिदोष) और रिफ्रेक्टिव एरर (आंखों के अपवर्तन के शिकार हो गए हैं. जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र विभाग में पिछले एक साल में 667 बच्चे मायोपिया ग्रस्त पाए गए हैं. रिफ्रेक्टिव एरर के शिकार 117 बच्चे भी रिपोर्ट हुए हैं.
हर सप्ताह 15 बच्चे मिल रहे मेडिकल कॉलेज नेत्र विभाग की ओपीडी में हर हफ्ते कम से कम 15 बच्चे अभी भी मायोपिया के रिपोर्ट हो रहे हैं.
डॉक्टरों के मुताबिक यह समस्या बिना चश्मे के हल नहीं होती है. कोरोना काल में जिन बच्चों ने मोबाइल से ऑनलाइन पढ़ाई की है, उनमें रिफ्रेक्टिव एरर की तकलीफ ज्यादा मिली है. कम्प्यूटर या लैपटॉप पर पढ़ाई करने वाले बच्चे मायोपिया के शिकार हुए हैं. कम रोशनी में पढ़ाई से भी मायोपिया का ग्राफ बढ़ रहा है.
यह है मायोपिया मायोपिया में दूर की चीजें स्पष्ट देखने में परेशानी आती है. इसमें आंख की पुतली (आई बॉल) का आकार बढ़ने से प्रतिबिंब रेटिना पर बनने के बजाय थोड़ा आगे बनता है. यह दोष आंख की पुतली बहुत लंबी होने, कार्निया की वक्रता बढ़ने पर पैदा होता है. इससे नज़र धुंधली होने लगती है.
व्यापम में पूर्व छात्रों से भी होगी पूछताछ:
मध्य प्रदेश के चर्चित व्यापम फर्जीवाड़े की फाइल सीबीआई ने खोलकर जांच शुरू कर दी है. जीएसवीएम से पूर्व मेडिकल छात्र का ब्योरा तलब किया ग्गया है. उसका रिकॉर्ड कॉलेज प्रशासन बना रहा है और अगले हफ्ते उसे इंदौर में सीबीआई को भेजा जाएगा. इस बीच केंद्रीय जांच एजेंसी ने जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के पूर्व छात्रों से फिर से पूछताछ की तैयारी की है. इसके लिए इन्हें इंदौर बुलाएगी. सीबीआई ने जीएसवीएम के 26 पूर्व मेडिकल छात्रों को आरोपित बनाया है. हालांकि उन्हें पूर्व में एसआईटी की जांच के तहत आरोपी बनाया गया है. एसआईटी की जांच में पूछताछ हुई पर किसी पर आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं. आरोपित मेडिकल छात्र डॉक्टर बनकर कहां हैं, इसकी जानकारी कॉलेज प्रशासन को नहीं है और पहले ही सीबीआई को इसकी जानकारी कोरोना काल से पहले दे चुका है.
कोरोना काल में ऑनलाइन क्लास, मोबाइल और कम्प्यूटर पर घंटों काम करना बच्चों की आंखों के लिए भारी पड़ा. उनमें मायोपिया के साथ रिफ्रेक्टिव एरर मिल रहा है. दो साल से बच्चे घरों में ही रहे. गतिविधियां शून्य रहीं. धूप में भी निकलना नहीं हुआ. ऐसे हर बच्चे को चश्मा लग रहा है. - डॉ. शालिनी मोहन, प्रोफेसर, नेत्र विभाग जीएसवीएम
शहरी हों या ग्रामीण युवा तेजी से ग्लूकोमा के शिकार हो रहे हैं. इनमें ज्यादातर को आनुवंशिक कारणों से ग्लूकोमा का दंश मिला है. जीएसवीएम के नेत्र विभाग में एक साल में अब तक 43 बच्चों में ग्लूकोमा की सर्जरी कर आंख बचाई गई है. यहां एक साल में कानपुर और आसपास के 17 जिलों के 87 युवा रिपोर्ट हुए हैं, जिन्हें ग्लूकोमा ने जकड़ लिया था. अभी तक 15 युवाओं में ही रोशनी लौट सकी है. ग्लूकोमा में, ऑप्टिक तंत्रिका उच्च दबाव से क्षतिग्रस्त हो जाती है. क्षति अंतत अंधेपन का कारण बन सकती है.
सिरदर्द बन गई छोटे अक्षर देखने की आदत:
बच्चों में छोटे अक्षरों को देखने की कोशिश सिरदर्द का बड़ा कारण बन गई है. यह खुलासा जीएसवीएम के बाल रोग और नेत्र विभाग के संयुक्त शोध में हुआ है. मेडिकल कॉलेज में आ रहे सिरदर्द के शिकार बच्चों को अध्ययन का हिस्सा बनाया गया.
● लाइफस्टाइल में गड़बड़ी, कंप्यूटर-मोबाइल स्क्रीन पर देर तक काम इसका बड़ा कारण
● पहले 20 से 40 वर्ष आयुवर्ग में अधिक होता था, अब बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ी
● दो साल कोविड काल में घर में रहे, ऑनलाइन पढ़ाई का दुष्प्रभाव सामने आने लगा
● ब्लैक बोर्ड में कम दिखने की शिकायत से सामने आई समस्या, ज्यादातर को चश्मा लगा
एक नजर में आंकड़े:
● 5398 बच्चों पर तीन साल तक किया शोध
● 5-15 वर्ष के सिरदर्द पीड़ित बच्चे शामिल
● 46 फीसदी बच्चों में मायोपिया पाया गया
● 31 फीसदी बच्चों में एस्टिग्मैटिज्म निकला
● 22 फीसदी बच्चों में हाइपरोपिया पाया गया