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उत्तर प्रदेश
डॉक्टरों ने ह्दय की गंभीर बीमारी से पीड़ित महिला की 6 मिनट में बचाई जान
Harrison
11 Aug 2023 4:26 PM GMT

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लखनऊ । किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय स्थित केजीएमयू के कार्डियोवास्कुलर एवं थोरेसिक सर्जरी (सीवीटीएस) विभाग के डॉक्टरों ने एक मरीज की चुनौतीपूर्ण सर्जरी कर उसकी जान बचा ली है। इस तरह की सर्जरी के लिए चिकित्सकों ने डीप हाइपोथर्मिक अरेस्ट तकनीक का इस्तेमाल कर मरीज की जान बचाने में कामयाबी हासिल की है। सर्जरी करने वाली टीम के प्रमुख प्रो.(डॉ.) एस.के.सिंह ने इस तरह की बीमारी को रेयर बताया है।
दरअसल, अयोध्या निवासी 28 वर्षीय महिला ह्दय की गंभीर बीमारी से पीड़ित थी। केजीएमयू में करीब डेढ़ वर्ष पहले महिला की डबल वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी हुई थी, लेकिन कुछ समय बाद महिला को महाधमनी से निकलने वाली नस में दिक्कत हो गई। बताया जा रहा है कि महिला की नस में सूजन आ गई थी, उससे रक्त का रिसाव भी होने लगा था।
(डॉ.) एस.के.सिंह ने बताया कि जांच के बाद महिला में महाधमनी की नस में सूजन यानी स्यूडोएन्यूरिज्म होने की दिक्कत का पता चला। यह एक दुर्लभ बीमारी है। इसमें महाधमनी से जुड़ी नस में सूजन आ जाती है, वह थैली का रूप ले लेती है। इससे रक्त का रिसाव शुरू हो जाता है। इस बीमारी के इलाज के लिए केजीएमयू के कार्डियोलॉजी विभाग ने महाधमनी में एंडोवास्कुलर डिवाइस का उपयोग करके स्यूडोएन्यूरिज्म थैली के छेद को सफलतापूर्वक बंद कर दिया गया, लेकिन 3 से 4 सप्ताह बाद ही रिसाव के कारण धीरे-धीरे थैली का आकार बढ़ता गया । जिससे थैली के फटने और मरीज की जान जाने का जोखिम था। उन्होंने बताया कि इसका एकमात्र विकल्प ओपन सर्जरी ही बचा था, लेकिन इस सर्जरी को करने में मुख्य चुनौती यह थी कि स्यूडोएन्यूरिज्म थैली छाती पर ही थी यानी छाती की हड्डी के ठीक पीछे स्थित थी। हृदय और महाधमनी को घेरे हुई थी, इसलिए थैली के पार हृदय और महाधमनी में प्रवेश करना मुश्किल था। इस सर्जरी में स्यूडोएन्यूरिज्म के फूटने और रक्तस्राव का खतरा अधिक था। इसलिए दाहिने पैर की नस से बाईपास का उपयोग करके प्रक्रिया को अंजाम दिया गया । जहां रोगी को हृदय-फेफड़े की मशीन से जोड़ने के लिए पैर की वाहिकाओं में नलिकाएं लगाई जाती हैं।
उन्होंने बताया कि सुरक्षित सर्जरी करने के लिए शरीर के ताममान को 18 डिग्री सेल्सियस तक कम किया गया। इस तकनीक को हाइपोथर्मिक सर्कुलेटरी अरेस्ट कहा जाता है। इस तकनीक का ही उपयोग करके हृदय और मस्तिष्क सहित पूरे शरीर में रक्त संचार को रोक दिया गया। उसके बाद केवल 6 मिनट में स्यूडोएन्यूरिज्म थैली को खोला गया और एंडोवास्कुलर डिवाइस को बाहर निकाला गया। इतना ही नहीं इस दौरान महाधमनी में छेद की सर्जरी की गई। उसके बाद एक घंटे में शरीर को सामान्य तापमान में लाया गया। सर्जरी के बाद मरीज वेंटिलेटर पर सीटीवीएस आईसीयू में रखा गया। आईसीयू में वह ठीक हो गईं और अगले दिन उन्हें वेंटिलेटर से हटा दिया गया। अब मरीज पूरी तरह से ठीक है। उन्होंने बताया कि 20 साल में ऐसा पहला मामला था, जिसकी सर्जरी के दौरान कई चुनौतियों से डॉक्टरों को गुजरना पड़ा।
सर्जरी करने वाली टीम
प्रोफेसर एस.के. सिंह, डॉ. विवेक टेवर्सन, डॉ. सर्वेश कुमार, डॉ. भूपेन्द्र कुमार और डॉ. मोहम्मद जीशान हकीम शमिल रहे। वहीं पर्फ्युज़निस्ट टीम में मनोज श्रीवास्तव, तुषार मिश्रा, देबदास प्रमाणिक और साक्षी जयसवाल शामिल थे। कार्डियक एनेस्थीसिया टीम का नेतृत्व डॉ. करण कौशिक के साथ डॉ. दुर्गा कन्नोजिया ने किया । नर्सिंग प्रभारी विभा सिंह और मनीषा ने अपनी टीम के साथ ऑपरेशन थिएटर में मरीज की देखभाल की। आईसीयू देखभाल नर्सिंग प्रभारी आईसीयू अलका और उनकी कार्डियक आईसीयू नर्सों की टीम ने संभाली।
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