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आयोग ने नौ साल बाद दिया सुनवाई का मौका, जानिए पूरा मामला
मुरादाबाद न्यूज़: हैरत होगी पर यह हकीकत है. जनसुनवाई के तहत 2014 में किए गए प्रयासों में पहली सफलता नौ साल बाद मिली है. मुरादाबाद के आरटीआई एक्टिविस्ट सलीम बेग ने 2009 से 2014 के बीच सांप्रदायिक दंगों की सूचना मांगी थी. पहले उनके अपील में त्रुटियां बताकर खारिज किया जाता रहा. अब प्रारंभिक सुनवाई के लिए वर्चुअल तरीके से उपस्थित रहने को कहा गया है.
मुरादाबाद निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट एवं रिसर्चर सलीम बेग ने 3 जून 2014 को सूचना का अधिकार अधिनियम में बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग पटना से चार बिंदुओं पर सूचनाएं मांगीं थीं. उन्होंने बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग से एक जून 2009 से तीन जून 2014 तक की अवधि में बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग के परिक्षेत्र में हुए सांप्रदायिक दंगों की संख्या पूछी थी. इन साम्प्रदायिक दंगों में आयोग द्वारा की गई कार्यवाही की सूचना और आयोग द्वारा स्वयं टीम भेजकर कराई गई जांच की सूचना मांगी. साथ ही अन्य किसी माध्यम से कराई गई जांच की सूचना दंगेवार मांगी थीं.
निर्धारित समय में सूचनाएं नहीं मिलने पर वादी सलीम बेग ने वर्ष 2014 में प्रथम अपील राज्य अल्पसंख्यक आयोग पटना में दायर की थी.
उसके बाद भी सूचनाएं नहीं मिलीं तो द्वितीय अपील बिहार राज्य सूचना आयोग में दायर की. अब निबंन्धक उपेन्द्र कुमार ने वाद की सुनवाई के लिए मुरादाबाद निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट सलीम बेग को प्रारंभिक, संक्षिप्त सुनवाई के लिए राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के न्यायालय में डिजिटल अदालत प्रणाली के माध्यम से उपस्थित होने को कहा है . आरटीआई एक्टिविस्ट सलीम बेग ने कहा कि नौ साल के बाद मेरे एक वाद की सुनवाई के संबंध में आयोग का नोटिस मिलना आश्चर्यजनक ही नहीं चिंताजनक है. अधिनियम में दी गई व्यवस्था के मुताब़िक मुझे तीस दिन के अंदर जो सूचनाएं मिल जानी चाहिए थीं वह सूचनाएं मिलना तो दूर आयोग ही नौ साल बाद पहली सुनवाई की प्रक्रिया शुरू कर रहा है. उन्होंने कहा कि यह बिहार राज्य सूचना आयोग के अस्तित्व और पूरे सूचना का अधिकार अधिनियम के वजूद पर सवाल है. जो अधिनियम की प्रहरी राज्य और केंद्र सरकार के काम काज पर भी प्रश्न चिन्ह लगाता है.