उत्तर प्रदेश

सरकारी सर्विस बुक में व्यापक स्तर पर छेड़छाड़ का मामला

Admin Delhi 1
15 Nov 2022 8:14 AM GMT
सरकारी सर्विस बुक में व्यापक स्तर पर छेड़छाड़ का मामला
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मेरठ न्यूज़: नगर निगम के खेल भी निराले हैं। यहां पैसे की खनक के आगे तमाम नियम विरुद्ध काम करने से भी कर्मचारी और अधिकारी नहीं डरते हैं । सर्विस बुक सरकारी कर्मचारी का महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है। इसमें किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती, लेकिन नगर निगम में कुछ भी संभव है। नगर निगम के क्लार्क राजेश वर्तमान में स्वास्थ्य स्टोर के इंचार्ज है, उनके पास महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान सर्विस बुक में व्यापक स्तर पर छेड़छाड़ की गई है।

'जनवाणी' के पास जो सबूत मौजूद है, उसमें सुदर्शन नामक एक कर्मचारी का मूल जन्म डेट 1964 है, जबकि सर्विस बुक में छेड़छाड़ करते हुए उन्हें अतिरिक्त लाभ पहुंचाने के लिए 1975 कर दी गई है। इस तरह से इतना बड़ा अंतर यानी कि छेड़छाड़ के बाद जिस तरह का मामला नगर निगम में सामने आया है। पूर्व में भी हो सकता है कि कुछ लोगों की सर्विस बुक में छेड़छाड़ की गई हो। अब यह मामला एडीएम सिटी दिवाकर सिंह के पास पहुंचा हैं। सिटी मजिस्ट्रेट इस प्रकरण की जांच कर रहे हैं। उन्होंने नगर आयुक्त को पत्र लिखकर स्पष्ट किया है कि वांछित अभिलेख आदि जो मांगे गए थे, वो उपलब्ध नहीं कराए गए। जो जांच समिति गठित की गई है। इसी वजह से इस प्रकरण की जांच में जुटी जांच समिति जांच भी नहीं कर पा रही है। कार्रवाई भी इस प्रकरण में नहीं हो पा रही हैं। फिर से एडीएम सिटी ने नगर आयुक्त को पत्र लिखकर कहा है कि सेवा पुस्तिका और बिल, जांच समिति के सम्मुख उपलब्ध कराई जाए, लेकिन बार-बार रिमांइडर भेजने के बाद भी नगर आयुक्त एडीएम सिटी को सेवा पुस्तिका एवं वेतन बिल जांच समिति को उपलब्ध नहीं करा रहे हैं।

इससे स्पष्ट होता है कि नगर आयुक्त भ्रष्टाचार में संलिप्त कर्मचारियों को बचाने में जुटे हैं, यही वजह है कि नगर आयुक्त की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। कई बार पत्र व्यवहार एडीएम सिटी ने नगर आयुक्त को किया हैं। इसके बावजूद नहीं तो सेवा पुस्तिका उपलब्ध कराई गई और नहीं वेतन बिल। जांच समिति ने स्पष्ट किया है कि आरोपी राजेश कुमार क्लर्क को नगर निगम मुख्यालय से अन्य किसी जोन में स्थानांतरिक किया जाए, ताकि इसकी जांच प्रभावित नहीं हो सके।

…लेकिन एडीएम सिटी के यह लिखने के बाद भी राजेश को उसकी सीट से नहीं हटाया गया। इससे स्पष्ट है कि नगर आयुक्त नगर निगम के दागदार कर्मचारियों को कहीं ना कहीं सपोर्ट कर रहे हैं। इसी वजह से नगर आयुक्त की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जीरो टोलरेंस को भ्रष्टाचारी कर्मचारी पलीता लगा रहे हैं। सरकारी सिस्टम आखिर सुधरने का नाम नहीं ले रहा हैं। आला अफसर मुख्यमंत्री के जीरो टॉलरेंस नीति पर काम नहीं कर रहे हैं, जिसके चलते व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार पनप रहा हैं। दागदार कर्मचारियों को महत्वपूर्ण सीटों पर बैठा देना, आखिर किस दिशा में इशारा कर रहा हैं? यह सब जगजाहिर हैं। आला अफसरों की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। जब मुख्यमंत्री जीरो टोलरेंस की नीति पर काम चाहते है तो फिर नौकरशाह इस नीति पर काम क्यों नहीं कर रहे हैं? मुख्यमंत्री की छवि को धूमिल करने में अधिकारी जुटे हुए हैं।

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