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उत्तर प्रदेश में धड़ल्ले से चल रहा नकली दवा का कारोबार
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में नकली दवाओं के खेल में डॉक्टरों का ज्ञान भी फेल होता नजर आ रहा है। कई बार उनकी लिखी दवाओं का असर मरीजों पर नही दिखाई पड़ता है। ऐसे में उन्हें बार-बार दवाएं बदलनी पड़ रही हैं। यही वजह है कि चिकित्सा विशेषज्ञ दवा देने के कुछ दिन बाद जांच कराकर दवा का असर देखना जरूरी समझते हैं। बता दें कि एसटीएफ के द्वारा नकली दवाओं के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में पकड़े गए लोगों ने भी हैरान कर देने वाले कई खुलासे किए हैं।
पेट सम्बन्धी दवाओं में आ रही ज़्यादा दिक़्क़त: केजीएमयू के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के डॉक्टर अनिल गंगवार ने बताया कि पेट संबंधित बीमारी में प्रयोग होने वाली कई दवाएं महीने भर खाने के बाद भी असर नहीं डाल रही है। जबकि बैच नंबर बदल जाने पर संबंधित दवा कारगर होती है। इससे स्पष्ट है कि संबंधित टेबलेट में दवा का पावर कम है। इसी तरह मरीज सस्ती दवा के चक्कर में कई बार उससे मिलते जुलते नाम वाली दवा ले लेते हैं। जिससे वह भी बेअसर रहती हैं, ऐसे में जब दवा का असर ना हो तो मरीज को संबंधित डॉक्टर को जरूर बताना चाहिए।
जानकारों ने दी ये सलाह: केजीएमयू के फार्मोकोलॉजी विभाग के प्रोफेसर ऋषि पाल ने कहा कि किसी भी टेबलेट अथवा कैप्सूल मैं एक्टिव कंपाउंड कम होगा तो जाहिर है, कि उसकी कीमत भी कम होगी। उदाहरण के तौर पर पेरासिटामोल ले, यदि टेबलेट में 500mg के बजाय सिर्फ 100mg पावर की होगी तो वो मरीज पर कारगर नही होगी। वही नकली दवा बनाने वाली कंपनियां यही खेल करती हैं। एक्सपायरी दवा की दोबारा पैकिंग भी कर दी जाती है सीरप में दवा के बजाय सिर्फ चीनी का घोल भर देते हैं। इसे रोकने के लिए लगातार अभियान चलाना होगा।
जांच रिपोर्ट आने के बाद होगी कार्रवाई- उपायुक्त एफएसडीए: एफएसडीए की ओर से लगातार जांच अभियान चलाया जा रहा है। अलग-अलग बैच नंबर की दवाओं की रेंडम जांच कराई जा रही है। जहाँ भी अधोमानक अथवा नकली दवाएं मिल रही है। संबंधित के खिलाफ कार्रवाई के लिए लिखा जा रहा है, इसी माह करीब 20 से ज्यादा दवाओं के सैंपल भरे गए हैं। रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
इस तरह चलता है खेल: जानकारी के मुताबिक, हिमाचल में लगी दवा निर्माण इकाइयों से ब्रांडेड दवा के आकार की नकली दवा तैयार कराई जाती हैं। इसमें संबंधित साल्ट की मात्रा कम अथवा ना के बराबर होती है। उससे सिर्फ कैलशियम कार्बोनेट होता है, ऐसे में या ब्रांडेड की अपेक्षा काफी सस्ती पड़ती है। फिर ब्रांडेड दवा की तरह ही रैपर तैयार होते है। उन सभी पर ब्रांडेड दवा के बैच नंबर डालकर बाजार में उतार दिया जाता है।
इस तरह से किया जाता है पूरा खेल: आपको बता दें कि 20 हज़ार टेबलेट के बैच में करीब 10 हज़ार नकली बैच वाली दवा मिला दी जाती हैं। पिछले दिनों लखनऊ के अमीनाबाद दवा बाजार में जांच के दौरान गैस की समस्या होने पर दी जाने वाली दवाओं के सैंपल की जांच मैं भी इस खेल का खुलासा हुआ है।
6 सौ करोड़ की नकली दवाएं यूपी एसटीएफ़ कर चुकी सीज: एसटीएफ व एफएसडीए की टीम की पूछताछ में ब्रांडेड दवाओं में भी मिलावट का मामला सामने आया है। नकली दवा में पावर कम होने से मरीजों पर इसका असर नहीं होता है लिहाजा एसटीएफ और एफएसडीए की टीमें अलग-अलग बैच नंबर की दवाओं की जांच करा रही है। विभागीय रिपोर्ट देखें तो ये खेल लंबे समय से चल रहा है। साल 2022 में दवा के 350 सैंपल की जांच की गई। इसमें 85 अधोमानक और 40 नकली मिले। जिसके बाद 108 केस दर्ज कराए गए हैं। साथ ही UP STF के द्वारा अबतक करीब 6 सौ करोड़ की नकली दवाएं भी सीज की गई है।