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उत्तर प्रदेश
मैनपुरी में इतनी भी आसान नहीं डिंपल की राह, एक शख्स जो रुठा तो निकलेगी साइकल की हवा
Shantanu Roy
12 Nov 2022 10:11 AM GMT

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बड़ी खबर
लखनऊ। यूपी में 2 विधानसभा और एक लोक सभा सीट पर 5 दिसंबर को उपचुनाव होने वाला है। जिसमें सबसे चर्चित सीट सपा का गढ़ मैनपुरी है। वहीं, राजनीतिक घराने की बहू डिंपल यादव ब्रेक के बाद फिर से पॉलिटिक्स में लौट रही हैं। वह अपने ससुर और समाजवादी पार्टी के पितामह मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव में मैदान में उतर रही हैं।
डिंपल को मिलेगी सहानुभूति
समाजवादी पार्टी का अभेद किला माने जाने वाला लोक सभा सीट मैनपुरी से सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव का जीत तय माना जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस लोक सभा उपचुनाव में मुलायम के निधन की सहानुभूति मिलेगी जिसकी वजह से फिर से इस सीट पर सपा का वर्चस्व कायम रहेगा। वहीं अगर आंकड़ों की बात की जाए तो वह डिंपल के जीत की विपरीत दिखाई देती है।
डिंपल के सामने BJP जैसी मजबूत
डिंपल के सामने भारतीय जनता पार्टी जैसी मजबूत राजनीतिक पार्टी है, जो छोटे से चुनाव को भी मिशन मोड में लड़ती है। वहीं जातिगत पॉलिटिक्स के अलावा चर्चा यह भी है कि भगवा खेमे से मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव को टिकट दिया जा सकता है। संभव है कि डिंपल इन सभी चुनौतियों से पार पा लें। लेकिन एक शख्स जो X-Factor साबित हो सकता है, वह हैं- चाचा शिवपाल सिंह यादव आइए समझते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है।
X-Factor क्या है समझिए
मैनपुरी लोकसभा में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें भोगांव, किशनी (सुरक्षित), करहल, मैनपुरी और जसवंतनगर शामिल हैं। इस साल फरवरी-मार्च में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो मुकाबला करीब-करीब टक्कर का ही रहा। यहां करहल और किशनी सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई, जबकि भोगांव और मैनपुरी सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की। जसवंतनगर सीट से शिवपाल सिंह यादव विजयी हुए, जो समाजवादी पार्टी से अलग होकर बनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं। हालांकि इस चुनाव में वह अखिलेश की अगुवाई वाली सपा में के साथ गठबंधन में लड़ रहे थे, इसलिए मैनपुरी लोकसभा का पलड़ा 3-2 से सपा की तरफ ही झुका हुआ नजर आया। मैनपुरी के आंकड़े दिलचस्प हैं। यह लोकसभा सीट यादव परिवार का अभेद्य गढ़ कही जाती है। पिछले कई चुनावों से लगातार यहां पर साइकल की सवारी ही चलती रही है। यहां तक कि 2014 और 2019 में मोदी लहर के बावजूद भाजपा को यहां पर जीत नहीं मिल पाई थी। यहां से मुलायम और उनके परिवार के भतीजे चुनाव जीतते आ रहे हैं। लेकिन 2019 में हुए पिछले चुनाव के आंकड़े कुछ दिलचस्प हैं। यादव और शाक्य बहुलता वाले मैनपुरी में भाजपा ने मुलायम के मुकाबले प्रेम सिंह शाक्य को उम्मीदवार बनाया था। यहां मुलायम को जीत तो मिल गई लेकिन यह एकतरफा नहीं रही। कुल प्रतिशत पर वोट डालें तो मुलायम को 52% वोट हासिल हुए, जबकि प्रेम शाक्य उनसे महज 8 फीसदी पीछे 44% वोट शेयर लेकर दूसरे नंबर पर रहे।
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