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इलाहाबाद न्यूज़: फैटी लिवर की समस्या को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. आईएमए के वार्षिक सम्मेलन के पहले दिन विशेषज्ञों ने इस समस्या की ओर ध्यान खींचा. हाल के वर्षों में नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर की समस्या तेजी से बढ़ी है जो चिंता का विषय है. यदि जांच में फैटी लिवर आ रहा है तो अपने डॉक्टर से जरूर संपर्क करें. उसको क्लासीफाई कराएं कि रिवर्सिबल स्टेज पर हैं या नहीं. ग्रेड वन या टू में बचाव की काफी गुंजाइश रहती है.
वैज्ञानिक सत्र में मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन विभाग की प्रोफेसर डॉ. अनुभा श्रीवास्तव ने व्याख्यान दिया. कहा कि फैटी लिवर होने पर वजन कम करने की कोशिश करें, खानपान में आवश्यक बदलाव की तरफ ध्यान दें, फैटी डाइट न लें. ग्रेड थ्री या फोर में पहुंच गए और एक बार सूजन या सिरोसिस
शुरू हो जाती है तो वापस ठीक होना मुश्किल है. अगर हम अमेरिका के आंकड़ें को देखे तो लिवर ट्रांसप्लांट (प्रत्यारोपण) का यह सबसे बड़ा कारण है. विकासशील देश में बहुत तेजी से डाइबिटीज के मरीज बढ़ रहे हैं और उसी के साथ फैटी लिवर की समस्या भी बढ़ रही है. पहले तो खान-पान को नियंत्रित रखें, नियमित व्यायाम करें तो बचाव कर सकते हैं. आयोजन सचिव और लैप्रोस्कापिक सर्जन डॉ. राजीव गोयल ने कहा कि फैटी लिवर होने पर घबराने की जरूरत नहीं है. सही समय पर जांच हो जाए तो इलाज है.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के प्रेसीडेंट इलेक्ट डॉ. शरद अग्रवाल ने सरकार से मिक्सोपैथी को बढ़ावा न देने की अपील की है. आईएमए के राष्ट्रीय अधिवेशन में आए डॉ. शरद ने होम्योपैथी में मॉडर्न फार्माकोलॉजी पढ़ाने के निर्णय पर कहा कि ऐसा करने से पब्लिक का नुकसान होगा. एलोपैथी सुविधाएं पिछड़ेंगी. इलाज की हर पैथी की अपनी खूबियां हैं. उन्हें उनके स्वरूप में स्वीकार करने में कोई परहेज नहीं है. आज पूरी दुनिया से लोग इलाज करवाने भारत आ रहे हैं. मेडिकल टूरिज्म बढ़ रहा है. यहां इलाज का खर्च अन्य देशों की तुलना में सौ गुना कम है. उन्होंने कहा कि चिकित्सा से जुड़े किसी भी अहम मसले पर आईएमए की सहमति से ही निर्णय लिया जाना चाहिए.