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न्यूज़क्रेडिट: अमरउजाला
कृषि वैज्ञानिकों की सलाह है कि यदि किसी खेत में झुलसा रोग का लक्षण दिखे, तो यूरिया का छिड़काव न करें। उपचार के लिए इलेक्ट्रोसाइक्लिक या स्ट्रेप्टो माइक्लीन की 20 ग्राम मात्रा 100 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।
कम बारिश की वजह से जनपद में सर्वाधिक बोई जाने वाली धान की संभा प्रजाति की फसल में झुलसा रोग लगने लगा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि समय से दवा का छिड़काव नहीं किया गया तो पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी। वहीं, कम बारिश की वजह से धान की पैदावार के प्रभावित होने के आसार हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के अध्यक्ष एवं वैज्ञानिक एसके तोमर ने बताया कि धान की फसल के लिए पानी बहुत जरूरी होता है। जुलाई का पूरा महीना और आधा अगस्त बीतने के बाद भी बहुत कम बारिश हुई है। इसका असर धान की पैदावार पर दिखेगा।
दूसरी ओर, धान की फसल में जीवाणु झुलसा रोग लगना शुरू हो गया है। इसका सर्वाधिक असर सांभा और काला नमक धान पर है। इस रोग में पत्ती नोक की तरफ से सूखती है। इससे पूरी फसल पीली पड़कर सूख जाती है।
कृषि वैज्ञानिकों की सलाह है कि यदि किसी खेत में झुलसा रोग का लक्षण दिखे, तो यूरिया का छिड़काव न करें। उपचार के लिए इलेक्ट्रोसाइक्लिक या स्ट्रेप्टो माइक्लीन की 20 ग्राम मात्रा 100 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। इसके बाद खेत में प्रति एकड़ के हिसाब से 50 किलोग्राम पोटास का बुरकाव करें।