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- किन्नू की फसल के प्रति...
हाल के समय में उद्यान विभाग के टेलीफोन की घंटी खूब घनघना रही है. असल में किसानों का किन्नू की फसल को लेकर मोह बढ़ा है और उसकी इंक्वाइरी के लिए विभाग में पूछताछ की जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है. प्रश्न कई हैं, मसलन कितनी दूरी पर पेड़ लगेंगे, किस तरह देखभाल करनी है, क्या क्या करना है. यह स्थिति अकारण नहीं है. संतरे का हमशक्ल किसानों की आमदनी बढ़ाने में अहम किरदार निभा रहा है. बीते सीजन की प्राप्ति का औसत निकाला जाए तो आंकड़ा 200 करोड़ को पार करता दिख रहा है.
उद्यान विभाग के आंकड़ों के अनुसार, बीते सीजन में लगभग 50 हजार टन किन्नू की पैदावार रही. उपज का यह आंकड़ा बीते वर्षों की तर्ज पर ही था. लेकिन जो उपज पेड़ से उतरी, उसको हाथों हाथ खरीदार मिलने लगे. साल 2021-2022 के सीजन में आगरा का लोकल किन्नू 18-22 रुपये किलो तक के रेटों पर ही बिक सका. साल 2022-2023 में मूल्य 45 रुपये किलो तक पहुंच गए.
आंकड़ों में किन्नू
– कुल पैदावार सीजन 2022-2023: 50 हजार टन
– कुल क्षेत्रफल सीजन 2022-2023: 1500 हेक्टेयर
– कुल बिक्री राशि 2022-2023: 200 करोड़ रुपये
दिवाली के कुछ समय बाद बाजार में किन्नू की उपज आई. उस समय मौसमी की आमद कमजोर चल रही थी. जो उपज मिल रही थी, उस में रस की मात्रा कम ही थी. ऐसे हालातों ने किन्नू की मांग को बढ़ा दिया. खरीदार किन्नू के लिए कोई भी रेट देने को तैयार हो गए.
नाम मात्र की लागत
उद्यान विभाग के अधिकारी कहते हैं कि किन्नू के प्रति मोह धीरे धीरे बढ़ा है. पूर्व में मूल्य अधिक नहीं मिलते थे. इसलिए किसान इस पर अधिक समय नहीं लगाते थे. वैसे लागत नाम मात्र की रहती है. इसलिए किसानों ने इससे दूरी नहीं बनाई. कम दामों में यह कैश क्रॉप की किरदार को भली–भाँति निभाता रहा. बीते दो वर्ष की मांग ने किन्नू के प्रति नजरिया ही बदल दिया है. अब हरेक किसान अपने खेत की खाली स्थान में किन्नू के पेड़ लगाना चाहता है.
लागत में कम, प्राप्ति में दम
किन्नू की लागत न के बराबर है. इसका रखरखाव का खर्च भी न के बराबर है. इसका पौधा पौधा सहजता से मिल जाता है. यदि ठीक ग्रोथ रहे तो तीसरे वर्ष से ही फल की प्राप्ति होने लगती है. चार वर्ष में पेड़ के पूरे आकार में आने पर भरपूर फल मिलता है. नूरपुर तनौरा, बमरौली कटारा में खूब है.
हो रहा दोगुना मुनाफा
पिनाहट के कई किसान अपने खेतों में किन्नू की खेती कर रहे हैं. इससे वह आज बढ़िया फायदा कमा रहे हैं. उनका बोलना है कि किन्नू और मौसमी से आलू और गेंहू से दोगुना फायदा होता है. उन्होंने बताया कि जब उनको पहली बार किन्नू के बारे जानकारी मिली, तो दो लाख रुपये खर्च कर 45 बीघा खेत में किन्नू की बागवानी प्रारम्भ की थी. आज अच्छी कमाई हो रही है. हम पहले परंपरागत खेती करते थे, जिसमे काफी पैसा लगाना पड़ता था.
पंजाब-हिमाचल ही नहीं आगरा में भी खेती
अभी तक बोला जाता था कि किन्नू की पैदावार केवल पंजाब, हिमाचल प्रदेश जैसी जगहों पर हो सकती है. लेकिन अब आगरा के किसान भी किन्नू की बागवानी कर बढ़िया फायदा कमा रहे हैं. पिनाहट के गांव विजय गढ़ी के किसानों ने अपने खेतों में किन्नू और मौसमी के बाग लगाए हैं. साथ ही वह अन्य किसानों को भी इसकी जानकारी दे रहे हैं.
किन्नू और मौसमी की खेती में दोगुना मुनाफा
उन्होंने बताया कि प्रदेश गवर्नमेंट की सहायता के बाद हमने 2017 में पहली बार किन्नू और मौसमी की पौधों की रोपाई कराई. इसके बाद अच्छी पैदावार हुई. यूपी की जलवायु के लिए किन्नू और मौसमी की खेती के लिए ठीक है. अब हम इसमें पौधों के बीच आलू और गेहूं की खेती करके दोगुना लाभ उठा रहे हैं.
सितंबर-अक्तूबर में की जाती है बुवाई
किन्नू का पौधा तैयार करने के लिए सितंबर से अक्तूबर में इसकी बुवाई की जाती है. इसकी बुवाई ऊंची उठी क्यारी में की जाती है, जो कि दो से तीन मीटर लंबी, दो फुट चौड़ी और 15 से 20 सेंटीमीटर जमीन से ऊंची होती है. बुवाई के तीन से चार हफ्ते के बाद अंकुरित हो जाता है. आरंभ में किन्नू का पौधा लगाने के दौरान उन्हें काफी रखवाली और रखरखाव के लिए मेहनत करनी पड़ी. पौधों के बीच में लगातार गेहूं और आलू की खेती भी होती रही. साथ ही पौधों का आकार बढ़ा और फल भी आने लगे हैं. जिससे अब वह अच्छा फायदा कमा रहे हैं.
स्वाद के कारण जीत
आढ़ती, गजेन्द्र सिसोदिया ने बोला कि किन्नू की शक्ल ही संतरे से नहीं मिलती, इसका स्वाद भी वही है. मौसमी और माल्टा के क्रॉस ब्रीड से किन्नू की मौजूदा वैराइटी तैयार हुई है. इसका साइज संतरे के लगभग बराबर या कुछ बड़ा है. इसका छिलका भी मुलायम रहता है. यदि मौसम अनुकूल रहता है तो मिठास भी अच्छी मिल जाती है.