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Faizabad: जमीनी हकीकत और जातियों का रुख भांपने में फेल हुई भाजपा
फैजाबाद: अबकी बार 400 पार का नारा देकर विपक्ष पर मनोवैज्ञानिक लाभ लेने की भारतीय जनता पार्टी की रणनीति यूपी में बुरी तरह विफल रही है. चुनाव प्रचार में जमीनी हकीकत की अनदेखी, युवाओं को रोजगार के मुद्दे पर मुखर न होना, पेपरलीक से लेकर स्थानीय स्तर पर बेरोजगारी की समस्या भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत साबित हुई है.
वहीं, सपा मुखिया अखिलेश यादव ने जमीनी स्तर पर दलित-ओबीसी जातियों का सटीक जातीय-गुणा गणित बिठाकर भाजपा को न केवल रणनीतिक मात दी बल्कि उनकी रणनीति सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए बड़ी संजीवनी साबित हुई.
युवाओं को लेकर मौन बना मुसीबत तमाम दीगर कारणों के अतिरिक्त भाजपा ने यूपी में 80 में 80 सीटें जीतने का बड़ा लक्ष्य तो रखा लेकिन चाहे पूर्वांचल हो या फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, भाजपा की रणनीति में तमाम रोड़े रहे. बड़े नेता बड़बोलेपन में फंसे रहे और जमीनी हकीकत को भांपने में राज्य का संगठन पूरी तरह नाकाम रहा. प्रचार के दौरान भाजपा मतदाताओं खासतौर पर युवाओं को बड़े पैमाने पर लुभाने में नाकाम रही. मसलन, अमेठी में ब्राह्मण समाज के युवाओं में इस बात को लेकर नाराज़गी थी कि उन्हें स्थानीय स्तर पर नौकरी नहीं मिली और तमाम परीक्षाओं के पेपरलीक होने के कारण उनका भविष्य अधर में लटका है. कहना गलत न होगा कि भाजपा के घोषणा पत्र में भी युवाओं को नौकरी देने के मुद्दे पर कोई प्रभावी वादा नहीं था.
जातीय समीकरण की अनदेखी भाजपा ने पूर्वांचल में जातीय समीकरण की अनदेखी की. राजभर से लेकर निषादों व चौहानों में भाजपा सरकार और संगठन को लेकर पहले जैसा जोश नहीं था. चाहे घोसी में ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर हों या फिर संतकबीरनगर में निषाद पार्टी के प्रवीण निषाद, सभी के चुनाव में एक संदेश आम रहा कि भाजपा से उन्हें वह तवज्जो नहीं मिली जैसी मिलनी चाहिए थी.