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हम उतने ही प्राकृतिक हैं जितने पेड़, पौधे या वनस्पतियॉं, जीव, जन्तु और जानवर पहाड़, नदियॉं, झरने और दरिया, सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी
कानपुर। हम उतने ही प्राकृतिक हैं जितने पेड़, पौधे या वनस्पतियॉं, जीव, जन्तु और जानवर पहाड़, नदियॉं, झरने और दरिया, सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी। मनुष्य अपने रचयिता के प्रकृति स्वरूप से भिन्न नहीं हो सकता। पर्यावरण संचयन आज की महती आवश्यकता है।
ये उद्गार वक्ताओं ने 'प्रकृति से दूर जाना हमारी पस्ती का कारण' विषयक गोष्ठी में व्यक्त किये। तिलक फाउंडेशन द्वारा विष्णुपुरी में प्रख्यात समाजसेवी, पत्रकार एवं वकील रहे श्रीतिलक कि जयंती पर आयोजित गोष्ठी नगर के गणमान्य नागरिक व बुद्धिजीवी उपस्थित रहे।
विहिप नेता अवधबिहारी मिश्र ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के अनापशनाप दोहन से पर्यावरण असंतुलन की नौबत आई। डॉ वीएन त्रिपाठी ने कहा कि उन्होंने कहा कि करोना काल में हुये, लॉक डाउन, स्कूल बन्दी, सड़कों पर वाहनों की कम आवाजाही और एम.एस.एम.ई सेग्मेंट की फ़ैक्ट्रीयों के बन्द हो जाने के कारण, पर्यावरण हवा की सेहत सुधरी। इसका नतीजा यह हुआ कि सॉंस रोगों में पर्याप्त कमी देखी गई। वरिष्ठ पत्रकार विष्णु त्रिपाठी ने अनुशासित जीवन और प्रकृति मित्र बनने की सलाह दी।
लता कादंबरी नव पेयवर्ण संचय पर काव्यपाठ किया। पार्षद महेंद्र पांडेय उर्फ पप्पू पांडेय ने पर्यावरण बचाने को एक-एक नागरिक को आगे आने की बात कही। लेखिका शुभी अग्रवाल, डॉ. राज तिलक, प्रदीप दीक्षित, अलका दीक्षित ने बढ़ते शहरीकरण, वाहन प्रदूषण, पाश्चात्य जीवन शैली और पर्यावरण के अनियंत्रित दोहन और उसके साथ हुयी बदसलूकी के दुष्परिणाम और उससे निपटने पर अपनी बात रखी। संचालन योगेश श्रीवास्तव ने किया।

Rani Sahu
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