- Home
- /
- राज्य
- /
- उत्तर प्रदेश
- /
- फर्रुखाबाद: नहर की...
फर्रुखाबाद: नहर की जमीन पर कब्जा कर दबंगों ने मेट दी सारी हरियाली
क्राइम न्यूज़: कायमगंज थाना क्षेत्र में दबंगों ने नहर की जमीन पर कब्जा कर लिया। वैसे तो जमीन पर अवैध कब्जा करने वालों को जहां भी मौका मिलता है। वे अवैध कब्जा करने से चूकते नहीं। परंतु कुछ जगह ऐसी भी है। जिन पर अवैध कब्जा होने से बहुत बड़े भू-भाग की हरियाली नष्ट हो रही है। यह भाग जनपद फर्रुखाबाद में निचली गंगा नहर शाखा फतेहगढ़-फर्रुखाबाद का है। यह नहर ब्रिटिश काल में सिंचाई के लिए खोदी गई थी। उस समय नरोरा नहर डिवीजन के नाम से इसकी व्यवस्था चाक-चौबंद रही। काफी समय के बाद इस नहर को दो भागों में विभाजित कर नए डिवीजन के रूप में व्यवस्था अलीगढ़ डिवीजन के अधीन हो गई। इसके बाद फिर एक बार देखरेख तथा व्यवस्था संचालन की सुविधा बता कर फर्रुखाबाद-फतेहगढ़ नाम से अलग भाग निर्धारित कर निचली गंगा नहर शाखा फर्रुखाबाद-फतेहगढ़ के नाम से डिवीजन बनाया गया। यह भाग एटा-कासगंज सीमा के गांव विजयपुर से प्रारंभ होकर फर्रुखाबाद के खिनमिनी तक जाता है। यहां से फिर एक नाले के रूप में नगर फर्रुखाबाद टाउन हॉल के पास से होता हुआ गंगा नदी में इसका सिरा जोड़ दिया गया था। जिससे कि बरसात अथवा बचत का पानी गंगा में प्रवाहित हो जाए। यह पूरा भाग लगभग 65 किलोमीटर लंबाई की नहर का है। नहर की दोनों पटरियों के साथ दोनों ओर लगभग 105 फीट से लेकर औसत 90 फीट की चौड़ाई बाली जमीन के दोनों ओर वाले भू-भागों, जिनकी लंबाई नहर की लंबाई के साथ ही 65 किलोमीटर तक फैली हुई है। इस पूरी सरकारी जमीन पर अपवाद स्वरूप थोड़े बहुत हिस्से को छोड़कर लगभग पूरी जमीन ही अवैध रूप से कब्जा की जा चुकी है। यह जमीन इसलिए छोड़ी गई थी की खंदी होने पर मिट्टी इसी भाग से ली जा सके। जिससे खांदी बंद करके पानी का बहाव रोक दिया जाता था। साथ ही जरूरत पड़ने पर मरम्मत के लिए भी मिट्टी इसी भाग से मिल जाती थी।
इसके अतिरिक्त इस पूरे भाग पर नहर के दोनों ओर बड़े-बड़े आम नीम शीशम खैर जामुन आदि उपयोगी एवं फलदार वृक्ष लगे थे। जिनसे पर्यावरण की शुद्धता के साथ ही अकूत वन संपदा भी संरक्षित थी। इतना ही नहीं 65 किलोमीटर लंबाई वाले दोनों सिरों के भाग पर बहुमूल्य एवं दुर्लभ प्रजाति के औषधीय गुण वाले अन्य पेड़ पौधे भी थे। हरी भरी घास घनी झाड़ियां जंगली तथा पालतू पशु पक्षियों के लिए एक प्राकृतिक अभ्यारण वरदान के रूप में मौजूद था। इस हरे भरे भाग पर असंख्य पक्षी अपना निवास बनाकर रहते थे। किंतु समय के परिवर्तन के साथ एवं लाखों रुपये प्रतिमाह वेतन के रूप में लेने वाले अधिकारियों तथा कर्मचारियों की लापरवाही तथा अनदेखी के कारण धीरे-धीरे इस पूरी सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा हो गया है। अब ना हरियाली दिखाई देती है और ना ही घास तथा सुंदर लताएं एवं झाड़ियां, उपयोगी और विशालकाय वृक्ष तो पूरी तरह समाप्त हो चुके हैं। अवैध कब्जेदारों ने अपने-अपने हिसाब से इस जमीन पर कब्जा जमा कर इस पूरी हरित पट्टी को ही उजाड़ दिया है। यह काम पिछले कई वर्षों से लगातार किया जा रहा है। किंतु विडंबना है कि शासन के निर्देशों की खुली अवहेलना करते हुए नहर विभाग के सुविधा भोगी अधिकारी तथा कर्मचारी अपने ही कर्तव्य क्षेत्र बाली भूमि को कब्जा मुक्त कराने के लिए कभी प्रयास करते दिखाई तक नहीं देते हैं। उनकी लापरवाही का ही नतीजा है की कभी सुंदर हरियाली सजी धजी रहने वाली नहर पट्टी की 65 किलोमीटर लंबाई वाले दोनों भाग अवैध कब्जेदारों के चंगुल में आकर अपना अस्तित्व तथा प्राकृतिक सुंदरता ही खो बैठे हैं। यह हरी-भरी धरा कब्जा मुक्त होने के लिए आखिर कब तक इंतजार करेगी ? यह प्रश्न आज तक अनुत्तरित ही बना हुआ है।