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बदलते मौसम में देहात में उठी पीएचसी की मांग, झोलाछाप काट रहे चांदी
लेटेस्ट न्यूज़: स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कई साल पहले सरकार की ओर से लाखों की लागत से सीएचसी का निर्माण कराया गया था। यह विडंबना ही है कि अपने निर्माण के कई साल बाद भी यह सीएचसी आज भी डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के आने का इंतजार कर रहा है। आलम यह कि बरसों से खाली पड़ी इस सीएचसी को अब भी डॉक्टर नसीब नहीं हुआ है और आज सीएचसी भैंसों के तबेले में तब्दील हो चुकी है। वहीं, सरकारी डॉक्टरों के अभाव में इस इलाके की चिकित्सा व्यवस्था झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे है। वे मरीजों के इलाज के नाम पर जमकर चांदी काट रहे हैं। गौरतलब है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने को लेकर लाखों की लागत से सीएचसी बनाई गई थी, लेकिन रखरखाव के चलते अब बिल्कुल बेकार पड़ी है। रखरखाव के अभाव में सीएचसी का भवन जर्जर भी हो गया है। सीएचसी का भवन बनने से ग्रामीणों को उम्मीद थी कि अब गांव में ही स्वास्थ्य सुविधा मिलेगी, लेकिन स्वास्थ्य केंद्र के आसपास ग्रामीणों का सपना धरा का धरा ही रह गया। निर्माण के बाद से आज तक एक बार भी केंद्र पर न डॉक्टर न स्वास्थ्यकर्मी बैठे हैं। भवन के प्रति न तो प्रशासन का ध्यान है और न ही स्वास्थ्य विभाग इस पर गंभीर है। लिहाजा, ग्रामीणों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा से वंचित रहना पड़ रहा है। जोकि अब बिल्कुल जर्जर हालत में पहुंच चुका है।
बदलते मौसम में मच्छरों के प्रकोप व संचारी रोग के चलते बीमारियों ने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। जिससे नजला, खांसी, बुखार और अस्थमा के रोगियों की तादाद बढ़ी है, लेकिन सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में देहात के रोगी आज भी झोलाछाप डाक्टरों से उपचार करा रहे हैं। जनवाणी टीम ने किठौर के खादर में स्वास्थ्य सेवाओं की पड़ताल की तो भयानक स्थिति सामने आई। कराहते रोगी और ग्राम प्रधान यहां पीएचसी की मांग करते मिले। किठौर थाने का खादर क्षेत्र काफी बड़ा है। इसमें सालौर रसूलपनाह, तरबियतपुर शुमाली, तरबियतपुर जुनूबी, सिकंदरपुर, फिरोजपुर, शाहीपुर, भगवानपुर, मिश्रीपुर, ढकैनी, सारंगपुर, महमूदपुर गढ़ी समेत दर्जनों गांव शामिल हैं। गंगा का तराई क्षेत्र होने के कारण यहां मच्छरों व अन्य विषैले कीटों का काफी प्रकोप रहता है। जो बदलते मौसम में भयंकर बीमारियों नजला, खांसी, बुखार, डायरिया को न्यौता देने का काम करता है। साथ ही बड़े पैमाने पर धान की फसल के बाद फुंकती पराली, खेतों की जुताई से उड़ती धूल यहां अस्थमा रोग को बढ़ावा देती है। खास बात यह है कि बीमारियों के भयंकर प्रकोप के बीच खादर क्षेत्र के हजारों लोग आज भी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं।
झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे चिकित्सा व्यवस्था: ग्रामीणों को सीएचसी से बेहतर सुविधा नहीं मिलने के कारण लोगों में भारी आक्रोश है। ग्रामीणों ने बताया कि स्वास्थ्य उप केंद्र का भवन काफी जर्जर हो गया है। भवन बनने के बाद से अब तक तक इस स्वास्थ्य केंद्र से ग्रामीणों को कोई लाभ नहीं मिला है। गांव के बीमार व्यक्तियों को इलाज कराने के लिए इलाके के झोलाछाप डॉक्टरों पर निर्भर रहना पड़ता है। तरबियतपुर जुनूबी निवासी प्रधानपति गुड्डू का कहना है कि उनके गांव समेत आसपास के दर्जनों गांव परीक्षितगढ़ ब्लॉक में पड़ते हैं। परीक्षितगढ़ सीएचसी इन गांवों से 20-25 किमी. दूर है। लगभग तीन दशक पूर्व यहां सीएचसी की बिल्डिंग बनी थी। जो खंडहर और पूर्णतया तबेले में तब्दील हो गई है, लेकिन आज तक कोई डाक्टर नही पहुंचा। यदि यहां पीएचसी बन जाए तो ग्रामींणों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल जाएंगी। सिकंदरपुर ग्राम प्रधान सुषमा के पति सोनू का कहना है कि खादर में अक्सर बीमारियों का प्रकोप रहता है, लेकिन सीएचसी दूर होने के कारण गांव में झोलाछापों से उपचार कराना पड़ता है। यहां दर्जनों गांव सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से अछूते हैं। खादर में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अवश्य होना चाहिए। सारंगपुर के प्रधान पुत्र अकबर अली की का कहना है कि शिक्षा और स्वास्थ्य व्यक्ति की मुख्य आवश्यकताएं हैं। जिन्हें उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है। मगर उनके आसपास कई गांवों को सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं नही मिल रही हैं। एएनएम, आशा, आदि अभियान के दौरान आती हैं। लेकिन अन्य बीमारियों के उपचार के लिए झोलाछाप डाक्टरों के दर पर जाना पड़ता है। खादर में एक हैल्थ सैंटर भी खुल जाए तो लोगों को उपयुक्त उपचार मिलने लगेगा।
महमूदपुर गढ़ी के ग्राम प्रधान रईसुद्दीन का कहना है कि बीमार होने पर ग्रामींण अक्सर तड़पते रहते हैं। उन्हें समय पर सुलभ उपचार नही मिल पाता। यातायात के साधन नही हैं। ऐसे में यहां पीएचसी बन जाए तो लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के साथ झोलाछापों के शोषण से छुटकारा मिल जाएगा।