उत्तर प्रदेश

एकल प्रयोग वाली प्लास्टिक के खिलाफ संदेश देने के लिए दमन और दीव से बांग्लादेश तक की साइकिल यात्रा की

Shantanu Roy
18 Sep 2022 10:00 AM GMT
एकल प्रयोग वाली प्लास्टिक के खिलाफ संदेश देने के लिए दमन और दीव से बांग्लादेश तक की साइकिल यात्रा की
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बड़ी खबर
लखनऊ। एकल प्रयोग वाली प्लास्टिक (सिंगल यूज प्लास्टिक) पर पूर्ण पाबंदी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए दमन और दीव से बांग्लादेश तक की साइकिल यात्रा पर निकले अनिल चौहान की कहानी किसी नेक मकसद को हासिल करने के जुनून की अनोखी मिसाल है। देश में एकल प्रयोग वाली प्लास्टिक के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए पिछली एक जनवरी को अपनी दो छोटी-छोटी बच्चियों को लेकर निकले चौहान का यह प्रयास कितना रंग लाएगा यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना करने के लिए भी गजब की हिम्मत और फौलादी इरादे चाहिए। लगभग 11,000 किलोमीटर साइकिल चलाकर पिछले दिनों लखनऊ पहुंचने का दावा करने वाले चौहान ने 'पीटीआई-भाषा' से बातचीत में अपने इस अनोखे सफर का मकसद और उसमें हुई दुश्वारियां साझा कीं। उन्होंने कहा कि वह देश में एकल प्रयोग वाली प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद कराने के लिए दमन और दीव से एक जनवरी को साइकिल यात्रा पर निकले थे और उनके इस सफर में उनकी सात साल की बेटी श्रेया (7) और युक्ति (4) भी शामिल हैं। अपने 'परिवार' के साथ इतनी दुरूह यात्रा पर निकलने का मकसद पूछे जाने पर चौहान ने बताया कि उनके इस मिशन का मुख्य लक्ष्य एकल इस्तेमाल वाली प्लास्टिक को खाने से होने वाली गायों की मौतों को रोकना है।
उन्होंने कहा कि देश में ज्यादातर गायों की मौत कचरे में फेंकी गई एकल प्रयोग वाली प्लास्टिक की वजह से होती है। इसके अलावा, गायों में होने वाली बीमारियों का भी एक मुख्य कारण यही प्लास्टिक है। चौहान के मुताबिक, वह जब एक जनवरी 2022 को अपने गांव से दोनों बच्चियों को लेकर साइकिल यात्रा पर निकले थे, तब बहुत से लोगों ने उनका मजाक उड़ाया था, लेकिन उनकी उलाहना से बेपरवाह होकर वह यह सोचकर इस सफर पर चल पड़े हैं कि अपना फर्ज निभाएंगे, फिर चाहे कोई उनका साथ दे या ना दे। चौहान ने बताया कि वह अब तक गोवा, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली और मध्य प्रदेश घूमते हुए लखनऊ पहुंचे हैं। अपने इस मिशन के तहत वह रास्ते में पड़ने वाले स्कूलों और ग्राम पंचायतों में एकल प्रयोग वाली प्लास्टिक के खिलाफ जागरूकता फैलाते हैं। इसके लिए उन्हें स्कूल प्रशासन और ग्राम प्रधानों तथा अन्य जिम्मेदार लोगों का सहयोग भी मिलता है। अपने साथ महज एक बैग और दो कंबल लेकर चले चौहान ने बताया कि वह रात में किसी मंदिर, बस अड्डे, रेलवे स्टेशन या धर्मशाला में ठहर जाते हैं और वहां के जिम्मेदार लोग उनके इस नेक मकसद को देखते हुए उन्हें भोजन-पानी वगैरह भी दे देते हैं। चौहान के अनुसार, उनका मकसद बांग्लादेश तक जाना है, जिसके लिए उन्होंने अपना और अपनी दोनों बेटियों का पासपोर्ट भी बनवाया है और उम्मीद है कि उन्हें वीजा भी मिल जाएगा।
भारत में एकल उपयोग वाली प्लास्टिक पर कई बार पाबंदियां लगी हैं। सख्ती भी की गई है, लेकिन कभी भी इस पर पूरी तरह से पाबंदी नहीं लग सकी। चौहान के मुताबिक, "इसका कारण यह है कि एकल उपयोग वाली प्लास्टिक का उत्पादन करने वालों के खिलाफ कभी ईमानदारी से कार्रवाई नहीं हुई। जब तक एकल प्रयोग वाली प्लास्टिक का सामान बनाने वाली कंपनियों को बंद नहीं कराया जाएगा, तब तक यह सिलसिला जारी रहेगा।" उन्होंने कहा कि वह सरकार से मांग करते हैं कि सबसे पहले इस पहलू पर ध्यान दिया जाए, तभी एकल प्रयोग वाली प्लास्टिक पर पाबंदी के तमाम सरकारी और अदालती आदेशों का कोई मतलब रहेगा। चौहान ने बताया कि उनकी पत्नी की मौत हो चुकी है और अब उनके परिवार में उनकी सिर्फ दोनों बेटियां ही हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि, उनका मकसद बहुत बड़ा है और सफर काफी लंबा, इसलिए वह अपनी दोनों बेटियों को भी अपने साथ लाए हैं। एक अनुमान के मुताबिक, देश में हर साल 35 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। आंकड़ों के अनुसार, देश में हर साल प्रति व्यक्ति तीन किलोग्राम प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। प्रदूषण के गहराते संकट के मद्देनजर केंद्र सरकार ने इस साल एक जुलाई से एकल उययोग वाली प्लास्टिक के उत्पादन और इस्तेमाल पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने का आदेश दिया है। हालांकि, बावजूद इसके अब भी एकल प्रयोग वाली प्लास्टिक का इस्तेमाल रुका नहीं है।
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