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डीएम व एमसीएच की डिग्री लेने वाले जिन विशेषज्ञ डॉक्टरों के भरोसे सरकार प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में सुपर स्पेशियलिटी सेवा को और प्रभावी करना चाहती है, उनमें से कुछ डॉक्टर 'गायब' हो गए हैं। डीएम व एमसीएच की डिग्री लेने वाले जिन विशेषज्ञ डॉक्टरों के भरोसे सरकार प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में सुपर स्पेशियलिटी सेवा को और प्रभावी करना चाहती है, उनमें से कुछ डॉक्टर 'गायब' हो गए हैं। निजी कॉरपोरेट अस्पतालों में भारी भरकम पैकेज के लालच में वे बॉन्ड की निर्धारित प्रक्रिया भी पूरी नहीं कर रहे हैं।
इससे सरकार को न सिर्फ करोड़ों रुपये का चूना लग रह रहा है, बल्कि बेहतर सुपर स्पेशियलिटी सेवा की मंशा पर पानी भी फिर रहा है। सब कुछ जानने के बाद भी चिकित्सा विभाग बेफ्रिक है। ऐसे 'गायब' विशेषज्ञों के खिलाफ एक्शन न होते देख नए सत्र में भी कई डॉक्टर धीरे से खिसकने की तैयारी में हैं। वे अपने डॉक्यूमेंट के लिए संबंधित कॉलेजों में जुगाड़ लगा रहे हैं।
प्रदेश के चिकित्सा संस्थानों में डीएम और एमसीएच की पढ़ाई करने वाले करीब 150 डॉक्टरों से बॉन्ड भरवाया जाता है। इसके तहत डिग्री हासिल करने के बाद उन्हें दो साल तक सरकारी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में सेवाएं देनी हैं। ऐसा न करने पर सरकारी खाते में एक करोड़ रुपये जमा करना पड़ता है। यह व्यवस्था वर्ष 2018 बैच से लागू है। इस बैच ने 2021 में डिग्री हासिल की। इन्हें काउंसिलिंग के बाद अलग-अलग मेडिकल कॉलेजों व अस्पतालों में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में तैनाती दी गई। इन्हें मानदेय के रूप में 1.20 लाख रुपये प्रतिमाह दिया जाता है।