उत्तर प्रदेश

पिछले 37 सालों में कांग्रेस पार्टी 269 से 2 पर जा पहुंची, जाने वजह

Admin4
6 July 2022 6:45 AM GMT
पिछले 37 सालों में कांग्रेस पार्टी 269 से 2 पर जा पहुंची, जाने वजह
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उत्तर प्रदेश: यूपी में कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। हाल में सम्‍पन्‍न विधानसभा चुनाव में जहां पार्टी को सिर्फ 2 सीटों से संतोष करना पड़ा वहीं विधानपरिषद में आज से वो जीरो हो गई है।

यूपी विधानसभा में 37 साल में कांग्रेस कैसे पहुंची 269 से कैसे 2 पर, विधानपरिषद में हो गई जीरो
यूपी विधानपरिषद में अपने इकलौते सदस्‍य दीपक सिंह के रिटायर हो जाने के चलते आज से उच्‍च सदन में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस जीरो हो जाएगी। 137 साल के इतिहास में यह पहला मौका है जब विधानपरिषद पूरी तरह कांग्रेस विहीन हो गई है। वहीं विधानसभा में पिछले 37 सालों में यह पार्टी 269 से 2 पर जा पहुंची है।
1985 के चुनाव में कांग्रेस ने 269 सीटें जीती थीं लेकिन वीपी सिंह के बोफोर्स का मामला उछालने के बाद देश की राजनीति में ऐसा उछाल आया कि 1989 आते-आते फिजा बदलने लगी। 1989 के लोकसभा चुनाव में किसी को स्‍पष्‍ट बहुमत न मिलने के चलते जहां केंद्र में वीपी सिंह की अगुवाई में लेफ्ट और बीजेपी के सहयोग से नेशनल फ्रंट की सरकार बनी वहीं यूपी में एनडी तिवारी के हटे और जनता दल के सिपहसलार के तौर पर मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी। इसके बाद देश में शुरू हुए मंडल और कमंडल की राजनीति के दौर ने कांग्रेस की शानो शौकत पर ग्रहण लगाना शुरू कर दिया। 1989 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बड़ी संख्‍या में सीटें गंवा दीं। तब भी 94 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई थीं। लेकिन 1993 के चुनाव में तो उसे सिर्फ 28 सीटें मिलीं। 1996 में कांग्रेस को 33 सीटों पर संतोष करना पड़ा।
2002 में कांग्रेस ने केंद्र में सत्‍ता हासिल की तो 2007 में उसे बहुत उम्‍मीद थी कि यूपी में भी प्रदर्शन बेहतर रहेगा। लेकिन उस चुनाव में भी कांग्रेस सिर्फ 22 सीटें जीत सकी। 2012 में भी केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली यूपीए की सरकार थी लेकिन यूपी में उसे 28 सीटें ही हासिल हुईं। 2017 में पार्टी ने सपा के साथ गठबंधन किया। कुल 114 सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन हासिल हुईं सिर्फ 7 सीटें। दरअसल, वीपी सिंह द्वारा मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू किए जाने और उसी दौर में बीजेपी द्वारा राममंदिर आंदोलन तेज किए जाने के बाद यूपी की राजनीति में जहां एक ओर भाजपा का उदय हुआ वहीं जातीय ध्रुवीकरण के बलबूते पहले जनता दल, फिर समाजवादी पार्टी और बसपा खूब फली-फूलीं।
90 के दशक की शुरुआत में रामरथ पर सवार भाजपा ने मध्‍यावधि चुनाव के बाद सत्‍ता हासिल की लेकिन बाबरी विध्‍वंस के चलते 18 महीने बाद ही तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री कल्‍याण सिंह को इस्‍तीफा देना पड़ा। कल्‍याण सिंह के हटने के बाद नई-नई समाजवादी पार्टी बनाने वाले मुलायम सिंह यादव ने तब बसपा के गठबंधन से सरकार बनाई लेकिन कुछ समय बाद ही मायावती ने समर्थन वापस लेकर उनकी सरकार गिरा दी। तब तक यूपी में जातीय राजनीति जोर पकड़ चुकी थी। मुलायम सिंह यादव मुस्लिम-यादव (माय) और मायावती दलित वोटों के समीकरणों के बूते यूपी की राजनीति को दो ध्रुवी बनाने में कामयाब रहे थे।
इस दौरान 2012 में मुलायम ने सत्‍ता की बागडोर अपने बेटे अखिलेश यादव के हाथों में सौंप दी। 2017 तक यूपी की सियासत में कमोबेश ऐसा ही माहौल बना रहा। लेकिन 2014 में केंद्र में नरेन्‍द्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार बनने के बाद यूपी में भी भगवा दल ने फोकस किया तो सारे समीकरण उल्‍टे पड़ने लगे। 2017 में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई और 2022 में वापसी करके करीब चार दशकों से यूपी की राजनीति में चल रही परिपाटी को पूरी तरह बदल दिया।
कांग्रेस ने जोर लगाया लेकिन नतीजा सिफर
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने यूपी की राजनीति में वापसी के लिए जोर नहीं लगाया। 2022 के चुनाव में तो पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने पूरी कमान अपने हाथ रखी। सड़क पर संघर्ष के जरिए पार्टी को फिर से खड़ा करने की कोशिश की। चुनावी घोषणा पत्र में आधी आबादी सहित हर वर्ग के लिए लोकलुभावन वादे किए लेकिन अंतत: नजीता सिफर रहा। पार्टी को सिर्फ दो सीटों पर संतोष करना पड़ा। यह यूपी की राजनीति में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है।
विधानपरिषद में कैसे पहुंची जीरो तक
विधानपरिषद 135 साल के इतिहास में आज पहली बार कांग्रेस विहीन हो जाएगी। प्रदेश विधान मण्डल के इस उच्च सदन कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह बुधवार को रिटायर हो जाएंगे। पांच जनवरी 1887 को प्रांत की पहली विधान परिषद गठित हुई थी और आठ जनवरी 1887 को थार्नाहिल मेमोरियल हाल इलाहाबाद में संयुक्त प्रांत की पहली बैठक हुई थी। तब से अब तक कभी ऐसा नहीं हुआ जब विधान परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व न रहा हो। मगर अब बुधवार से प्रदेश विधान परिषद में कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं रह जाएगा। विधान परिषद के जो नौ सदस्य 6 जुलाई को रिटायर हो रहे हैं, उनमें 6 सपा के 3 बसपा के एक कांग्रेस व दो भाजपा के सदस्य हैं।
मगर भाजपा के दो सदस्य उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और पंचायतीराज मंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह फिर से विधान परिषद के चुनाव में विजयी होकर सदन के सदस्य हो गए हैं। इनमें अलावा सपा के जगजीवन प्रसाद, बलराम यादव, डा.कमलेश कुमार पाठक, रणविजय सिंह, राम सुन्दर दास निषाद और शतरूद्र प्रकाश का कार्यकाल बुधवार को खत्म हो रहा है। इनके अलावा बसपा के अतर सिंह राव, सुरेश कुमार कश्यप और दिनेश चन्द्रा भी रिटायर हो रहे हैं। कांग्रेस के दीपक सिंह भी कल से विधान परिषद के सदस्य नहीं रहेंगे।


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