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उत्तरप्रदेश | बच्चों में जन्मजात मोतियाबिंद के चार मामले प्रत्येक महीने बाल चिकित्सालय एवं स्नोतकोत्तर संस्थान में इलाज के लिए आ रहे हैं. जुलाई महीने के अंत में ही एक छह महीने के बच्चे की आंख का ऑपरेशन किया गया. यह बच्चा मोतियाबिंद से पीड़ित था. लगातार मिल रहे ऐसे मामलों का कारण स्क्रिनिंग का बढ़ना बताया जा रहा है.
बाल चिकित्सालय एवं स्नातकोत्तर संस्थान में एक साल में 40 से ज्यादा नवजात की आंखों में मोतियाबिंद की दिक्कत आती है. कम उम्र के कारण इसका ऑपरेशन भी जटिल होता है, क्योंकि एक साल से कम उम्र के बच्चों को ऑपरेशन के दौरान पूरी तरह से बेहोश करना पड़ता है. साथ ही कई अन्य जटिलता भी होती है. बाल चिकित्सालय के नेत्र रोग विभाग के प्रमुख डॉ. विक्रांत शर्मा बताते हैं कि पहले के मुकाबले नवजात और बच्चों की स्क्रिनिंग बढ़ी है. इस स्थिति में पांच साल पहले के मुकाबले अब मरीज थोड़े ज्यादा हैं.
वहीं, अस्पताल रेफरल सेंटर भी हैं. सभी स्थानों पर नवजात की आंखों का इलाज भी नहीं है. ऐसे में बाल चिकित्सालय में इस तरह के काफी मरीज इलाज के लिए आते हैं. ऐसे में एक साल के बच्चों की आंखों की स्क्रिनिंग जरूरी है. ताकि किसी भी तरह की परेशानी होने की स्थिति में जानकारी हो सके. वहीं, अस्पताल में दूर-दराज के क्षेत्र के रेफर होकर भी मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं.
समय से पहले जन्मे बच्चों में रेटिना संबंधी दिक्कत बाल चिकित्सालय एवं स्नातकोत्तर संस्थान के बच्चों के नेत्र रोग विभाग के प्रमुख डॉ. विक्रांत शर्मा ने बताया कि प्रीमेच्योर बच्चों में रेटिना संबंधी परेशानी आती है. कई बार ऐसे बच्चों के आंखों के पर्दे प्रभावित होते हैं, जिसे लेजर प्रक्रिया से ठीक किया जाता है. कई अन्य स्थितियों में भी लेजर का उपयोग किया जाता है.
ऐसे पता करें दिक्कत
नवजात या बच्चों की आंखों में मोतियाबिंद होने की स्थिति में पुतली सफेद हो जाती है. भेंगापन की दिक्कत भी होती है. वहीं नवजात की एक-एक आंख बंद करके भी देखनी चाहिए. नहीं दिखने की स्थिति में आंख बंद होने पर ही बच्चा हरकत नहीं करेगा. वहीं सही आंख को बंद करने पर बच्चा हरकत करेगा.
कई वर्ष इलाज चलेगा
जन्मजात मोतियाबिंद होने की स्थिति में ऑपरेशन के बाद भी कई वर्षों तक मरीजों का फॉलोअप करना पड़ता है, क्योकि बार-बार चश्मे का नंबर बदलता है, जिससे नियमित रूप से नजर की जांच जरूरी है. साथ ही कई अन्य परेशानी भी होती है. लिहाजा ऑपरेशन के बाद नियमित रूप से जांच डॉक्टर करते हैं.
ये हैं कारण
डॉक्टरों के अनुसार जन्मजात मोतियाबिंद होने के कई कारण हो सकता है, जिसमें गर्भधारण के दौरान संक्रमण, कुपोषण आदि शामिल है. इसका नकारात्मक प्रभाव गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी पड़ता है. वहीं कई ऐसे कारण भी है, जिसकी स्पष्ट जानकारी विशेषज्ञों के पास भी नहीं है.
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Harrison
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