उत्तर प्रदेश

डीएम-एसपी पर गाज, भू माफियाओं का कब्जा, और आज वहीँ अमित शाह ने किया इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेंसिक साइंस का शिलान्यास

jantaserishta.com
1 Aug 2021 11:38 AM GMT
डीएम-एसपी पर गाज, भू माफियाओं का कब्जा, और आज वहीँ अमित शाह ने किया इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेंसिक साइंस का शिलान्यास
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लखनऊ के सरोजनी नगर इलाके में आज जिस जमीन पर उत्तर प्रदेश इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेंसिक का शिलान्यास हुआ है, उस जमीन पर भू माफियाओं ने फर्जी कागजात बनवाकर कब्जा कर लिया था. इस जमीन को भूमाफियाओं के कब्जे से मुक्त कराने वाले अफसरों को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी. सरोजनी नगर के पिपरसंड इलाके में रविवार को देश के गृह मंत्री अमित शाह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने फॉरेंसिक साइंस के इंस्टीट्यूट का शिलान्यास किया. इसका उद्देश्य यूपी पुलिस को बेहतर ट्रेनिंग देने के साथ-साथ क्राईम इन्वेस्टिगेशन के तमाम कोर्स शुरू होने हैं लेकिन इस जमीन को हासिल करना यूपी पुलिस ट्रेनिंग विभाग के लिए आसान नहीं था.

इंस्टीट्यूट की 50 एकड़ जमीन भू माफियाओं के कब्जे में थी. दरअसल, साल 1955 में 57 एकड़ जमीन एक ट्रैक्टर कंपनी को 10 साल के लिए लीज पर दी गई थी. कंपनी की लीज खत्म हुई तो तत्कालीन प्रशासन ने पूरी जमीन ग्राम सभा के नाम दर्ज करा दी. साल 2014 में इस बेशकीमती जमीन पर भू माफियाओं ने कब्जा करना शुरू किया. कागजात में हेराफेरी कर इस जमीन के फर्जीवाड़े में शामिल खुर्शीदा आगा ने इस जमीन को पहले बालक गंज कब्रिस्तान और मस्जिद के नाम पर शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के नाम दर्ज करवाया. इसे वक्फ की संपत्ति बनाया गया और फिर खुर्शीद आगा इस संपत्ति का आजीवन मुतवल्ली बन गया. साल 2014 में खुर्शीद आगा ने यह जमीन आधुनिक सहकारी गृह समिति को बेच दी.
आधुनिक सहकारी गृह समिति ने यह जमीन नोएडा की अंतरिक्ष लैंडमार्क प्राइवेट लिमिटेड को बेच दी. बताया जाता है कि अंतरिक्ष लैंड मार्क प्राइवेट लिमिटेड तक इस जमीन के पहुंचाने के खेल में लखनऊ का चर्चित भूमाफिया अशोक पाठक शामिल था. एयरपोर्ट के नजदीक करीब ढाई सौ एकड़ जमीन पर अंतरिक्ष लैंड मार्क हाउसिंग सोसाइटी बनाने की प्लानिंग करने लगा. कागजों में जमीन दर्ज करवाने के बाद कंपनी ने रातो रात जमीन पर रेडीमेड बाउंड्री लगा दी. इतना ही नहीं जमीन पर कुछ ही दिनों में बड़ी-बड़ी गाड़ियों से लोगों का आना-जाना भी शुरू हो गया. करीब 40 साल से जिस जमीन को इलाके के लोग ग्राम समाज की जमीन जान रहे थे, उसपर कब्जा होते देख ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से इसकी शिकायत की.
लखनऊ के तत्कालीन जिलाधिकारी (डीएम) राजशेखर और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) राजेश पांडेय ने सरकारी जमीन पर हो रहे निर्माण की जांच के लिए टीम भेजी. जिला प्रशासन की तरफ से एडीएम स्तर के अधिकारी को सरकारी कागजों में जांच और कब्जा करने आई कंपनी के पास मौजूद दस्तावेजों की जांच करने के लिए कहा गया. एसएसपी ने स्थानीय पुलिस और एडिशनल एसपी रैंक के अधिकारी को किसी भी तरह की गुंडागर्दी या कानून व्यवस्था न बिगड़ने देने की हिदायत देते हुए कैंप करने के निर्देश दे दिए.
एडीएम ने दी थी फर्जी कागजात की रिपोर्ट
एडीएम ने जांच के बाद रिपोर्ट दी थी कि कंपनी के पास मौजूद कागजात फर्जी हैं. फर्जी ऑर्डर करा कर शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के नाम यह जमीन दर्ज कराई गई और उसके बाद प्लानिंग के तहत खुर्शीद आगा ने यह जमीन पहले आधुनिक सहकारी गृह समिति को बेची और फिर आधुनिक सहकारी गृह समिति ने यह जमीन अंतरिक्ष लैंड मार्क को बेच दी थी. एडीएम की रिपोर्ट के आधार पर जिला प्रशासन की तरफ से दो एफआईआर दर्ज करवाई गई. पहली एफआईआर सरोजनी नगर थाने में फर्जी दस्तावेजों से जमीन बेचने की लिखवाई गई और दूसरी वजीरगंज थाने में शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड से फर्जी ऑर्डर कराने पर लिखवाई गई.
2015 में कब्जा मुक्त हुई जमीन
17 दिसंबर 2015 को जिला प्रशासन ने इस बेशकीमती जमीन को भू माफियाओं से मुक्त करा लिया था. भूमाफियाओं की मिलीभगत से इस सरकारी बेशकीमती जमीन को अवैध कब्जे से छुड़ाने की खबर तत्कालीन डीजी ट्रेनिंग सुलखान सिंह तक पहुंची तो उन्होंने इस जमीन पर पुलिस यूनिवर्सिटी बनाने का प्रस्ताव रखा. दरअसल डीजी ट्रेनिंग सुलखान सिंह लंबे समय से लखनऊ में पुलिसिंग से जुड़े कोर्स संचालित करने के लिए पुलिस विश्वविद्यालय बनाने के लिए जमीन की तलाश कर रहे थे.
डीजी ट्रेनिंग की अर्जी पर बना इंस्टीट्यूट
डीजी ट्रेनिंग की तरफ से डीएम लखनऊ को यह जमीन पुलिस अकादमी को ट्रांसफर करने के लिए अर्जी दी गई. जिला प्रशासन की ओर से ग्राम समाज के नाम पर दर्ज यह जमीन पुलिस अकादमी के नाम ट्रांसफर कर दी गई जिस पर अब उत्तर प्रदेश इंस्टीट्यूट आफ फॉरेंसिक साइंस बनने जा रहा है. अरबों की इस जमीन को बिल्डर कंपनी को बेचने में भले ही अशोक पाठक का नाम बताया जा रहा हो लेकिन उस समय चर्चा यह भी थी कि तत्कालीन सरकार के एक बड़े मंत्री की शह पर ही अरबों की जमीन पर कब्जे का यह खेल हुआ था. इस जमीन पर कब्जा करने और फिर जमीन को पुलिस अकादमी के नाम ट्रांसफर कराने का खामियाजा तत्कालीन एसएसपी और डीएम तक को भुगतना पड़ा. तत्कालीन एसएसपी राजेश पांडेय को तो इस जमीन पर कब्जा होने के एक दिन पहले ही लखनऊ से हटाकर डीजपी ऑफिस से संबद्ध कर दिया गया था. वहीं डीएम रहे राजशेखर को कुछ महीने बाद लखनऊ से हटाकर डायरेक्टर मंडी परिषद भेज दिया गया था.


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