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संगम की रेती पर मोक्ष की राह दिखा रहे डॉक्टर और इंजीनियर
इलाहाबाद न्यूज़: सनातन धर्म की अलख जगाने के लिए संगम की रेती पर जुटे संतों में मेडिकल, इंजीनियरिंग की पढ़ाई और पीएचडी करने वाले भी शामिल हैं. अपने क्षेत्र में सफल जीवन बिताने वाले इन डॉक्टर, इंजीनियरों ने जब सनातन धर्म को करीब से जाना तो उन्होंने इसकी राह पकड़ ली. अब अध्यात्म से जुड़कर मोक्ष की राह दिखा रहे हैं. माघ मेले में ये अकेले नहीं है, बल्कि इनके साथ इन्हें मानने वाले तमाम कल्पवासी भी रहते हैं.
इन संतों में शामिल हैं डॉ. राधाचार्या, डॉ. कौशलेंद्र प्रापन्नाचार्य, ज्योतिषाचार्य अतिमाभ गौड़ और केशव पुरी. संस्कृत, अंग्रेजी और हिन्दी में एमए कर चुकीं डॉ. राधाचार्य ने पीएचडी की हैं. वह शिक्षण कार्य से जुड़ीं और प्रिंसिपल रहीं. डॉ. राधाचार्य का कहना है कि शिक्षण के दौरान वो आनंद नहीं आया. ऐसे में उन्होंने अध्यात्म की राह पकड़ी. सीधे भगवती दुर्गा से संपर्क जुड़ा और आज पूजन में मन लगता है. मेला क्षेत्र में संगम अपर मार्ग पर उनका शिविर लगता है. एक दर्जन से अधिक लोगों को अध्यात्म से जोड़कर वो मोक्ष की राह बता रही हैं. डॉ. राधाचार्या अपने पुराने जीवन के बारे में बात भी नहीं करना चाहती हैं.
ज्योतिषाचार्य डॉ.अमिताभ गौड़ ने एमबीए के साथ ही पीएचडी भी किया है. मार्केटिंग के क्षेत्र में जब बहुत मन नहीं लगा तो उन्होंने अध्यात्म की राह पकड़ी. उनका कहना है कि वास्तव में सनातन धर्म विज्ञान पर आधारित हैं. इसे समझने की बात है. आज उनकी बात से तमाम लोग सहमत हैं. आरबीआई और भारत सरकार की टकसाल में काम कर चुके रामकृष्ण दास की पहचान अब संत कोल्हूनाथ के तौर पर है. वह कोल्हूनाथ खालसा के संस्थापक भी हैं. उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश में नौकरी के दौरान कुछ ऐसे कर्मचारियों के संपर्क में आए जो हर साल प्रयाग आते थे. इन्हीं से प्रेरित होकर संत बने. स्वामी प्रणव पुरी इन संतों में प्रमुख हैं. स्वामी प्रणव पुरी ने बीटेक किया. एक मल्टी नेशनल कंपनी में उन्होंने नौकरी की. उनका कहना है कि लगातार नौकरी के बाद भी मन शांत नहीं होता था. रोजाना कुछ न कुछ लगा ही रहता था. एक दिन उनके पास एक संत आए. उनके जीवन ने प्रभावित किया और वह उनके साथ हो लिए. डॉ. कौशलेंद्र प्रपन्नाचार्य पीएचडी कर चुके हैं. एलएलबी और एलएलएम की डिग्री उनके पास हैं. लंबे समय तक उन्होंने वकालत के क्षेत्र में काम किया. लेकिन फिर मन आध्यात्म में लगा और कौशलेंद्र प्रपन्नाचार्य आचार्यबाड़ा के प्रमुख संत बन गए.