उत्तर प्रदेश

बीजेपी सरकार ने मदरसों के लिए किया ये काम

mukeshwari
3 Jun 2023 1:11 PM GMT
बीजेपी सरकार ने मदरसों के लिए किया ये काम
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मेरठ। मदरसा शिक्षा प्रणाली भारतीय सन्दर्भ में हमेशा चर्चा और बहस का विषय रही है। कई मुसलमान इसकी प्रकृति और कामकाज के विषय में भिन्न राय रखते है। यह तथ्य है की इस प्रणाली को अपने पाठ्यक्रम और कार्यप्रणाली से सम्बंधित विविधिकरण की आवश्यकता है। हालांकि, विविधीकरण की प्रक्रिया को संसाधनों, आधुनिक विज्ञान और भाषा विज्ञान के बारे में अधिक उत्कृष्ट वित्तीय सहायता, सामुदायिक प्रयास और समावेशिता के आवश्यकता है। यह बातें आज मौलाना जरार ने कहीं।

भारतीय मदरसों की स्थिति और दशा पर आयोजित गोष्ठी में उन्होंने कहा कि समय बीतने के साथ, मदरसे अपने उद्देश्य में अधिक स्पष्ट हो गए हैं। अपनी विश्व दृष्टि के बारे में पहले से अधिक संकुचित हो गए हैं। दूसरी ओर, आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने विविधता, समावेशिता और प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाया और मदरसों के तुलना में कहीं अधिक छात्रों को आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि पिछले वर्षों में इस गतिरोध के समाज की तीव्र प्रगति और विकास के साथ साथ बढ़ोतरी हुई है।

उन्होंने कहा कि संपन्न मुस्लिम वर्ग के पास हमेशा शिक्षा और आर्थिक प्रगति के लिए बेहतर विकल्प उपलब्ध था। वे मदरसे उन गरीब के लिए छोड़ दिए गए थे जो कभी अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में भेजने के कल्पना नहीं कर सकते थे। यह वास्तविकता आज भी प्रासंगिक है। ये देखते हुए कि मुस्लिम वर्ग को वित्तीय संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। मदरसा प्रणाली में हमेशा एक प्रगतिशील आर्थिक दृष्टि का अभाव रहा है, और छात्रों को आवश्यक प्रशिक्षण और कौशल की कमी है, जिसकी वजह से उनके लिए रोज़गार के संस्थागत अवसर कम होते हैं। केवल वे ही छात्र औपचारिक बाजार संस्थानों में प्रवेश कर सकते थे जो मदरसों से कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में स्थानांतरित हो गए और नौकरी के लिए प्रशिक्षित हो गए।

प्रोफेसर डा. शफीक ने कहा कि कोई भी इस बात की उपेक्षा नहीं कर सकता है कि ये संपन्न मुस्लमान शायद ही कभी अपने बच्चों को मदरसों में भेजते हैं क्योंकि वे शायद ही इन को राजनितिक व आर्थिक अर्थों में कारगर पाते है। यह एक व्यापक रूप से ज्ञात तथ्य है किए मदरसा प्रणाली में गतिशीलता की कमी है और विशेष रूप से धर्मशास्त्र के लिए उन्हें प्रशिक्षित करने से विद्यार्थियों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता कम हो जाती है। जिसे वैज्ञानिक शिक्षा पर कम से कम शून्य कहा जाता है। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि व्यावहारिकता और नौकरी की सुरक्षा के लिए प्रतिस्पर्धा होने पर धर्मशास्त्र कोई भूमिका नहीं अदा करता है। उन्होंने कहा कि आज मदरसा प्रणाली को एक समग्र मूल्यांकन की आवश्यकता है और भारतीय मुसलमानों को औपचारिक रूप से नए शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना करके इन चुनौतियों के समाधान करने की आवश्यकता है। आज भाजपा सरकार में मदरसों की स्थिति बदल रही है।

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प्रकाश सिंह पिछले 3 सालों से पत्रकारिता में हैं। साल 2019 में उन्होंने मीडिया जगत में कदम रखा। फिलहाल, प्रकाश जनता से रिश्ता वेब साइट में बतौर content writer काम कर रहे हैं। उन्होंने श्री राम स्वरूप मेमोरियल यूनिवर्सिटी लखनऊ से हिंदी पत्रकारिता में मास्टर्स किया है। प्रकाश खेल के अलावा राजनीति और मनोरंजन की खबर लिखते हैं।

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